IND vs AUS 1st Test: एक के नाम 536 टेस्ट विकेट और वह भारत के सर्वकालिक विकेट लेने वालों की सूची में केवल अनिल कुंबले से पीछे हैं। दूसरे के नाम 319 टेस्ट विकेट। इतना ही नहीं, पहले के नाम 6 टेस्ट शतक हैं, और दूसरे के पास 77 टेस्ट में 35 की बल्लेबाजी औसत है - वे नियमित रूप से बल्ले से भी रन बनाते हैं। इसके बावजूद रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा दोनों को बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के पहले टेस्ट के लिए भारत की प्लेइंग-11 में नहीं चुना गया।

भारत ने पर्थ के ऑप्टस स्टेडियम में इकलौते स्पिन-बॉलिंग ऑलराउंडर के रूप में आर अश्विन और रवींद्र जडेजा दोनों से आगे वाशिंगटन सुंदर को चुना। आखिर क्यों ऐसा हुआ, आइए समझते हैं। 

दिलचस्प बात यह है कि पिछली बार भी अश्विन और जडेजा में से कोई भी भारतीय टेस्ट इलेवन में नहीं था, तो वो भी ऑस्ट्रेलिया में ही हुआ था। 3 साल पहले जब भारत ने ब्रिसबेन के गाबा मैदान पर ऑस्ट्रेलिया को टेस्ट में हराया था, तब ये दोनों खिलाड़ी चोट के कारण टीम का हिस्सा नहीं थे। इस बार वजह अलग है। ये आंकड़ों और रिकॉर्ड से ज्यादा रणनीतिक और फॉर्म पर आधारित फैसला है। क्योंकि वे पिछले एक दशक में टेस्ट क्रिकेट में भारत के दो सबसे बड़े मैच विनर रहे हैं। 

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अश्विन और जडेजा का ऑस्ट्रेलिया में रिकॉर्ड अच्छा
अश्विन ने ऑस्ट्रेलिया में 10 टेस्ट में 39 विकेट लिए हैं - जोकि पिछले तीन दशकों में किसी विदेशी स्पिनर द्वारा लिए गए दूसरे सबसे ज़्यादा विकेट हैं, उनसे आगे अनिल कुंबले हैं, जिन्होंने इतने ही टेस्ट में 49 विकेट लिए हैं। दूसरी ओर, जडेजा का ऑस्ट्रेलिया में सभी विदेशी स्पिन गेंदबाजों में सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी औसत है (न्यूनतम 10 विकेट)। जडेजा ने 4 टेस्ट मैच में 21.78 के शानदार औसत से 14 विकेट लिए हैं।

भारत ने अश्विन और जडेजा की जगह सुंदर को क्यों चुना?
ऐसे विकेट पर जहां स्पिन गेंदबाजों का प्रदर्शन बेहतर रहा है, वहां अश्विन और जडेजा दोनों को प्लेइंग-11 में नहीं रखना और ऐसे खिलाड़ी को मौका देना जो इंटरनेशनल लेवल पर ही नहीं, घरेलू क्रिकेट में भी रेड बॉल क्रिकेट लगातार नहीं खेलता। लेकिन, करीब से देखने पर एक अलग कहानी सामने आ सकती है।

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भारत पर्थ टेस्ट में 4 पेसर्स के साथ उतरा
भारत ने सीरीज के पहले मैच के लिए 4 तेज गेंदबाजों को प्लेइंग-11 में शामिल किया है। उनमें से एक नीतीश कुमार रेड्डी के रूप में तेज गेंदबाजी करने वाला ऑलराउंडर है, जो उनकी बल्लेबाजी को मजबूती देता है, लेकिन गेंदबाजी विभाग में उन्हें थोड़ा कमजोर बनाता है। उन्हें एक स्पिनर चुनने की जरूरत थी, जो जरूरत पड़ने पर टीम को विकेट दिला सके, खासकर दूसरी पारी में।

सुंदर का हालिया रिकॉर्ड अच्छा
अश्विन और जडेजा में से, ऑस्ट्रेलिया में जडेजा के बेहतर गेंदबाजी आंकड़े होने के बावजूद, अश्विन की ओर झुकाव अधिक होगा, खासकर एक आक्रामक विकल्प के रूप में। इसके पीछे की वजह ये है कि ऑस्ट्रेलिया के प्लेइंग-11 में तीन बाएं हाथ के बैटर- उस्मान ख्वाजा, ट्रेविस हेड और एलेक्स कैरी- यह भी बाएं हाथ के स्पिनर की तुलना में ऑफ स्पिनर को चुनना अधिक तर्कसंगत बनाता है। इस निर्णय ने न्यूजीलैंड के खिलाफ पिछले टेस्ट मैच में भारत को बहुत लाभ पहुंचाया था, जहां सुंदर के सेलेक्शन ने 2 टेस्ट में उन्हें 16 विकेट दिलाए। 

लेकिन यहां सवाल यह है कि अश्विन की जगह सुंदर को क्यों चुना गया? क्या अश्विन विशेषज्ञ ऑफ स्पिनर के रूप में काम नहीं कर सकते? वह ज़रूर कर सकते हैं। लेकिन यहां निचले क्रम को मज़बूत करने भी जरूरी हो जाता है। बल्ले से अपनी तमाम क्षमताओं के बावजूद, कोई भी इस बात से सहमत होगा कि सुंदर के पास उछाल भरी ऑस्ट्रेलियाई परिस्थितियों में अश्विन की तुलना में बेहतर तकनीक है।

मौजूदा फॉर्म को देखते हुए सुंदर निश्चित रूप से अनुभवी अश्विन और जडेजा की तुलना में बेहतर स्पिन गेंदबाजी ऑलराउंडर हैं, जिनका न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू मैदान पर प्रदर्शन खराब रहा था। पूर्व भारतीय क्रिकेटर संजय मांजरेकर ने अश्विन और जडेजा की जगह सुंदर को चुनने के भारत के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने स्टार स्पोर्ट्स पर कहा, 'मुझे लगता है कि सही फैसला लिया गया। तीन स्पिनरों में से, वह बेहतरीन फॉर्म में चल रहे स्पिनर हैं। वह अपने खेल के शीर्ष पर हैं। सुंदर ने न्यूजीलैंड के खिलाफ शानदार सीरीज खेली थी। उन्होंने बड़े नामों को बाहर रखा और ऐसे खिलाड़ी को चुना जो अपने कौशल के शीर्ष पर है, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के पास शीर्ष 7 में 3 बाएं हाथ के खिलाड़ी हैं।'