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गणतंत्र दिवस पर कर्तव्यपथ पर निकलने वाली राज्यों की झांकियों का आज नई दिल्ली की राष्ट्रीय रंगशाला में प्रेस प्रिव्यू आयोजित किया गया। 

रायपुर। छत्तीसगढ़ में आदिम काल से लोकतंत्र की जड़ें विद्यमान हैं। इसका जीवंत उदाहरण मुरिया दरबार में देखने को मिलता है। ‘भारत लोकतंत्र की जननी’ थीम पर बनी छत्तीसगढ़ की झांकी ने राष्ट्रीय मीडिया को खासा आकर्षित किया है। गणतंत्र दिवस पर कर्तव्यपथ पर निकलने वाली राज्यों की झांकियों का आज नई दिल्ली की राष्ट्रीय रंगशाला में प्रेस प्रिव्यू आयोजित किया गया।

यहां पर ‘बस्तर की आदिम जनसंसद मुरिया दरबार’ विषय पर बनी राज्य की झांकी को राष्ट्रीय मीडिया की काफी सराहना मिली। इस दौरान झांकी के समक्ष छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों ने परब नृत्य का प्रदर्शन किया। वहीं मांदर की थाप के साथ बांसुरी की मधुर तान ने सबका मनमोह लिया। 

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छत्तीसगढ़ की झांकी

बस्तर दशहरा का हिस्सा है मुरिया दरबार 
यह झांकी छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिम काल से मौजूद लोकतांत्रिक व्यवस्था को दिखाती है। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के समारोह में शामिल मुरिया दरबार की परंपरा आजादी के 75 साल बाद भी जारी है। यहां पर जनप्रतिनिधि और आमजन शामिल होकर क्षेत्र की समस्याओं पर चर्चा करते हैं। रियासत काल में जहां इसमें राजा शामिल होता था, वहीं अब मुख्यमंत्री भी शामिल होते हैं। 

झांकी के अलग-अलग हिस्सों में दिखी आदिम संस्कृति की झलक 
मुरिया दरबार में बस्तर में आदिम काल से लेकर अब तक हुए सांस्कृतिक विकास की झलक भी दिखाई पड़ रही है। झांकी के सामने के हिस्से में बस्तर के आदिम काल से स्त्री प्रधान जनजातीय समाज को दिखाया गया है। अपनी पारंपरिक वेशभूषा में एक स्त्री को अपनी बात रखते हुए दर्शाया गया है। युवती की पारंपरिक वेशभूषा के माध्यम से बस्तर के रहन-सहन, सौंदर्यबोध और संस्कारित पहनावे को दर्शाया गया है। 

600 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है यह परंपरा 
मध्य भाग में बस्तर की आदिम जनसंसद को दर्शाया गया है, जिसे मुरिया दरबार के नाम से जाना जाता है। 600 से अधिक वर्षों से यह परंपरा विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे का हिस्सा है। लेकिन इसकी शुरुआत के प्रमाण आदिम काल के मिलते हैं। 

लिमऊ राजा के सामने लिया जाता था फैसला
झांकी के पीछे के हिस्से में बस्तर की प्राचीन राजधानी बड़े डोंगर में स्थित लिमऊ राजा नाम के स्थान को दर्शाया गया है। लोककथाओं के मुताबिक आदि काल में जब कोई राजा नहीं था, तब जनजातीय समाज एक नींबू को पत्थर के प्राकृतिक सिंहासन पर रखकर आपस में ही निर्णय ले लिया करते थे। इसी परंपरा को बाद में मुरिया दरबार के रूप में विस्तार दिया गया। 

टेरकोटा शिल्प का हाथी लोक सत्ता का प्रतीक
झांकी की सजावट जनजातीय समाज की शिल्प-परंपरा के बेलमेटल और टेरकोटा शिल्पों से की गई है। बेलमेटल शिल्प का नंदी सामाजिक आत्मविश्वास और सांस्कृतिक सौंदर्य का प्रतीक है। टेरकोटा शिल्प का हाथी लोक की सत्ता का प्रतीक है।

लोक कलाकारों ने परब नृत्य की दी प्रस्तुति
परब नृत्य बस्तर की धुरवा जनजाति का लोकप्रिय नृत्य है। इसमें युवक-युवतियां मिलकर नृत्य करते हैं। ये सभी कतारबद्ध होकर नृत्य करते हैं और नृत्य के साथ विशेष करतब भी दिखाते हैं।

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