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अबूझमाड़ के सुदूर गांवों में अब बम, बारूद और बंदूक की गोली नहीं, स्कूलों में सुनाई दे रहा है राष्ट्रगान। आज़ादी के बाद बस्तर संभाग के इन बीहड़ों में रहने वाले चार गांवों को मिले शिक्षा के मंदिर। 

ईमरान खान- नारायणपुर। छत्तीसगढ़ सरकार के नक्सल मुक्त बस्तर के ऐलान के बीच नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में आज़ादी के बाद पहली बार चार गांवों के बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिल रहा है। नक्सलियों को खदेड़ने के बाद नक्सल मुक्त बस्तर की गवाही बीहड़ में खुले नए स्कूल के बच्चे दे रहे हैं। एंटी नक्सल ऑपरेशन के दौरान फोर्स को मिल रही सफलता से अबूझमाड़ के अधिकांश गांवों में चल रही नक्सलियों की पाठशाला बंद होने के बाद सरकार उन इलाकों में स्कूल खोल रही है। अब यहां के बच्चे अ से "आतंक" का पाठ छोड़कर अ से "आम" पढ़ रहे हैं। 

भाजपा सरकार के एक साल के जश्न के बीच बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने जो आंकड़े बताए हैं उसके मुताबिक़ एक साल में मुठभेड़ के बाद बस्तर संभाग से 217 माओवादियों के शव बरामद हुए हैं। वहीं अबूझमाड़ में एक साल में 130 से ज्यादा नक्सली मारे गए हैं। सिर्फ नारायणपुर जिले में पिछले साल के दौरान  56 नक्सली हुए ढेर हुए हैं। अबूझमाड़ के बीहड़ों में नए कैंप खुलने के बाद नक्सली बैकफुट में चले गए हैं। जिसकी वजह से सरकार ने हाल ही के दिनों में चार गांवों में नया स्कूल खोल दिया है। बम, बारूद और गोली की आवाज़ खामोश होते ही इस गांवों के स्कूलों में रोज़ाना राष्ट्रगान का पाठ हो रहा हैं। इस इलाकों में बच्चों को गदर के गीत सुनाकर नक्सली अपने संगठन में जोड़कर कुनबा का विस्तार करते थे लेकिन डबल इंजन की सरकार ने नक्सलियों की कमर तोड़ दिया हैं। 

ऐनमेटा, जद्दा, ताड़ोबेड़ा और इरकभट्टी में खुले स्कूल

साय सरकार की नियद नेल्लानार योजना के चलते ऐनमेटा, जद्दा, ताड़ोबेड़ा और इरकभट्टी में स्कूल खोले जाने पर बच्चों और ग्रामीणों में काफी उत्साह और खुशी देखने को मिल रहा हैं। ऐनमेटा में 180, जद्दा 9, इरकभट्टी 190 और ताड़ोबेड़ा में 15 परिवार रहता हैं। चारों स्कूलों में पहली क्लास की पढ़ाई शुरू की गई हैं। अति संवेदनशील इलाका होने की वजह से सरकार की आमद इस गांवों में नहीं के बराबर थी। नक्सलियों के आतंक की वजह से सरकारी कर्मचारियों को गांव की दहलीज में कदम रखने की हिम्मत नहीं हो पाती थी। वक्त बदलते ही गांव में शिक्षा का मंदिर खुल गया हैं। 

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स्कूल की सौगात मिलते ही गांव होगा शिफ्ट 

मूलभूत सुविधाओं और शिक्षा से दूर अबूझमाड़ का एक गांव ऐसा भी है जहां के लोगों को पता चला कि अपने गांव से ढाई किलोमीटर दूर जद्दा गांव में स्कूल खुल गया है तो पूरे गांव वाले बैठक कर अपने गांव को स्कूल वाले गांव में शिफ्ट करने के राजी हो गए हैं। यह बात हम नहीं ओरछा के खंड शिक्षा अधिकारी कह रहे हैं। बतौर खंड शिक्षा अधिकारी बीआर रावटे ने बताया कि जब उनकी टीम बीहड़ों का सफर तय करते हुए ढाई घंटा पैदल चलकर मरकुल गांव पहुंची तो गांव वालों ने कहा कि हमारे गांव के बच्चों को भी स्कूल में पढ़ना है। इस वजह से हमारे गांव के लोग जद्दा में जाकर बस जाएंगे। 

नक्सलियों का था मजबूत ठिकाना

सरकार की पहुंच से दूर अबूझमाड़ के कई इलाकों में न तो सड़क है, न बिजती, पीने का शुध्द पानी और अस्पताल, सघन जंगल के कारण अब तक यह इलाका नक्सलियों का सबसे मजबूत ठिकाना रहा है। छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार की नियद नेल्लानार योजना के तहत माड़ क्षेत्र में नवीन कैम्प स्थापित किया जा रहा हैं। कैंप खुलने से विकास कार्यों में तेजी आई है, माओवादियों में भय का माहौल बना हुआ है, नियद नेल्लानार के तहत अबूझमाड़ में विकास की गति तेज हुई है। अब इस इलाके में गांवों में स्कूल,सड़क अस्पताल,राशन दुकान जैसी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार हो रहा हैं। 

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रंग ला रही नियद नेल्लनार योजना 

अबूझमाड़ के घोर नक्सली इलाका जिसमें ऐनमेटा, जद्दा, ताड़ोबेड़ा और इरकभट्टी के चार गांव हैं। इस चार गांव में लोग आजादी के बाद से शिक्षा से वंचित रहे हैं। जहां शासन की महत्वाकांक्षी नियद नेल्लनार योजना के तहत स्कूल खोले गए हैं। जिसमें जद्दा गांव जाने के लिए हमें ढाई घंटा का सफर नदी, नाला और पहाड़ को पार कर करना पड़ा। ये घोर नक्सली इलाका हैं। जैसे ही हम गांव पहुंचे तो वहां ग्रामीण स्कूल खुलने की बात से बेहद खुश हुए लेकिन मैने पूछा कि तीन परिवार के लिए यहां स्कूल का संचालन कैसे किया जा सकता हैं तब ग्रामीणों ने बताया कि यहां से ढाई किमी दूर पहाड़ के ऊपर इसका मुख्य गांव मरकुल हैं। अगर यहां स्कूल खुल जाएगा तो पूरा गांव यहां आकर बस जाएगा। 

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बच्चों में जगी शिक्षा के प्रति उत्सुकता
 
स्कूल खोलने के बाद बच्चों में उत्सुकता बहुत है और डेली वे स्कूल आ रहे हैं। जो चीज बोला जाता हैं उसे बच्चे कर रहे हैं। समय से पहले बच्चे स्कूल पहुंच जाते हैं। बच्चों के साथ परिजनों में भी खुशी है। नए स्कूल होने की वजह से 12 बजे का भोजन बच्चों को नहीं मिल रहा है। शाम 4 बजे तक रहते हैं। परिजनों का कहना है कि खाना मिलने से अच्छा रहता।  स्कूल घोटूल में चल रहा है। भवन होने से ग्रामीणों में उत्सुकता और ज्यादा बढ़ जाता। स्कूल के लिए ग्रामीण जमीन देने के लिए तैयार है कब भवन मिलेगा पता नहीं। 

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नदी-नाले, पहाड़ पार कर आते हैं शिक्षक

स्कूल जाते वक्त हमें बीच जंगली रास्ते में बीआरसी लक्ष्मीकांत सिंह मिले। उन्होंने बताया कि, 3 किलोमीटर पैदल चलकर आ रहे हैं। नदी नालों और पहाड़ों को पार कर आ रहे हैं। आजादी के बाद पहली बार स्कूल खोला जा रहा है। यह नक्सलियों का गढ़ माना जाता है और अति संवेदनशील क्षेत्र था। पहली बार स्कूल खोला गया है।

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