रायपुर। अनियमित धड़कन से चारों दिशाओं में हुए ब्लॉकेज को हटाने के लिए इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी मैपिंग की गई। इस समस्या का समाधान करने फ्रीक्वेंसी एब्लेशन विधि से नसों की चौखट को जलाकर धड़कन को नियंत्रित किया गया। एडवांस कार्डियक इंस्टिट्यूट में इस प्रक्रिया को सफलता पूर्वक पूर्ण कर सत्तर वर्षीय मरीज को लकवा के खतरे से बचा लिया गया। कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार मरीज को एट्रियल फिब्रिलेशन की दिक्कतें हो रही थीं। वह 70 साल से अधिक आयु वाले हर चौथे शख्स को हो सकती है। इसकी वजह से हृदय अच्छे से काम नहीं कर पाता और संकुचन की समस्या आ जाती है।
संबंधित मरीज के हृदय के ऊपर वाले चैंबर में चारों दिशाओं से आने वाली नसों में एट्रियल फिब्रिलेशन की समस्या थी। इसके इलाज के लिए पहले दिल के इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी का बिंदु-बिंदु करके त्रि- आयामी नक्शा बनाया गया। उसके बाद रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन के माध्यम से उच्च ऊर्जा युक्त रेडियो तरंगों के जरिए ब्लॉकेज को जलाया गया, जिससे एट्रियल फिब्रिलेशन नार्मल हो गया। इस पूरी प्रक्रिया को कार्डियोलॉजी विभाग के साथ एनेस्थिसियोलॉजी विभाग ने मिलकर पूरा किया। इसमें डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ डॉ. कुणाल ओस्तवाल, डॉ. शिव कुमार शर्मा एवं एनेस्थिसियोलॉजी विभाग से डॉ. जया लालवानी ने अपनी मुख्य भूमिका निभाई।
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इलाज के लिए किसी से कम नहीं
इस जटिल प्रक्रिया को पूरा करने के लिए आंबेडकर अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने कहा कि एसीआई इस बात का प्रमाण है कि शासकीय अस्पताल इलाज के मामले में किसी से कम नहीं है। हृदय से जुड़ी कई जटिल बीमारियों का इलाज सफलतापूर्वक एसीआई में किया जा रहा है। उन्होंने इलाज करने वाली पूरी टीम को बधाई दी है।
सरकारी स्तर पर एकमात्र संस्थान
आंबेडकर अस्पताल स्थित एसीआई प्रदेश स्तर पर एकमात्र संस्थान है, जहां थ्रीडी इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी विधि से एट्रियल फिब्रिलेशन के उपचार की सुविधा उपलब्ध है। इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी मैपिंग के जरिए हृदय की विद्युत गतिविधि का पता चलता है। मनुष्य के शरीर में भी प्राकृतिक विद्युत आवेग या तरंग उत्पन्न होती हैं जो दिल की धड़कन को एक निश्चित रिदम या लय में धड़काते हैं।