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सीएम विष्णुदेव साय ने अपने बगिया स्थित आवास में ग्राम देवता और इष्ट देवता की पूजा अर्चना के बाद खेत में धान की बुवाई की। जहां सीएम श्री साय ने कहा कि, किसान सम्मान निधि से किसानों को फायदा होगा। 

जितेन्द्र सोनी- जशपुर। छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय ने मंगलवार को अपने खेत में धान की बुवाई की। सीएम श्री साय ने अपने बगिया स्थित आवास में ग्राम देवता और इष्ट देवता की पूजा अर्चना के बाद खेत में धान की बुवाई की। जहां सीएम श्री साय ने कहा कि, किसान सम्मान निधि से किसानों को फायदा होगा। छत्तीसगढ़ और देश के करोड़ों किसानों को किसान सम्मान निधि का लाभ मिल रहा है। 

छत्तीसगढ़ का धान पूरे देश में रखती है पहचान 

छत्तीसगढ़ का सुगंधित धान पूरे देश में पहचान रखता है। यहां जितने गढ़ हैं, धान की उतनी ही खास किस्में मौजूद हैं। पर एक दौर ऐसा भी आ चुका है, जब इनमें से कई किस्में विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई थीं। तब इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने किसानों के साथ मिलकर इन्हें सहेजा। कृषि विज्ञान केंद्रों ने भी इस काम में पूरी मदद की। महज 10-15 साल पहले तक जवा फूल, दुबराज, विष्णु भोग, लुचई जैसी सुगंधित धान की किस्में राज्य की पहचान थी। 

सुगंधित धान की कई वैरायटी विलुप्ति की कगार पर

हालांकि, किसानों को इनकी पैदावार से लाभ नहीं हो रहा था। धीरे-धीरे स्वर्णा, एमटीयू 1010 जैसी किस्मों को सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदने लगी। ऐसे सुगंधित धान की कई वैरायटी विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई। कई गांवों से तो ये गायब ही हो गई। कुछ किसान अपने उपयोग के लिए सीमित क्षेत्र में उगा रहे थे, लेकिन उनकी संख्या व एरिया सीमित था। इसे गंभीरता से लेते हुए चार साल पहले इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी रायपुर ने इन्हें सहेजने का बीड़ा उठाया।

हर जिले में धान की अलग-अलग किस्में

राज्य में राजनांदगांव में चिन्नौर, सिहावा-नगरी में दुबराज तो अंबिकापुर में बिसनी, बिलासपुर जिले के गौरेला-पेंड्रा इलाके में विष्णुभोग, लोहंदी व लुचई किस्में पाई जाती हैं। सूरजपुर में श्याम जीरा, बेमेतरा में कुबरी मोहर, जगदलपुर में बादशाह भोग व गोपाल भोग तो रायगढ़ में जीरा फूल की खेती कुछ किसान करते हैं।

पारंपरिक के कई फायदे हैं

उत्पादन के लिए कम रासायनिक खाद की जरूरत पड़ती है तो इसमें स्टार्च की मात्रा भी अधिक होती है। इसके अलावा बालियों में छोटा और पतला दाना है जो प्राकृतिक तत्वों से भरपूर होता है। बीजों के लिए बाजार पर निर्भरता नहीं है और नई वैरायटी की तुलना में उत्पादन लागत कम आती है।

तीन गुना कम पानी की खपत

वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक प्रो. बीआर राठिया के मुताबिक पारंपरिक धान की खेती में हाईब्रिड की तुलना में तीन गुना कम पानी की जरूरत पड़ती है। कम बारिश हुई तब भी फसल अच्छी होती है। इसके बावजूद किसान अधिक उत्पादन के लिए स्वर्णा जैसी वैरायटी लगा रहे हैं।

 

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