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लोरमी विकासखंड के 6 से 7 गांव ऐसे हैं, जहां पिछले 10 सालों में 300 से अधिक लोग बहरे हो गए हैं।  147 लोग इसी आधार पर सालों से नौकरी भी कर रहे हैं। 

विकास चौबे/बिलासपुर। मुंगेली जिले के लोरमी विकासखंड के 6 से 7 गांव ऐसे हैं, जहां पिछले 10 सालों में 300 से अधिक लोग बहरे हो गए हैं। इनमें से 147 लोग श्रवण बाधित कान के दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के बाद सरकारी नौकरी भी कर रहे हैं। हालांकि इसमें अधिकांश के फर्जी होने के आरोप भी लग रहे हैं। यही नहीं इन गांवों में पता नहीं ऐसी कौन सी महामारी है कि मां- बाप और बच्चों के साथ विवाह के बाद दूसरे गांव या जिलों से बहू बनकर आने वाली महिलाएं भी श्रवण बाधित हो जाती हैं। खास बात यह भी है कि इनमें से अधिकतर का सरनेम राजपूत, राठौरऔर सिंह है। इसकी चर्चा पूरे प्रदेश में है लेकिन जांच के नाम पर सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ रहे हैं।

लोरमी ब्लाक के सारधा, लोरमी, सुकली, झाफल, फुलझर, विचारपुर, बोड़तरा गांव के लोगों के बने सभी दिव्यांग प्रमाण-पत्रों पर सवाल उठ रहे हैं। बात सामने आई है कि अकेले 53 लोग कृषि विभाग में ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर पदस्थ हैं। वहीं तीन लोग कृषि शिक्षक के पद पर काबिज हैं। ध्यान रहे राज्य शासन की ओर से दिव्यांगों की विशेष भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। सबसे पहले ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी पद के लिए भर्ती हुई। इसमें 50 ऐसे लोगों की नियुक्ति हुई है जिन्होंने श्रवण बाधित होने का विकलांगता प्रमाण पत्र पेश किया है। इसी तरह तीन कृषि शिक्षक के पद पद काम कर रहे हैं।

अधिकांश चयनित खास सरनेम के 

2016 और 2018 में हुई भर्ती की सूची का अवलोकन करने पर एक बात जो देखने में आ रही है कि अधिकांश चयनित उम्मीदवार राजपूत, सिंह और राठौर सरनेम के हैं। यह सभी बिलासपुर, मुंगेली और जांजगीर-चांपा जिले के निवासी हैं। अधिकांश फर्जी प्रमाण पत्र भी लोरमी और जांजगीर-चांपा जिले से बनाए गए हैं। छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ के मुताबिक अधिकांश प्रमाण पत्रों में बिलासपुर और मुंगेली में पदस्थ दो डाक्टरों के हस्ताक्षर से जारी हुए हैं। इनमें से एक डाक्टर बिलासपुर में स्वास्थ्य विभाग में महत्वपूर्ण पद पर पदस्थ हैं। संघ ने सभी विकलांग प्रमाण पत्रों की राज्य मेडिकल बोर्ड से जांच कराने की मांग की है।

2 से तीन लाख में बन रहे प्रमाण पत्र

दरअसल, प्रदेश में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने के लिए बहुत सारे गैंग सक्रिय हैं। दो से तीन लाख रुपए लेकर फर्जी प्रमाण पत्र बनवाए जा रहे हैं। कुछ मामले तो डॉक्टरों या स्टाफ की जानकारी में होते हैं, लेकिन ज्यादातर मामले में प्रमाण-पत्र बनवाते समय अन्य वास्तविक दिव्यांग को पैसा देकर खुद की जगह पेश कर दिया जाता है। जिसके चलते डॉक्टर प्रमाण पत्र जारी देते हैं। इसके कारण सरकारी नौकरी में वास्तविक दिव्यांग वंचित रह जाते हैं। छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ ने 200 लोगों के खिलाफ शिकायत की थी, लेकिन केवल 3 सरकारी कर्मचारियों का राज्य मेडिकल से परीक्षण हुआ है। जिसमें तीनों दिव्यांग फर्जी साबित हुए हैं। इस मामले में महासमुंद कृषि सहायक संचालक रिचा दुबे बर्खास्त हो चुकी हैं।

परिवार में सभी के पास फर्जी प्रमाण पत्र

इस बारे में जानकारी ली गई तो मालूम पड़ा कि यह लोग स्कूल- कालेज में पढ़ाई के दौरान किसी भी प्रकार से दिव्यांग नहीं थे। जैसे ही निःशक्त जनों के लिए विशेष भर्ती निकली, सभी फर्जी दिव्यांग बन गए। इसमें बिलासपुर और रायपुर में संस्थान चला रहे एक संचालक का नाम सामने आ रहा है। उसके चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाई, पत्नी, साला सभी लोग दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार  पर नौकरी कर रहे हैं। वह इन कोचिंग सेंटर में अध्ययनरत छात्र छात्राओं का भी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाकर कृषि महाविद्यालयों में दिव्यांग सीट में प्रवेश दिलवाने की बात सामने आ रही है।

इन विभागों में सालों से कर रहे नौकरी

दिव्यांग संघ के प्रदेश अध्यक्ष बोहित राम चन्द्राकर ने बताया कि वर्तमान में पीएससी से सलेक्ट होकर 7 डिप्टी कलेक्टर, 3 नायब तहसीलदार, 3 लेखा अधिकारी, 3 पशु चिकित्सक, 2 सहकारिता निरीक्षक सहित 21 लोग दिव्यांग प्रमाण-पत्र लगाकर सरकारी नौकरी कर रहे हैं। इनमें से कितने प्रमाण पत्र सही या फर्जी हैं यह साबित होना बाकी है।

जांच के लिए नहीं आया पत्र

जनपद पंचायत, लोरमी के सीईओ टीएल घृतलहरे ने बताया कि, इस बारे में दिव्यांग संघ की ओर से शिकायत जरूर की गई थी लेकिन शासन की ओर से किसी भी प्रकार की जांच के लिए पत्र नहीं आया है। वैसे भी मामला सीधा समाज कल्याण विभाग से जुड़ा है। फिर भी फर्जीवाड़े की बात सामने आई है तो जनपद की ओर से जानकारी ले ली जाएगी। 

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