आकांक्षा प्रफुल्ल पांडेय
वैसे तो देव दीपावली भारत के अनेक हिस्सों में श्रद्धा और उल्लास से मनाई जाती है पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी (बनारस) में मनाई जाने वाली ‘देव दीपावली’ का विशेष महत्व है। यह कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जब समूचे घाट दीपों की रोशनी से सज उठते हैं। गंगा के किनारे स्थित 88 घाटों पर हजारों दीए जलाए जाते हैं और बनारस का आकाश आतिशबाजियों से जगमगाता है। इस पर्व को ‘देवताओं की दिवाली’ भी कहा जाता है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं धरती पर उतरकर दीपावली का आनंद लेते हैं।
देव दीपावली का जिक्र पुराणों में भी मिलता है। मान्यता है कि त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध भगवान शिव ने इसी दिन किया था। देवताओं ने त्रिपुरासुर की मृत्यु के उपलक्ष्य में हर्षोल्लास मनाया और इस पर्व को देवताओं की दिवाली के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। इसे ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ भी कहते हैं। इसके अलावा, इसे गंगा के पावन जल में स्नान, दान, और दीप प्रज्वलित करने का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि देव दीपावली के दिन गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
घाटों पर भक्त करते हैं पूजा-अर्चना
देव दीपावली के दिन सुबह से ही बनारस के घाटों पर भक्तों का तांता लग जाता है। स्नान, पूजा और दान करने के बाद संध्या समय दीपदान का आयोजन होता है। घाटों को विशेष रूप से सजाया जाता है और दीपमालाएं बनाई जाती हैं। इस दिन हर परिवार अपने-अपने घर और मंदिरों में दीये जलाते हैं। गंगा आरती के समय का दृश्य अति मनोहारी होता है जब दीपों की कतारें जलती हैं और भव्य गंगा आरती पूरी होती है।
कई कार्यक्रमों का होता है आयोजन
देव दीपावली के दिन बनारस के घाटों पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। पारंपरिक संगीत, नृत्य, भजन-संकीर्तन और अन्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से माहौल भक्ति और उल्लासमय हो उठता है। विदेशी सैलानी भी इस अद्भुत उत्सव का अनुभव लेने के लिए बड़ी संख्या में बनारस आते हैं। उत्सव का मुख्य आकर्षण आतिशबाजी है जो पूरे आकाश को रोशनी से भर देती है। हालांकि, इस उत्सव की भव्यता अपनी जगह है लेकिन इसमें बढ़ती आतिशबाजी और कचरे की समस्या भी चिंता का विषय है। गंगा की स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के लिए कई गैर-सरकारी संगठन भी इस दिन जागरूकता अभियान चलाते हैं।
बनारस का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जुड़ाव
बनारस का देव दीपावली केवल एक पर्व नहीं है बल्कि यह शहर की संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता को प्रकट करता है। यहाँ के लोग देवताओं की आराधना और पवित्र गंगा के प्रति आस्था के साथ इस पर्व को मनाते हैं। यह बनारस की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक एकता का प्रतीक है। देव दीपावली का उत्सव न केवल भारत के लिए बल्कि विश्वभर में अनूठा और अद्वितीय है। यह न केवल परंपराओं और मान्यताओं से जुड़ा है बल्कि यह काशी की सांस्कृतिक धरोहर और गौरव का प्रतीक भी है। इस पर्व के माध्यम से हम अपने धार्मिक और आध्यात्मिक जड़ों से जुड़े रहते हैं और आने वाली पीढ़ियों को भी इसकी महत्ता बताते हैं।