प्रवीन्द्र सिंह- बैकुण्ठपुर। छत्तीसगढ़ में एक ओर जब त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव के लिए में गहमागहमी बनीं हुई है। ऐसे में कोरिया जिले जनपद पंचायत बैकुंठपुर अंतर्गत ग्राम पंचायत रनई ने लोकतंत्र की मिसाल पेश की है। एक बार फिर निर्विरोध सरपंच और 15 पंचों का चयन कर अपनी ऐतिहासिक परंपरा को कायम रखा है। आजादी के बाद से इस गांव में कभी चुनाव नहीं हुआ और यह परंपरा आज भी बरकरार है।
रनई ग्राम में सौहार्द और आपसी सहमति से प्रतिनिधियों का चयन किया जाता है। जिससे बिना किसी मतदान के पंचायत का गठन होता है। इस परंपरा को बनाए रखने में रनई जमींदार और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव योगेश शुक्ला का अहम योगदान रहता है। उनकी पहल से गांव में निर्विरोध चुनाव की परंपरा बनी हुई है, जिससे पंचायत संचालन में किसी प्रकार का राजनीतिक तनाव नहीं रहता।
निर्विरोध चुनाव का ऐतिहासिक है रिकॉर्ड
रनई के ग्रामवासियों ने एक बार फिर मतदान की आवश्यकता ही नहीं पड़ने दी और आपसी सहमति से सरपंच और 15 पंचों का चयन किया। यह सिलसिला आजादी के बाद से लगातार चला आ रहा है और एक मिसाल बन चुका है। निर्विरोध चयन की घोषणा के बाद गांव में उत्सव का माहौल बन गया। ग्रामीणों ने इसे आपसी भाईचारे और सामंजस्य की जीत बताया।
अन्य पंचायतों के लिए बना मिसाल
रनई ग्राम पंचायत की यह लोकतांत्रिक परंपरा अन्य गांवों के लिए भी प्रेरणादायक और मिसाल है, जहां चुनावी प्रतिस्पर्धा की जगह आपसी सहमति से नेतृत्व तय किया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि इस परंपरा से पंचायत में शांति बनी रहती है और विकास कार्य बिना किसी राजनीतिक विवाद के संचालित होते हैं।
ये चुने गए निर्विरोध सरपंच-पंच
रनई में इस बार बबीता ठकुरिया सरपंच, गीता शुक्ला उप सरपंच, पंचों में यशोदा ठकुरिया, आशा दुबे, सुमित्रा पटेल, लता विश्वकर्मा, वेदमति साहू, ज्योति सिंह, हीरामनी पंडो, राधा साहू, सोनकुंवर कोल, शशि कोल, लीलाकोल, श्यामवती कोल, चंद्रमनी एवं सोनकुवंर कोल शामिल हैं।
नामांकन नहीं किए हैं दाखिल
जनपद पंचायत बैकुंठपुर अंतर्गत ग्राम पंचायत रनई में सरपंच पद और 15 पंचों के लिए निर्धारित समयावधि तक किसी ने नामांकन दाखिल नहीं किया, क्योंकि सभी पदों पर आम सहमति से चयन हुआ। यहां हर बार गांव के लोग आपसी सहमति से अपने प्रतिनिधियों का चयन करते हैं, इसकी जानकारी मुझे मिली है।
पूर्वजों के समय से कायम है परंपरा
रनई की इस परंपरा को बनाए रखने में हमारे पूर्वजों का अहम योगदान रहा। जिसे आज भी कायम हम लोग रखे हुए हैं। हर बार बिना किसी विवाद के जन प्रतिनिधियों का चयन करते हैं। इस अनूठी परंपरा ने एक बार फिर रिकॉर्ड बना दिया है, जहां दशकों से बिना किसी चुनावी प्रतिस्पर्धा के पंचायत संचालन होता आ रहा है।