रायपुर।  जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थितियों से जूझने लोगों की सहनशक्ति कम होने लगी है। परेशानियों से जल्दी हताश होकर ऐसे लोग आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। राज्य में पिछले साल आत्महत्या की कोशिश के 629 मामले सामने आए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कम समय में अधिक पाने की चाहत में लोग मानसिक अवसाद के शिकार हो रहे हैं और तात्कालिक आवेश में आकर आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। 108 संजीवनी सेवा की मदद से सालभर में 629 लोगों को अस्पताल तक पहुंचाया गया, मगर इस अनुमान से इनकार नहीं किया जा रहा है कि आत्मघाती कदम उठाने वालों की संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। सही समय पर अस्पताल पहुंचने की वजह से इनमें से कई लोगों की जान बचा ली गई, मगर कुछ प्रकरणों में देर हो गई।

राज्य में आत्महत्या के मामलों में पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ोतरी हो रही है। बेहद मामूली बातों पर उपजे विवाद अथवा कारणों पर लोग अपना जीवन समाप्त करने जैसा बड़ा कदम उठा लेते हैं। हरिभूमि ने आत्महत्या की कोशिश के मसले पर मनोचिकित्सकों से आत्मघाती कदम उठाने के कारणों को जानने का प्रयास किया। विशेषज्ञों का तर्क है कि जल्दी पाने की इच्छा में लोगों की सहनशक्ति कम हो रही है। सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक परेशानियों का समाधान खोजने के बजाय लोग अवसाद में घिर जाते हैं और आक्रोशित होकर जीवन की समाप्ति को इसका हल समझने लगते हैं।

समाधान खोजने की जरूरत

जिला अस्पताल के स्पर्श क्लीनिक के मनोचिकित्सक अविनाश शुक्ला के मुताबिक आत्महत्या जैसे कदम उठाने के बजाय लोगों को होने वाली परेशानी का समाधान खोजने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए परिवार अथवा साथियों की मदद ली जा सकती है। परेशानी फिर भी कम नहीं हो रही है तो मनोचिकित्सक से सलाह ले सकते हैं।

मेडिटेशन से निकल सकता है हल

मनोस्वास्थ्य विशेषज्ञ अमब्रिन रहमान के मुताबिक मानसिक समस्या का हल मेडिटेशन से संभव है। भागदौड़ की जिंदगी में लोगों के लिए तनाव आम बात होती है। इसे लेकर किसी तरह का आत्मघाती कदम उठाना हल नहीं है। लोगों को नियमित रूप से मेडिटेशन को अपनाना चाहिए, जिससे वे संतुलित जीवनशैली अपना सकते हैं।

प्राथमिक स्तर पर उपचार

विशेषज्ञों की मानें तो बदलती जीवनशैली में मानसिक अवसाद की शिकायतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसे रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग के स्तर पर भी बड़े प्रयास की आवश्यकता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मनोचिकित्सकों की नियुक्ति कर वहां ऐसे लोगों की काउंसिलिंग, उपचार और जरूरी दवा की व्यवस्था की जानी चाहिए।

मौसम नहीं होती वजह

अक्सर ये बातें सामने आती रहती हैं कि गर्मी के दिनों यानी मार्च अप्रैल के महीने में आत्महत्या के मामले बढ़ जाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक मौसम का इस मामले से कुछ लेना-देना नहीं होता। यह समय वित्तीय वर्ष की समाप्ति का होता है, इसके अलावा परीक्षाओं का दौर चलता है और लोगों में तनाव अधिक होता है, इसलिए घटनाएं बढ़ जाती हैं। केंद्रीय आंकड़ों के मुताबिक 20 से 30 साल के युवा अपनी परेशानियों को लेकर इस तरह का रास्ता चुनते हैं।

                              आंकड़ों में आत्मघाती कदम

                 माह                      संख्या
                जनवरी                         83
               फरवरी                         58
                 मार्च                       84
                अप्रैल                         48
                  मई                         56
                  जून                           57
                 जुलाई                         52
                अगस्त                       36
                सितंबर                             31
                अक्टूबर                       44
                नवंबर                       43
                दिसंबर                         47


■ 108 संजीवनी सेवा की मदद से सालभर में 629 लोगों को अस्पताल तक पहुंचाया गया।
■ सही समय पर अस्पताल पहुंचने की वजह से इनमें से कई लोगों की जान बचा ली गई।
■ आंकड़ों के मुताबिक 20 से 30 साल के युवा परेशानियों को लेकर इस तरह का रास्ता चुनते हैं।

रोकी जा सकती हैं 80 फीसदी घटनाएं

मनोस्वास्थ्य विशेषज्ञ डीएस परिहार के मुताबिक आत्महत्या की घटनाएं लगतार बढ़ती जा रही हैं। लोग मामूली बातों को लेकर इस तरह का आत्मघाती कदम उठाते हैं। परिवार, समाज के लोगों को जिम्मेदारी होती है कि किसी के व्यवहार में अगर बदलाव आ रहा है तो उसे गौर करें, इससे 80 फीसदी प्रकरणों को रोका जा सकता है।