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मां लिंगेश्वरी का मंदिर की खासियत यह है कि, जिन दंपतियों को संतान की प्राप्ति नहीं होता है। वे लोग मां लिंगेश्वरी मंदिर में आकर सच्चे मन से पूजा करते हैं।

भरत भारद्वाज-फरसगांव।  देवी-देवताओं की धार्मिक आस्था के लिए पूरे विश्व में प्रख्यात बस्तर के खूबसूरत वादियों में शिवलिंग के अवतार में मां लिंगेश्वरी विराजमान हैं। कोंडागांव जिले के फरसगांव ब्लाक अंतर्गत ग्राम आलोर झाटीबन की पहाड़ी के गुफा में मां लिंगेश्वरी का मंदिर है। यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में भक्त अलग-अलग राज्यों से अपनी मन्नत की कामना लिए दर्शन करने आते हैं। इसमें अधिकांश निःसंतान दंपती संतान प्राप्ति के लिए यहां आते हैं। हर वर्ष की तरह इस वर्ष की मंदिर समिति के पुजारियों द्वारा मां लिंगेश्वरी की विधि-विधानपूर्वक पूजा- अर्चना कर गुफा के सामने रखे पत्थरों को हटा कर द्वार खोला गया। समिति के पांच पुजारियों द्वारा गुफा में प्रवेश कर मां लिंगेश्वरी की पूजा की। इसके बाद श्रद्धालुओं को माता के दर्शन हो पाए।

दिखे बिल्ली के पदचिह्न, पुजारियों ने बताया अशुभ-अशांति के संकेत 

प्रतिवर्ष की भांति गुफा के अंदर प्रवेश कर रेत पर पद चिन्हों की खोज शुरू हुई। इस वर्ष गुफा के अंदर रेत पर बिल्ली के पद चिन्ह के निशान मिले। समिति के सदस्यों ने इन पद चिन्हों का मतलब बताया कि बिल्ली के पद चिन्ह अशुभ-अशान्ति के संकेत है।

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हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु

बुधवार को समिति के पुजारियों द्वारा सुबह गुफा मंदिर का द्वार खोला गया, जिसके बाद श्रद्धालुओं को माता के दर्शन करने दिया गया। पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी भीड़ को देखते हुए दर्शनार्थियों के गुफा मंदिर में प्रवेश करने नहीं दिया गया। सभी गुफा के बाहर से ही माता के दर्शन किए। निःसन्तान दम्पति सन्तान की कामना की मन्नत लेकर पहुंचे। वहीं ऐसे श्रद्धालु जिनके मन्नत पूर्ण हुई, वे अपनी संतान के साथ माता के दर्शन करने पहुंचे। मंदिर के नीचे हजारों की संख्या में श्रद्धालु कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर माता के दर्शन किए। 

निःसंतान दंपती को माता के आशीर्वाद से होती है संतान

पुजारी मां लिंगेश्वरी मंदिर के पुजारी नंदलाल दीवान ने बताया कि, इस मंदिर की खासियत यह है कि जिन दंपतियों को संतान की प्राप्ति नहीं होता है। वे लोग मां लिंगेश्वरी मंदिर में आकर सच्चे मन से पूजा करते हैं। निसंतान दंपतियों द्वारा खीरा चढ़ाया जाता है। फिर खीरे को पुजारी द्वारा प्रसाद स्वरूप दंपती को देते और उनके द्वारा नाखून से खीरे को दो हिस्सा कर खाते हैं। इसके बाद ही उन सभी लोगों की मनोकामना पूरी होती है।

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