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अपनी संतान के जीवन को सुंदर और मजबूत बनाने के लिए एक पिता जीवनभर संघर्ष करता है। 

रविकांत सिंह राजपूत - मनेंद्रगढ़। घर में पहला बच्चा पैदा होने के 6 माह बाद ही माँ सावित्री देवी का पीलिया से निधन हो गया। साल भर बाद भी जब 6 माह का पवन 1 साल से ज्यादा का हो गया तो पता चला कि बेटा पैर से दिव्यांग है। बच्चे की हड्डियां 18 बार टूटी। जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही थी बेटे पवन की शारीरिक दिक्कतें भी बढ़ रही थीं। लेकिन पवन के पिता हृदेश प्रसाद दुबे का हौसला नहीं टूटा। पत्नी के निधन के बाद हृदेश ने पिता के साथ ही मां की भूमिका भी बेटे पवन के लिए बखूबी निभाई। जब पवन 3 साल के पार हुआ तो बच्चे के दिव्यांग होने के कारण ही पिता हृदेश प्रसाद दुबे बेटे पवन को रोजाना कंधे में बैठकर स्कूल लाने ले जाने लगे। 

धीरे धीरे पवन थोड़ा बड़ा हुआ तो कंधे में स्कूल ले जाना संभव नहीं था और स्कूल बस की फीस ज्यादा थी तो आर्थिक संकट की कमी के कारण पिता हृदेश ने दिव्यांग बेटे पवन के स्कूल जाने के लिए रिक्शा लगवा दिया। पवन ने यहां रोजना रिक्शे में बैठकर आकर सरस्वती शिशु मंदिर मनेन्द्रगढ़ से 12 वी की पढ़ाई पूरी की। फिर शासकीय विवेकानंद महाविद्यालय से पवन ग्रेजुएट हुए अब शहर से लगे चैनपुर ग्राम पंचायत स्थित प्राथमिक शाला में प्रधान पाठक के पद पर पदस्थ होकर ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं। इसके साथ ही अब पवन के पिता हृदेश प्रसाद दुबे की उम्र 74 साल की हो गई है।

पिता ने कहा-मैंने फर्ज निभाया अब बेटा निभा रहा है

पवन के बचपन की फोटो दिखाते हुए पवन के पिता जी हृदेश दुबे की आंखे भर आईं। रुंधे गले से उन्होंने बताया कि जब 6 माह का था तो पत्नी का निधन हो गया मैंने ही पिता के साथ साथ मां की जिम्मेदारी निभाई आज पढ़ लिखकर पवन टीचर बन गया है। अपने स्कूल का प्रधान पाठक है और अब वह मेरा इकलौता सहारा है। मैंने पिता होने का फर्ज निभाया और आज पवन बेटे का फर्ज निभा रहा है।
 

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