एनिशपुरी गोस्वामी- मोहला। देशभर में नवरात्रि का पावन पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया गया। वहीं छत्तीसगढ़ के मोहला-मानपुर-चौकी में एक ऐसा गांव है] जहां देवी-देवताओं की पूजा नहीं होती। गांव से लेकर घरों तक में कोई मूर्ति या फोटो स्थापित नहीं है।
उल्लेखनीय है कि, यह गांव मोहला के अंतिम छोर पर पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। जो औँधी तहसील के ग्राम पंचायत पेंदोडी का आश्रित ग्राम है। यहां लगभग सात परिवार कई वर्षों से निवास कर रहे हैं। आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले वर्षों से मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहे हैं। इस गांव के लोग आज वर्तमान में भी प्रकृति की पूजा करते हैं। यहां के ग्रामीण अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं को मानते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ का ऐसा अनोखा गांव। यहां के लोग देवी-देवताओं को नहीं जानते। प्रकृति ही पूजा है। @MMACDistrict_CG #ChhattisgarhNews #Village pic.twitter.com/ByHZkGszEy
— Haribhoomi (@Haribhoomi95271) April 7, 2025
प्रकृति ही है भगवान और पालक
जानकारी के अनुसार, यहां के ग्रामीणों ने कभी देवी-देवताओं की तस्वीर तक नहीं देखी है। यहां के लोग केवल प्रकृति से जुड़ी चीजों को ही भगवान मानते हैं। यहां हर एक व्यक्ति तुलसी के पौधे, बूढ़ा देव और प्राकृतिक पत्थरों को ही अपना भगवान मानते हुए इनकी पूजा करते हैं। यहां निवासरत आदिवासी परिवारों के लिए प्रकृति ही इनका भगवान और पालक हैं। गांव के लोग इसे अपना धर्म और प्रकृति का अनूठा संगम मानते हैं। इनका मानना है कि, हम सब प्रकृति से जुड़े हैं और हम जिन्हें मानते है वो हमारी रक्षा करते आ रहे हैं।

नक्सलियों का गढ़ रहा है यह क्षेत्र
मोहला-मानपुर, अंबागढ़-चौकी जिले के आखिरी और महाराष्ट्र बॉर्डर पर लगे ग्राम मेटाटोडके घनघोर जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां कुछ वर्ष पहले नक्सलियों ने अपना साम्राज्य खड़ा किया था। यहीं से वे कांकेर, महाराष्ट्र और राजनांदगांव जिले में बड़ी-बड़ी वारदातों को अंजाम देते आए हैं।
छत्तीसगढ़ के मोहला के आखिरी और महाराष्ट्र बॉर्डर पर लगे ग्राम मेटाटोडके घनघोर जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ। यह क्षेत्र पहले नक्सलियों का गढ़ रहा है। @MMACDistrict_CG #Chhattisgarh #Village pic.twitter.com/rLreK51kjc
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सालों बाद यहां पहुंचने लगा विकास
यहां के निवासी आदिवासी परिवार आजादी के 78 सालों तक झरिया का पानी पीते थे, और अंधेरे में जीवन काटते आए हैं। स्थानीय पत्रकारों की खबर के बाद प्रशासनिक स्तर पर यहां एक हैंड पंप और सोलर सिस्टम से पानी देने की व्यवस्था की गई है। बिजली के खंभे भी धीरे-धीरे गांव तक पहुंचने लगे हैं। बिजली कब मिलेगी इसका अनुमान अंदाजा अभी नहीं है। बच्चों के शिक्षा और राशन के लिए ग्रामीणों को पगडंडी रास्तों से कई किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। बरसात में पूरा गांव टापू बन जाता है, जिससे ग्रामीणों को आने-जाने में काफी समस्या होती है।