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आज राष्ट्रीय वन शहीद दिवस है। रायपुर में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। जानिए इस दिन का इतिहास... कैसे लगभग 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

रायपुर। रायपुर में आज राष्ट्रीय वन शहिद दिवस मनाया जाएगा। इस अवसर पर सुबह 11 बजे ऊर्जा पार्क में कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। वहीं दोपहर 3 बजे पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में भी कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। 

सीएम साय इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहेंगे। वन मंत्री केदार कश्यप कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे। सांसद बृजमोहन अग्रवाल, विधायक राजेश मूणत, पुरंदर मिश्रा, मोतीलाल साहू भी शामिल होंगे। 

11 सितंबर को मनाया जाता है राष्ट्रीय वन शहीद दिवस

बता दें कि, हर साल 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन अनगिनत कार्यकर्ताओं के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने भारत के जंगलो, और वन्यजीवों की रक्षा के लिए अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया। 

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2013 में आधिकारिक तौर पर लिया गया फैसला 

इसे लेकर साल 2013 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय वन शहीद दिवस की स्थापना की। यह दिन 11 सितंबर 1730 में पेड़ों को बचाने के लिए बिश्नोई समाज के दिए बलिदान को याद करने, उन्हें सम्मान देने और पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। 

जानिए राष्ट्रीय वन शहीद दिवस का इतिहास 

11 सितंबर 1730 को खेजड़ली नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन राजस्थान के जोधपुर जिले के केहजरली गांव में बिश्नोई समाज के लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। दरअसल, उस समय के राजस्थान, जोधपुर के राजा अभय सिंह ने ईंधन और लकड़ी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पेड़ों की कटाई के लिए भेजा था। जब सैनिक गांव पहुंचे तो बिश्नोई समाज के लोगों ने इसका विरोध किया। 

अमृता देवी और चिपकू आंदोलन 

बिश्नोई समाज में पेड़ों को माता का दर्जा दिया गया है। इसलिए पेड़ों की कटाई उनके बर्दाश्त के बाहर थी। ग्रामीणों ने सैनिकों का जमकर विरोध किया। इस विरोध के बाद भी सैनिक पीछे नहीं हटे और पेड़ों की कटाई शुरू कर दी। इस पर समाज की एक महिला अमृता देवी ने एक पेड़ को गले लगा लिया और सैनिकों से कहा कि, अगर पेड़ काटना है तो पहले मेरा सामना करें। निर्दयी सैनिकों ने अमृता सहित पेड़ काट दिया। इससे आक्रोशित ग्रामीणों ने चिपकू आंदोलन की शुरूआत की और लगभग 363 बिश्नोई समाज के लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी। जब इस घटना की जानकारी राजा अभय सिंह को मिली तो उन्होंने तुरंत पेड़ों की कटाई रूकवा दी और अपने सैनिकों को वापस बुला लिया। 

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वन संरक्षण के लिए जागरूक करने किए जाते हैं कई आयोजन

यह समाज पर्यावरण संरक्षक के रूप में विख्यात है। इस घटना में शहीद हुए लोगों के बलिदान को सम्मान देने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2013 में आधिकारिक तौर पर 11 सितंबर को इस दिवस के रूप में घोषित किया। तब से यह दिवस हर साल मनाया जा रहा है। इस दिन विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में आयोजन किया जाता है। इन आयोजन के जरिए पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक किया जाता है। 

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