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कोर्ट ने सायबर थानों में स्टाफ की कमी दूर करने के लिए शपथपत्र के साथ जवाब देने के निर्देश दिए हैं। इसमें बताया गया कि प्रदेश में सिर्फ 3 सायबर इंस्पेक्टर हैं।

बिलासपुर। प्रदेश में सायबर क्राइम निरंतर बढ़ते जा रहे हैं, बड़ी संख्या में आम लोग साइबर ठगों के शिकार हो रहे हैं। इस मामले में समाचार माध्यमों में खबर प्रकाशित होने के बाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। इसके बाद चीफ जस्टिस की डिविजन बेंच ने जनहित याचिका के रूप में सुनवाई शुरू की है। कोर्ट ने सायबर थानों में स्टाफ की कमी दूर करने के लिए शपथपत्र के साथ जवाब देने के निर्देश दिए हैं। इसमें बताया गया कि, प्रदेश में सिर्फ 3 सायबर इंस्पेक्टर हैं। 

कोर्ट ने कहा कि, इतने कम स्टाफ में मामलों की जांच और कैसे हो रही है। साइबर क्राइम के कितने प्रकरण लंबित हैं, शपथपत्र के साथ यह जानकारी देने कहा है। याचिका में बात सामने आई है कि साइबर क्राइम के मामलों को सुलझाने के लिए पुलिस जवानों को ट्रेनिंग नहीं दी जा रही है। साइबर सेल के  तकनीकी स्टाफ थानों के स्टाफ को ट्रेनिंग दे सकते हैं, जिससे साइबर क्राइम से जुड़े बहुत से काम थाना स्तर पर ही सुलझाया जा सकता है। पिछले कई साल से थानों के जवानों को साइबर क्राइम की विवेचना संबंधी ट्रेनिंग नहीं दी गई है। इससे थानों की निर्भरता साइबर सेल पर ही है।

सभी थानों में एक्सपर्ट की आवश्यकता

रेंज मुख्यालय होने के कारण यहां अपराध भी अधिक होते हैं। खासकर साइबर क्राइम के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके लिए हर थाने में एक तकनीकी स्टाफ की आवश्यकता है, ताकि वह थाना स्तर पर ही कॉल डिटेल, कॉल डंप, लोकेशन आदि की जांच खुद कर सके। इसके लिए उसे साइबर सेल में निर्भरता की जरूरत न पड़े। वर्तमान में साइबर सेल के पास ऑनलाइन ठगी व अन्य साइबर क्राइम के मामले तो रहते ही हैं, लेकिन थानों के भी बहुत से काम उन्हीं के पास आता है। इस कारण देरी होती है।

10-20 हजार की ठगी पर ध्यान नहीं देते

ध्यान रहे कि आधे से ज्यादा शिकायतें 10 हजार -20 हजार की ठगी वाले होते हैं। इन पर पुलिस ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती है। अधिक राशि की ठगी वाले मामलों में पुलिस तत्काल एक्शन लेती है। इसकी बड़ी वजह तकनीकी स्टाफ की कमी है। बिलासपुर रेंज की ही बात करें तो साइबर सेल में टेक्नीकल स्टाफ की भारी कमी है। कुछ कर्मियों के भरोसे पूरे रेंज का काम चल रहा है। ऑनलाइन ठगी के अलावा अपराधी की बड़ी घटनाओं में इसी टीम से काम लिया जाता है। इसके अलावा अपराधियों को पकडने के लिए तकनीकी जांच भी इन्हीं के जिम्मे होता है। इस कारण साइबर क्राइम के मामलों का निपटारा काफी धीमि गति से होता है।

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