छत्तीसगढ़ की माटी में संस्कृति की महक है, कला के रंग हैं, आस्था और विश्वास है, सभ्यता की विरासत है। ऐसी ही धरोहरों की धरती है राजिम। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर गरियाबंद जिले में चित्रोत्पला (महानदी), पैरी और सोंढूर नाम की तीन नदियों के संगम पर स्थित राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग माना जाता है। यहां राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं, कुलेश्वर मंदिर में भगवान शिव का वास है। तीन नदियों के संगम के चलते इसे छत्तीसगढ़ की त्रिवेणी संगम भी कहते हैं।
राजीव लोचन मंदिर
राजीव लोचन मंदिर में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्प का अनूठा संगम है। ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व के मन्दिरों में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्पकला का अनोखा समन्वय नजर आता है। राजिम में मिले दो अभिलेखों के अनुसार इस मन्दिर को राजा जगतपाल ने बनवाया थे। इनमें से एक अभिलेख राजा वसंतराज से सम्बंधित है। लक्ष्मण देवालय के एक दूसरे अभिलेख से पता चलता है कि इस मन्दिर को मगध नरेश सूर्यवर्मा की पुत्री और शिवगुप्त की माता ‘वासटा’ ने 8वीं सदी में बनवाया था। मुख्य राजीव लोचन मंदिर के दर्शन के बाद पास में ही दूसरे परिसर में और भी मंदिर हैं। मध्य क्षेत्र में स्थित राजीव लोचन मंदिर के पश्चिम की ओर दूसरे परिसर में राजराजेश्वर, दान-दानेश्वर, राजिम भक्तिन तेलिन और सती माता का मंदिर है।
बुद्ध की प्रतिमा भी
राजीवलोचन मन्दिर के पास 'बोधि वृक्ष' के नीचे तपस्या करते बुद्ध की प्रतिमा भी स्थापित है। राजिम को प्राचीन वक्त में पद्मक्षेत्र भी कहा जाता था। पद्मपुराण, पातालखण्ड में भी इसका जिक्र है। राजिम के देवालय 7वीं 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के बीच बने हुए हैं। राजिम का इलाहाबाद के संगम की तरह धार्मिक महत्व है। श्रद्धालुओं के अनुसार यहां पिण्डदान करने से मोक्ष मिल जाता है। नदी के किनारे भूतेश्वर और पंचेश्वर नाथ महादेव के मंदिर हैं और त्रिवेणी के बीच में कुलेश्वर नाथ महादेव का शिवलिंग स्थित है।
कुलेश्वर महादेव
संगम के बीच में स्थित है कुलेश्वर महादेव'' मंदिर। कहा जाता है कि वनवास काल में भगवान राम ने यहां महादेव और सूर्यदेव की पूजा की थी। ये मंदिर स्थापत्य का बेजोड़ नमूना होने के साथ-साथ प्राचीन भवन निर्माण तकनीक का बेहतरीन उदाहरण भी है। बरसात के दौरान नदी में बाढ़ से उसकी रक्षा के लिये चबूतरे को विशेष रुप से ऊंचा बनाया गया है। कुछ सालों पहले जब नदी पर बांध नहीं बने थे तब उसकी उफनती जलधारा कहर बरपाती थी। उस समय भी अपने बेहतरीन अष्टकोणीय ढांचे पर आसानी से पानी की मार झेलता ये मंदिर खड़ा रहा। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग पर भी लोगों की गहरी आस्था है।
हर साल लगता है माघी पुन्नी मेला
छत्तीसगढ़ के प्रयाग राजिम में हर साल छत्तीसगढ़ सरकार और पर्यटन विभाग की ओर से सर्वाधिक बड़ा और जनप्रिय मेला राजिम माघी पुन्नी मेला का आयोजन किया जाता है। राजिम मेले को माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक मनाए जाने के पीछे विशेष महत्व है। माघ पूर्णिमा भगवान राजीव लोचन का अवतरण दिवस है। भक्त 15 दिनों तक मेले के रूप में उत्सव मनाते हैं। राजिम मेला तीन नदियों के संगम स्थल पर रेत में आयोजित होता है। साधु संतों के पंडाल से लेकर सांस्कृतिक महोत्सव स्थल सब कुछ नदी की रेत में आयोजित होता है। वहीं मुख्य मंच पर प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। स्थानीय कलाकारों से लेकर प्रदेश के नामी कलाकार यहां अपनी प्रस्तुति देना सौभाग्य समझते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों से भी कलाकार यहां अपनी कला का प्रदर्शन करने पहुंचते हैं। यहां कुलेश्वर महादेव के दर्शनों के बाद श्रद्धालुओं का जत्था हर-हर महादेव जपते पटेश्वर महादेव पटेवा, चम्पेश्वर महादेव चंपारण, फिगेंश्वर महादेव फिंगेश्वर और कोपेश्वर महादेव कोपरा के स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन कर परिक्रमा पूरी करते हैं।
ऐसे पहुंचे राजिम
आप हवाई मार्ग, रेल मार्ग, और सड़क मार्ग से आसानी से राजिम पहुंच सकते है। राजिम का निकटतम हवाई अड्डा रायपुर में है, जो राजिम से सिर्फ 45 किलोमीटर दूर है। निकटतम रेलवे स्टेशन राजिम रेलवे स्टेशन ही है। अन्य निकटतम रेलवे स्टेशन रायपुर है।