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छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक दूधाधारी मठ के तत्कालीन महंत वैष्णवदास को मंदिर आंदोलन का हिस्सा होने की वजह से अयोध्या में नजरबंद भी रहना पड़ा था।

 ■ राम मंदिर आंदोलन में छत्तीसगढ़ के कारसेवकों की भी रही बड़ी भूमिका

■ कई कारसेवक पहुंचे थे जेल, संघर्ष याद कर भावुक हो जाते हैं आंदोलनकारी

रायपुर। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा की तारीख जैसे जैसे करीब आ रही है, उन भक्तों का खुद के भावों पर नियंत्रण कठिन होता जा रहा है, जो राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा रहे। छत्तीसगढ़ के हजारों रामभक्त इस आंदोलन से जुड़े रहे। छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक दूधाधारी मठ के तत्कालीन महंत वैष्णवदास को मंदिर आंदोलन का हिस्सा होने की वजह से अयोध्या में नजरबंद भी रहना पड़ा था। महंत वैष्णवदास के शिष्य और वर्तमान पीठाधीश्वर महंत रामसुंदर दास बताते हैं, महंत वैष्णवदास तब अखिल भारतीय रामानंद संप्रदाय के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।

साधु संतों के आह्वान पर वे 1 जनवरी 1992 को अयोध्या जाने रायपुर से रवाना हुए। फैजाबाद की सीमा पर पहुंचते ही उन्हें पुलिस ने वहां जाने से रोक दिया। वे सर्किट हाउस में ही नजरबंद कर दिए गए। जब महंत वैष्णवदास ने अयोध्या जाने देने या रायपुर लौटने देने की बात कही, तो उन्हें वापस फैजाबाद की सीमा तक छोड़ा गया। लौटते हुए अमरकंटक में उन्हें पता चला कि विवादित ढांचा को गिरा दिया गया है। दूधाधारी मठ से जुड़े अन्य कारसेवकों की भी राम मंदिर आंदोलन में हिस्सा लिया।

खेतों से कूदते पहुंचे थे कारसेवक

साल 1992 के राम मंदिर आंदोलन में शामिल रहे बजरंग दल के तत्कालीन अध्यक्ष नरेंद्र यादव बताते हैं, यहां से 150 कारसेवक अयोध्या के लिए निकले थे। अयोध्या तक बेहद कम कारसेवक पहुंचने में सफल रहे थे। नरेंद्र यादव बताते हैं, वे उन चुनिंदा लोगों में शामिल थे, जो 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे तक पहुंच सके थे। खेतों से कूदते और मेढ़ों को पार करते वे परिसर तक पहुंचे थे।

आज भी सुरक्षित हैं दस्तावेज-तस्वीरें

उन्हें विवादित जमीन को समतल करने का काम मिला था। बाद में उन्हें जेल की यात्रा भी करनी पड़ी थी। नरेंद्र यादव उन पलों को याद कर आज भी भावुक हो जाते हैं। उनके पास आज भी मंदिर आंदोलन की तस्वीरें, सुनवाई की पेपर कटिंग और जेल यात्रा के दस्तावेज से लेकर शीलापूजन की ईंट भी सुरक्षित है।

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