संतोष कश्यप-अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में परसा कोल ब्लाक के पास गुरुवार की सुबह ग्रामीण और पुलिस के बीच खूनी संघर्ष हो गया। टीआई, एसआई, प्रधान आरक्षक, कोटवार सहित 6 पुलिसकर्मी घायल हो गए। यह घटना सरगुजा जिले के परसा कोल ब्लॉक की है।
अंबिकापुर। परसा कोल ब्लॉक में पेड़ कटाई को लेकर स्थानीय आदिवासियों और पुलिस के बीच जमकर मारपीट हुई. @SurgujaDist @SurgujaP #Chhattisgarh #savetree #tribals pic.twitter.com/JWIgbWHwHs
— Haribhoomi (@Haribhoomi95271) October 17, 2024
मिली जानकारी के अनुसार, सरगुजा जिले के परसा कोल ब्लॉक में पुलिस के बल पर पेड़ों की कटाई हो रही है। सैंकड़ों ग्रामीण इसका विरोध कर रहे थे। इसी दौरान पुलिस और ग्रामीणों के बीच खूनी संघर्ष हुआ। ग्रामीणों ने पुलिस वालों पर तीर-धनुष, गुलेल और पत्थरों से हमला कर दिया। हमले में टीआई, एसआई, प्रधान आरक्षक, कोटवार सहित 6 पुलिसकर्मी घायल हो गए। घटना के बाद से परसा गांव छावनी में बदल गया है।
अंबिकापुर। परसा कोल ब्लॉक में ग्रामीणों और पुलिस के बीच खूनी झड़प हुई। #SaveHasdev @SurgujaDist @SurgujaP #Chhattisgarh @vishnudsai #Adani @narendramodi @bhupeshbaghel pic.twitter.com/BGwL4eENbs
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राजस्थान सरकार को आवंटित की गई हैं खदाने
उल्लेखनीय है कि, हसदेव अरण्य की तीन खदानें परसा ईस्ट केते बासन, परसा और केते एक्सटेंशन राजस्थान सरकार को आवंटित की गई हैं। जिन्हें राजस्थान सरकार ने एमडीओ के तहत अडानी समूह को दिया गया है। इस खदान से निकलने वाले कोयले के एक बड़े हिस्से का उपयोग, अडानी समूह अपने बिजली संयंत्रों के लिए करता है। परसा ईस्ट केते बासन के दो चरणों में खनन के अलावा अब परसा कोयला खदान में खनन के लिए पेड़ों की कटाई शुरु की गई है। वहीं वर्ष 2009 में कराई गई वृक्ष गणना के अनुसार 30 सेमी से अधिक परिधि वाले 2.47 लाख पेड़ परसा ईस्ट केते बासन में काटे जाएंगे। इसी तरह परसा में 96 हज़ार पेड़ काटे जाएंगे।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन कर रहा है विरोध
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने कहा कि, परसा कोल ब्लॉक के लिए वन और पर्यावरणीय स्वीकृतियां फर्जी दस्तावेजों पर आधारित है। जिन्हें तत्काल रद्द करना चाहिए। हसदेव के प्राचीन और अविघटित वन मध्य भारत का फेफड़ा कहलाते हैं। यहां के पेड़ और नदी, नाले ही मध्य और उत्तर छत्तीसगढ़ में स्वच्छ जल वायु उत्पन्न करने का काम करते हैं। यहां के आदिवासियों ने सदियों से इन जंगलों को सुरक्षित रखा है, जिस कारण आज भी बिलासपुर और कोरबा जैसे शहरों में पीने का पानी मिल रहा है।