रायपुर। लोगों के लिए राज्यभर में आवास बनाने वाले हाउसिंग बोर्ड के कई प्रोजेक्ट का हाल ऐसा है कि सुरक्षा व्यवस्था की कमी के कारण निर्माण किए गए कई मकानों के दरवाजे और खिड़कियां भी चोरी हो गई हैं। हालत यह है कि सूनसान इलाकों में बने इनके कई प्रोजेक्ट को खरीदार नहीं मिल रहे हैं। वहीं, जिन्होंने यहां मकान खरीदे हैं, वे भी दूरी के कारण यहां रहने नहीं आ रहे हैं। राजधानी में ही खिलौरा, बोरिया जैसे इलाकों में पूरे मकान नहीं बिक पाए हैं।

हरिभूमि ने जगदलपुर, दुर्ग, भिलाई और राजनांदगांव में दूर- दराज इलाकों में बने इनके प्रोजेक्ट का मुआयना किया है। बस्तर संभाग के विभिन्न जिलों में हाउसिंग बोर्ड ने आवास एवं अटल विहार योजना में तीन अरब की लागत से 10 वर्षों में दो हजार से ज्यादा आवास का निर्माण किया है, पर निर्माणाधीन कॉलोनी में सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने से सूनसान आवासों के खिड़की-दरवाजे गायब हो गए है। यह हालत संभागीय मुख्यालय से लगभग 18 किमी दूर ओडिशा रोड में ग्राम चोकावाड़ा में हाउसिंग बोर्ड ने लगभग 11 करोड़ रुपए की लागत से 7 वर्ष पूर्व 265 आवासों का कॉलोनी निर्माण किया था। 

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कॉलोनी में सुरक्षा की व्यवस्था नहीं होने से एचआईजी क्रमांक 1, 5, 13, एलआईजी 13,14 आवासों के खिड़की एवं दरवाजे गायब हो गए, ऐसे आवास सूनसान हैं क्योंकि आवास के मालिक महीनों से कॉलोनी में नहीं पहुंचे। हालांकि इस कॉलोनी के आवास में ज्यादातर किराएदार ही रहते हैं। कालोनीवासियों ने बताया कि कॉलोनी में नहीं पहुंचे। हालांकि इस कॉलोनी के आवास में ज्यादातर किराएदार ही रहते हैं। कालोनीवासियों ने बताया कि कई बार बोर्ड में कालोनी में सुरक्षा व्यवस्था की मांग की गई पर ध्यान नहीं दिया गया, इससे कॉलोनीवासी परेशान है। साथ ही  कॉलोनी में जाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग से कांक्रीट सड़क का निर्माण किया गया जो ओवरलोड वाहनों के चलते जर्जर हो गया है, जहां लोग दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग से कॉलोनी जाने के लिए एनएच में बोर्ड नहीं होने से कई बार भटक जाते हैं।

शहर से दूर हुआ, प्रोजेक्ट तो नहीं निकली लागत राशि 

राजनांदगांव में हाउसिंग बोर्ड के कुछ प्रोजेक्ट शहर से दूर होने के चलते वर्षों बीत जाने के बाद भी हाउसिंग बोर्ड को अपनी लागत राशि भी निकलना मुश्किल हो गया है। राजनांदगांव शहर में हाउसिंग बोर्ड के कई कॉलोनी है जो बिक चुकी है और नगर निगम को हैंडोवर भी कर दिया गया है, लेकिन शहर से दूर ग्रामीण क्षेत्र के प्रोजेक्ट सस्ती दर पर होने के बाद भी नहीं बिके हैं और मकान वर्षों से पड़े खंडहर में भी तब्दील हो रहे हैं। हाउसिंग बोर्ड द्वारा शहर के समीप मनकी, टेडेसरा और शहर के बीच कौरिनभांठा, चिखली जैसे क्षेत्रों में मकान बनाए गए हैं। जिसमें शत प्रतिशत मकान बिक चुके हैं। वहीं कौरिनभांठा क्षेत्र में बने कॉलोनी के चंद मकान यहां सुविधाओं के अभाव के चलते बिक्री के लिए बचे हैं। जिनकी खिड़कियां दरवाजे भी टूट गए हैं।

दो प्रतिशत मकान की ही बिक्री

हाउसिंग बोर्ड द्वारा राजनांदगांव शहर से काफी दूर मुड़िया मोहरा क्षेत्र में लगभग 98 मकान का अटल आवास प्रोजेक्ट के तहत 10-12 वर्षों पहले तैयार किया गया। यहां मकान बनाकर तैयार भी हो गए, लेकिन इन मकान में से लगभग 15-20 मकान ही बिक पाए हैं। जबकि 1 बीएचके बनाए गए इन मकानों की कीमत लगभग 1 लाख 26 हजार ही है। जो 400 स्क्वायर फीट में निर्मित है। शहर से लगभग 26 किलोमीटर दूर होने की वजह से यहां निर्मित मकान अब तक नहीं बिक पाई है।

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आठ साल से चार सौ मकान जर्जर, 60 करोड़ रुपए जाम

दुर्ग-भिलाई में हाउसिंग बोर्ड द्वारा आठ साल पहले बनाए गए मकान की अब तक बिक्री नही होने से करोडों रुपए का नुकसान हो रहा है। दुर्ग जिले के तालपुरी, चरोदा हाईट, परसदा कुम्हारी और खारून में बनाए गए करीब चार सौ से अधिक मकान खंडहर हो गए हैं। जिसके चलते बोर्ड का करीब साठ करोड रुपए जाम हो गया हैं। हाउसिंग बोर्ड द्वारा वर्ष 2017-18 में इन चारों इलाकों में सैकड़ों मकान बनाए गए थे। वर्तमान में करीब चार सौ से अधिक मकान की बिक्री नहीं हो पाई हैं। हरिभूमि ने पडताल में पाया गया कि, लंबे समय से बिक्री नहीं होने के कारण मकान जर्जर हो चुके हैं। यहां मकान की खिड़की के दरवाजे गायब हैं, वही चरोदा हाईट के कई मकानों में खतरनाक दरारे भी आ गई हैं। यही हालात तालपुरी के फ्लैट, परसदा और खारून में हैं। अधिकारियों ने बताया कि, राज्य शासन को आबंटित नहीं किए गए मकानों की जानकारी भेजी गई हैं। बताया गया कि इन मकानों को वन टाइम सेटलमेंट के तहत सस्ते दर पर बिक्री किया जाएगा।

यहां जर्जर हो रहे इतने मकान

जानकारी अनुसार दुर्ग जिले के रिहायशी इलाको तालपुरी में 60 मकान, जिसकी कीमत 19 करोड़, चरोदा हाईट में 70 मकान, जिसकी कीमत आठ करोड़, परसदा कुम्हारी में 250 मकान, जिसकी कीमत 23 करोड़ और खारून में 39 मकान, जिसकी कीमत 10 करोड़ है। इनके बनने के बाद अब तक आबंटन नहीं हो पाया है। अफसरों का कहना है कि, आबंटन के बाद हितग्राही राशि जमा करने में रूचि नहीं दिखा रहे थे।