सचिन अग्रहरि- राजनांदगांव। देश में बढ़ती महंगाई का असर खेती-किसानी पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। पिछले पांच साल में खाद, बीज, डीजल और मजदूरी की रेट में दोगुना इजाफा होने के चलते किसानों को अब प्रति एकड़ 25 हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। किसानों का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा धान पर दिए जाने वाले बोनस से राहत मिलने के आसार थे, लेकिन इस साल बीज और मजदूरों के दाम में हुई बढ़ोत्तरी से उन पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने की दिशा में भले ही कई घोषणाएं और वायदे किए जा रहे हैं। लेकिन देश में लगातार बढ़ रही महंगाई से अब खेती- किसानी भी झुलस रही है। खेती-किसानी की तैयारियों में जुटे किसानों को खाद बीज महंगे दामों पर खरीदना पड़ रहा है।
अवती त्यौहार के निपटने के बाद किसानों ने अपना रूख खेतों की ओर कर दिया है। खेती-किसानी के लिए खाद और बीज की खरीदी के साथ-साथ किसानों ने खेतों की सफाई का काम भी शुरू कर दिया है। अगले माह मानसून के सक्रिय होते ही बुआई की प्रक्रिया शुरू होगी। इस बीच बीज के दामों में इस साल की गई बढ़ोतरी से किसानों के चेहरे मायूस दिखाई दे रहे हैं। किसानों का कहना है कि पिछले पांच साल पहले धान का बीज 30 से 40 रुपए किलो में मिल जाता था लेकिन अब यह 70 से 80 रुपए प्रति किलो मिल रहा है। वही हाल खाद का है। पहले यूरिया खाद 160 रुपए में मिलती थी, लेकिन अब यह 300 रूपार में मिल रही है। पांच साल पहले डीएपी का रेट 1700 रुपए था लेकिन अब यह 2400 रुपए हो गया है। पोटाश के दाम में भी काष्ठी बढ़ोतरी हुई है। कीटनाशक के दाम भी पांच सालों में 20 फीसदी तक बढ़ गए हैं। किसानों ने बताया कि प्रति एकड़ उन्हें पहले 12 हजार रुपए का खर्च आता था. लेकिन अब यह बढ़कर 25 हजार रुपए तक हो गया है।
कटाई के लिए हार्वेस्टर सस्ता
खेती-किसानी में महगाई का असर सिर्फ हार्वेस्टर पर नहीं पड़ा है। फसल की कटाई के लिए अधिकांश किसान हार्वेस्टर का ही उपयोग करते हैं। सर्वेस्टर के जरिये पहले प्रति एकड़ छह हजार रुपए खर्च होता था, लेकिन राज्य में अब गांव-गांव में हार्वेस्टर उपलब्ध हो जाने के चलते अब 3000 रुपए प्रति एकड़ में कटाई और मिजाई हो जाती है।
बैलों से जुताई से तौबा
एक समय में किसान अपने खेतों से दुआई के लिए बैलों का उपयोग करते थे लेकिन अब अधिकांल किसान ट्रैक्टर का सहारा ले रहे हैं। यही कारण है कि पिछले पांच साल में ट्रैक्टर से बुअर्थ कराने के दामों में भी बढ़ोतरी देखी गई है। पहले किसानों को प्रति घंटे पांच सौ रुपए में ट्रैक्टर मिल जाते थे, लेकिन अहा एक हजार रुपए घंटे में बुआई हो रही है।
मजदूरों का संकट
गांवों में खेती-किसाली करने के लिए मजदूरों का संकट भी देखा जा रहा है। किसालों का कहना है कि पहले महिला मजदूर 80 रुपए से 100 रूपए प्रतिदिल की रोजी में मिल जाती थी, लेकिन अब 250 रुपए देने पड़ते हैं। यही हाल पुरुष मजदूरों का है। इस सीजन में किसानों को 400 रुपए प्रतिदिन पर मजदूर मिल रहे हैं।