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छत्तीसगढ़ में आज भी एक ऐसा गांव है जहां के लोगों को पीने का साफ पानी नसीब नहीं है। यहां के ग्रामीण पीने और घरेलू उपयोग के लिए गांव के करीब से बहने वाली नदी से पानी लाने रोज जाते हैं।  

सुमित बड़ाई- पखांजूर। देश शहरी और कस्बाई इलाकों में आज बोतल बंद मिनरल वाटर पीने की होड़ मची हुई है। देश भर में हर घर नल से जल के दावे हो रहे हैं। केंद्र सरकार इसके लिए 'जल जीवन मिशन' चला रही है। लेकिन लगता है कि, छत्तीसगढ़ के पखांजूर इलाके के ग्राम पंचायत मंडागांव के आश्रित गांव मरकाचुआ तक सरकारी योजनाएं नहीं पहुंचतीं। यहां के ग्रामीणों को मिनरल वाटर तो छोड़िए, हैण्डपम्प का साफ पानी तक नसीब नहीं है। इस गांव के लोगों के लिए तो जीवन के लिए जल लाना ही मानो रोज का मिशन है। आज भी गांव के लोग रोज जंगलों के बीच बहने वाली नदी तक जाकर दूषित पानी लाने और उसी को पीने पर मजबूर हैं।

ग्राम पंचायत मंडागांव के आश्रित गांव मरकाचुआ के ग्रामीण साफ पानी के लिए तरस रहे हैं। मरकाचुआ में दो सौ लोग और बीजापारा में लगभग तेईस लोग रहते हैं। आजादी के सात दशक बाद भी ग्रामीण क्षेत्र में बहने वाली कोटरी नदी का दूषित पानी पीकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं। कोटरी नदी का दूषित पानी पीने के कारण ग्रामीण कई प्रकार की घातक बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। 

महिलाएं पानी भरती हैं, पुरुष डंडे लेकर रखवाली को जाते हैं

जीवन के लिए इस मज़बूरी को रोजमर्रा की दिनचर्या बनाने के आलावा ग्रामीणों के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। गांव की महिलाएं एक साथ दर्जनों की संख्या में नदी से पानी निकालती है। तेज धूप में भी तपती रेत के ऊपर से पानी निकालती हैं। पूरा इलाका जंगलों और पहाड़ों से घिरा है, ऐसे में भालू- सियार जैसे जंगली जानवरों के हमले का खतरा बना रहता है। जंगली जानवरों के हमले से बचने के लिए महिलाओं के साथ पुरुष भी लाठी लेकर जाते हैं। 

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तपती धूप में नदी से पानी ले जाती हुई गांव की महिलाएं

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पानी बचाने के लिए पत्तल में खाते हैं खाना

पानी की समस्या होने के कारण ग्रामीण जंगलों में लगे पौधों के पत्ते से पत्तल बनाकर उसी में भोजन करने को मजबूर हैं। ताकि बर्तन साफ़ करना न पड़े। ग्रामीणों ने कई बार पानी की समस्या की शिकायत की। लेकिन उनकी इस समस्या को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है। यही कारण है की ग्रामीणों को प्यास बुझाने के लिए दूषित पानी पीना पड़ रहा है।
 

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