Delhi Crime News: देश की राजधानी दिल्ली की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी भी यौन उत्पीड़न मामलों से अछूती नहीं है। जेएनयू में साल 2017 से लेकर अब तक यौन उत्पीड़न के 151 मामले दर्ज किए गए हैं। इसकी जानकारी एक आरटीआई रिपोर्ट से सामने आई है। आईटीआर रिपोर्ट से काफी खुलासे किए गए हैं।
'सुलझाए जा चुके 98 फीसदी मामले'
इन मामलों में आईटीआर का जवाब देते हुए यूनिवर्सिटी की तरफ से दावा किया गया है कि इन मामलों में से 98 फीसदी मामले सुलझाए जा चुके हैं और बाकी के तीन मामलों की जांच चल रही है। जब प्रशासन से पूछा गया कि यौन उत्पीड़न की ये शिकायतें किस तरह की शिकायतें थीं, तो गोपनीयता का हवाला देते हुए जानकारी नहीं दी गई।
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2018-19 में सबसे ज्यादा मामले
बता दें कि एक आरटीआई फाइल की गई थी, जिसके आधार पर पता चला है कि जेएनयू में यौन उत्पीड़न के 151 मामले दर्ज किए गए हैं। सबसे ज्यादा शिकायतें 2018-19 में मिली थीं, इसकी संख्या 63 है। कोविड 19 के दौरान 2019 से 2021 में मामलों में काफी गिरावट आई। साल 2023-24 में तीस मामले दर्ज किए गए और 2022-23 में भी यौन उत्पीड़न के तीस मामले दर्ज किए गए। 2021-22 में पांच केस दर्ज किए गए। 2020-21 में एक और 2019-20 में पांच मामले दर्ज किए गए। 2018-19 में यौन उत्पीड़न के 63 मामले और 2017-18 में 17 मामले दर्ज किए गए थे।
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छात्रा ने 12 दिन तक किया था अनशन
हाल ही के मामलों की बात करें, तो अप्रैल में सेकेंड ईयर की एक छात्रा ने 12 दिन तक अनशन किया था। उसने यूनिवर्सिटी के अधिकारियों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। छात्रा ने कहा था कि इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। इसके बाद यूनिवर्सिटी ने छात्रा और उसके समर्थकों पर दंड लगा दिया था। इसके अलावा अक्टूबर के महीने में 47 छात्राओं ने आईसीसी के पास यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी। छात्राओं का कहना था कि उनके साथ फ्रेशर्स पार्टी में यौन उत्पीड़न हुआ और हिंसा की गई। ऐसे कई मामलों को लेकर जेएनयू जांच के दायरे में है
'आईसीसी पर यकीन कर पाना मुश्किल'
बता दें कि साल 2017 में सेंसेटाइजेशन कमिटी अगेंस्ट सेक्शुअल हरासमेंट (GSCASH)की जगह जेएनयू ने इंटरनल कम्प्लेंट्स कमिटी (ICC) बनाई थी। छात्रों और अध्यापकों ने इसे हटाने को लेकर काफी विवाद किया था। कहा जा रहा है कि आईसीसी में ट्रांसपेरेंसी और ऑटोनॉमी की कमी है, जो कि GSCASH के पास थी। आईसीसी प्रशासनिक प्रभाव में काम कर रही है और ऐसे में आईसीसी पर यकीन कर पाना काफी मुश्किल है।
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