Delhi Lahore Conspiracy Story: देश की राजधानी दिल्ली इतिहास की कई घटनाओं की साक्षी रही है। यहां कई ऐसी इमारतें हैं, जिसे देखकर मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक भारतीयों पर किए गए अत्याचारों की कहानी ताजा हो जाती है। कल 23 दिसंबर है, जो कि दिल्ली के इतिहास से जुड़ी महत्वपूर्ण तारीख है। आज के दिन दिल्ली के चांदनी चौक पर ऐसा बम धमाका हुआ था, जिसके गूंज लाहौर से होते हुए लंदन तक पहुंची थी। ऐसे में भड़के अंग्रेजों ने 15 भारतीय क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया था। आज भी इसे दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। तो चलिये बताते है इसके पीछे की पूरी कहानी...
दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान, भड़के क्रांतिकारी
ब्रिटिश भारत में कोलकाता देश की राजधानी थी। ब्रिटिश शासन ने अपने कारोबार को विस्तार देने के लिए 12 दिसंबर 1911 को कोलकाता की बजाए दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने का ऐलान किया। विदेशी मेहमानों को बुलाया गया और भव्य आयोजन पैसे को पानी की तरह बहाया। यह पैसा भारतीयों पर अत्याचार करके वसूला गया था। अंग्रेज जहां भारतीय पैसे को पानी की तरह बहा रहे थे, वहीं पसीने को खून की तरह बहाने के बाद भी भारतीय पाई-पाई को मोहताज थे।
इससे बंगाल और पंजाब के क्रांतिकारियों में रोष उत्पन्न होने लगा। फैसला लिया गया कि दिल्ली जाकर ब्रिटिश शासन को सबक सिखाया जाएगा। इसके बाद 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली के चांदनी चौक में ऐसा बम धमाका हुआ, जिसने ब्रिटिश शासन को हिलाकर रख दिया।
दिल्ली के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर फेंका गया बम
दिल्ली के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग 23 दिसंबर 1912 को शाही जलूस निकाल रहे थे। उनके काफिले में हाथी, घोड़े और सैनिकों की लंबी टुकड़ियां शामिल थी। लॉर्ड हार्डिंग हाथी पर सवार थे। आगे महावत और पीछे अंगरक्षक हाथी पर बैठा था। काफिले को देखने के लिए भारी संख्या में लोग इकट्ठा थे। अचानक लॉर्ड हार्डिंग की तरफ बम फेंका गया। इसके बाद तेज धमाका हुआ, जिसके बाद अफरातफरी मच गई। लॉर्ड वायसराय बेहोशी हालत में पड़े मिले, जबकि महावत की मौत हो चुकी थी। सबको लगा था कि लॉर्ड वायसराय जीवित नहीं बचेंगे, लेकिन बच गए। वहीं, अफरातफरी का फायदा उठाकर क्रांतिकारी भी वहां से निकलने में कामयाब हो गए।
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लंदन तक गूंजी दिल्ली बम धमाके की आवाज
इस बम धमाके की गूंज ईस्ट इंडिया कंपनी के हेडक्वार्टर यानी लंदन तक पहुंची। आदेश दिया गया कि किसी भी कीमत पर इस घटना के पीछे जिम्मेदार लोगों का पता लगाकर सीधा फांसी पर लटकाया जाए। इस घटना को दिल्ली-लाहौर षड्यंत्र करार दिया गया। अंग्रेजों ने पूरे राज्य की घेराबंदी कर एक-एक घर में जाकर तलाशी ली गई। अंग्रेजों को इस बम धमाके के लिए जिम्मेदार क्रांतिकारी नहीं मिले, लेकिन उनके बारे में सूचनाएं मिल गईं। इसके बाद भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद ब्रिटिश शासन की इच्छा के अनुरूप इन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।
इन क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया
इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो बंगाल के मशहूर क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने इस बम धमाके की योजना बनाई थी। अंग्रेजों ने इस बम धमाके के लिए कुल 15 देशभक्तों को फांसी के फंदे पर लटकाया था। इस बम धमाके के करीब साढ़े तीन साल बाद 8 मई 1915 को मास्टर अमीर चंद, भाई बालमुकुंद और मास्टर अवध बिहारी को फांसी दी गई।
इसके तीसरे दिन बंसत कुमार बिश्वास को फांसी दे दी गई। क्रांतिकारियों को तलाशने में लंबा समय लगा, जिस कारण 1945 तक इस केस के लिए जिम्मेदार क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाने का सिलसिला जारी रहा। हवलदार जलेश्वर सिंह, मंसा सिंह, शफीक अहमद, छत्तर सिंह, नजर सिंह, अजायब सिंह, जहूर अहमद, सतेंद्र नाथ मजूमदार, दारोगा मल, केशरीचंद्र शर्मा को भी सूली पर चढ़ा दिया गया।
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अंग्रेज शासक लंबे समय तक खौफ में रहे
इस बम धमाके के बाद अंग्रेज शासक खासे खौफ में आ गए थे। लंबे समय तक जश्न मनाने पर रोक लगा दिया गया था। डर था कि कहीं क्रांतिकारी दोबारा से बम धमाका न कर दें। इसके बाद फैसला हुआ कि यह कदम भारतीयों का हौंसला बढ़ा सकता है। इसके बाद दोबारा से जश्न का दौर शुरू हो गया, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था और भी कड़ी कर दी गई। अगर कभी दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज जाना हो तो यहां पर इन क्रांतिकारियों को समर्पित स्मारक बना है, जहां आप इन क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दे सकते हैं।