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दिल्ली में रोजाना 11000 टन से अधिक कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन एक सोसायटी ऐसी है, जहां से कचरे के रूप में एक पत्ता भी लैंडफिल साइट तक नहीं पहुंचा है।

दिल्ली में एक तरफ जहां कूड़े के पहाड़ों का आकार बढ़ता जा रहा है, वहीं एक सोसायटी ऐसी भी है, जहां से पिछले छह सालों से एक पत्ता भी कूड़े के रूप में लैंडफिल साइट तक नहीं पहुंचा है। हम साउथ दिल्ली की नवजीवन विहार आवासीय सोसायटी की बात कर रहे हैं। यह सोसायटी जीरो वेस्ट प्रबंधन के लिए पहचानी जाती है। यहां के लोगों ने कचरे को न केवल पर्यावरण के लिए अनुकूल बना लिया है, बल्कि गरीब लोगों के जीवन में भी सुधार ला रहा है। आइये इसके पीछे की पूरी कहानी...

नवजीवन विहार सोसायटी के जीरो वेस्ट बनने की कहानी दिल्ली के लोग कूड़े की समस्या से परेशान हैं। यह समस्या आज से नहीं बल्कि दशकों से है। आम आदमी पार्टी ने भी कूड़े के पहाड़ खत्म करने का बड़ा वादा किया था। बावजूद इसके सकारात्मक बदलाव नहीं देखा गया। लेकिन, नवजीवन विहार सोसायटी के लोगों ने किसी राजनीतिक दल के दावे पर भरोसा करने की बजाए अपने स्तर पर कूड़े की समस्या से निपटने की रणनीति बनाई। इसके बाद यहां के लोगों ने कूड़ा इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग कंटेनर खरीदे। गीले और सूखे कचरे के अलावा अलग-अलग प्रवृत्ति के कचरे को इकट्ठा किया गया। आज छह साल हो गए हैं, लेकिन एक भी पत्ता कचरे के रूप में लैंडफिल साइट तक नहीं पहुंचा है।

225 किलो कचरे का रोजाना निपटान

इस सोसायटी में 280 परिवार रहते हैं। यहां से रोजाना 225 किलो कचरा निकलता है। सोसायटी को जीरो वेस्ट का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले मुहाहिर अली रोजाना इस कचरे को उठाकर कचरा निस्तारण केंद्र तक ले जाते हैं। खास बात है कि कचरा निस्तारण की मशीन भी इस सोसायटी के लोगों ने सहयोग कर खरीदी है। इस मशीन से गीले कचरे को खाद में बदला जाता है, जबकि ठोस कचरे को अलग-अलग तरीके से यूज किया जाता है।

कूड़ा कचरा बना गरीबों का सहारा

नवजीवन सोसायटी के मुताबिक, कचरे को कागज में तब्दील करके एक एनजीओ को दे दिया जाता है, जो कि बदले में नोटबुक देती हैं, जो गरीब बच्चों को वितरित कर दी जाती हैं। कुछ कूड़े को ऐसी एनजीओ को दे दिया जाता है, जो कि रिसाइकिल करके सजावट चीजों में बदल देती है। इस सोसायटी में कई ऐसे बैंच हैं, जिसे की कूड़े को रिसाइकिल कर बनाया गया है। इसके अलावा गीले कचरे को भी खाद में बदलकर पार्कों में इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं, इन पार्कों की कहानी भी खास है। यहां तीन पार्क हैं, जिनका नाम माली के नामों पर रखा गया है। इन पार्कों का नाम सोनू पार्क, पप्पू का पार्क और छेदी लाल पार्क है।

पर्यावरण के लिए बेहद जागरूक

नवजीवन आरडब्ल्यू की सचिव डॉ. रूबी मखीजा का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए हमारी सोसायटी के लोग बेहद जागरूक हैं। हमारी सोसायटी से रोजाना 250 किलो कचरा निकलता है। इसमें से 60 फीसद कचरा गीता और 20 फीसद कचरा सूखा होता है। उन्होंने बताया कि केवल 7 फीसद प्लास्टिक कचरा होता है। सोसायटी के लोग सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से बचते हैं। उन्होंने कहा कि कूड़ा बड़ी समस्या होती है, लेकिन आपसी सहयोग और जागरूकता से इस समस्या का समाधान संभव है।

दिल्ली को मिला दयनीय स्टेट का दर्जा

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 24 जुलाई को एक मामले की सुनवाई करते हुए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए दिल्ली को दयनीय स्टेट बताया था। न्यायमूर्ति एएस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि एमसीडी के हलफनामे और समयसीमा के अनुसार 2027 तक दिल्ली के 11000 टन ठोस कचरे का निपटान असंभव लगता है क्योंकि पर्याप्त सुविधाओं की संभावना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद भी समय-समय पर बड़े-बड़े दावे होते, लेकिन स्थिति जस की तस है। ऐसे में अगर दिल्ली की आरडब्ल्यूए और कॉलोनिया अपने स्तर पर नवजीवन सोसायटी की तरह काम करें तो इस बड़ी समस्या से निपट सकते हैं।

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