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15 August: देश 78वां स्वतंत्रता दिवस का जश्न मन रहा है। लेकिन, भिवानी का रोहनात गांव अब भी आजाद होने का इंतजार कर रहा है। इस गांव में कभी भी तिरंगा नहीं फहराया गया। ऐसा क्यों हुआ? पढ़िए इसके पीछे की दर्दनाक दास्तां।

Rohnat village Of haryana, दीपक कुमार डुमड़ा। आज हम हरियाणा के एक ऐसे गांव की बात कर रहे हैं, जो आजादी के 78 साल बाद भी आजाद नहीं हुआ है। जहां न तो आज तक कभी तिरंगा फहराया गया है और न ही कभी स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस मनाया गया। प्रथम स्वतंत्रता दिवस संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की ऐसी सजा मिली कि आजाद देश की कोई भी सरकार 78 साल बीतने के बाद भी गांव को आजाद नहीं कर पाई। अंग्रेजों ने अपनी खिलाफत करने पर गांव की पूरी जमीन को 8100 रुपये में नीलाम कर दिया था। जिसका मालिकाना हक कई पीढ़ी बीतने के बाद आज भी ग्रामीणों को नहीं मिल पाया है। पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल और फिर 2018 में मनोहर लाल ने ग्रामीणों को उनका हक दिलाने का वादा किया, परंतु दोनों में से कोई भी नेता अपना वादा पूरा नहीं कर पाया।

अंग्रेजी हुकुमत ने खोल दिए थे तोपों के मुंह
गांव रोहनात बवानीखेड़ा (भिवानी) से 19 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है। जैसे ही 11 मई 1857 को दिल्ली से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का आगाज हुआ तो बहादुरशाह जफर के आदेश पर रोहनात व आसपास के ग्रामीणों ने शुक्रवार 29 मई को अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया। पहले तोशाम और फिर हांसी व हिसार पर हमला कर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खजाने लूटकर कैदियों को रिहा कर दिया। पहले ही दिन हिसार व हांसी में 23 अंग्रेज अफसरों की मौत से बौखलाई अंग्रेजी हुकुमत ने क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए हांसी छावनी से फौज उतार दी और पुट्ठी मंगल खां व रोहनात की तरफ तोपों का मुंह खोलकर तबाही मचा दी। अंग्रेजों ने आसपास के गांव जमालपुर, हाजमपुर, भाटोल, खरड़, अलीपुर, मंगाली इत्यादि में भी आग लगा दी।

Rohnat village
बरगद का वह पेड़ जिस पर अंग्रेज अफसरों ने क्रांतिकारियों को दी थी फांसी।

पार कर थी बर्बरता की हदें 
अंग्रेज अधिकारियों ने बर्बरता की हदे पार करते हुए क्रांतिकारियों को पकड़ पकड़कर हांसी पहुंचाकर सड़क पर लेटाकर रोड रोलर से कुचलना शुरू कर दिया। जिस कारण सड़क को आज भी लाल सड़क कहा जाता है। हिसार के तत्कालीन जिला उपायुक्त विलियम ख्वाजा ने हांसी के तहसीलदार को 14 सितंबर 1857 को एक पत्र लिखा और रोहनात गांव की पूरी जमीन को नीलाम करने के आदेश दिए। 20 जुलाई 1858 में गांव की 20656 बीघा 19 बिसवे जमीन (13 बिघे  10बिशवे धरती छोड़कर जिसमें तालाब) को छोड़कर नीलाम कर दिया। गांव की पूरी जमीन को 61 लोगों ने 8100 रुपये में खरीदा। खरीददारों में 29 सुल्तानपुर, 20 मेहंदीपुर, एक भगाना, सात मुजाहदपुर इत्यादि के ग्रामीणों ने खरीदा। गांव की जमीन का पट्टानामा आज भी उन्हीं के नाम चल रहा है।

बच्चों के साथ कुएं में कूदी महिलाएं
अंग्रेजों ने गांव पर अक्रामण कर दिया। क्रांतिकारियों को कुचलने के साथ महिलाओं की इज्जत लूटने लगे तो अपनी इज्जत बचाने के लिए क्रांतिकारियों के साथ महिलाएं बच्चों को लेकर कुए में कूद गई। देखते ही देखते हजारों की संख्या में क्रांतिकारी व महिलाएं कुएं में समा गई। गांव के नेता विरड़ दास बैरागी को तोप के गोले से गांव में उड़ा दिया गया। दूसरे नेता रूपा खाती व नोंदाराम को हांसी में सड़क पर लेटाकर रोड रोलर से कुचल दिया। गांव में पानी पीने के कुओं को बंद कर दिया, ताकि लोग प्यासे मर जाए।

2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने किया था ध्वजारोहण 
2018 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री तिरंगा फहराने के लिए गांव पहुंचे तो ग्रामीणों को एक बार फिर अपनी आजादी का सपना हकीकत में बदलने की उम्मीद बनी। मनोहर लाल ने गांव में तिरंगा फहराने के साथ ग्रामीणों को उनका हक दिलाने का वादा भी किया। इससे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल भी ग्रामीणों को उनका हक दिलाने का वादा कर चुके थे। दो दो मुख्यमंत्रियों के वादे के बावजूद ग्रामीणों को आज तक उनका हक नहीं मिल पाया।

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