Logo
हरियाणा में जीटी बेल्ट और दक्षिणी हरियाणा काे भाजपा का गढ़ माना जाता है। 2019 में प्रदेश की सभी 10 सीटें जीतने वाली भाजपा करनाल, अंबाला व सोनीपत में पहले भी जीत दर्ज कर चुकी है। अब सभी सीटें जीतकर हैट्रिक लगाना भाजपा के लिए चुनौती रहेगी।

रोहतक, मनोज भल्ला। पिछले 10 वर्षों से भाजपा का गढ़ रही जीटी बेल्ट में अब सियासी समीकरण बदल चुके हैं। मोदी लहर के कारण पिछले दो लोकसभा चुनावों में यहां भाजपा ने चार कमल खिलाए थे। भाजपा एक बार फिर अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल और सोनीपत में हैट्रिक लगाने की तैयारी में है। जीटी बेल्ट की तीन सीटों का प्रतिनिधित्व मनोहर लाल और नायब सिंह सैनी करते हैं इसलिए जीटी बेल्ट सीएम और एक्स सीएम की प्रतिष्ठा का विषय भी बन चुकी हैं। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद मनोहर लाल करनाल सीट से चुनाव लड़ रहे हें और नायब सिंह सैनी कुरूक्षेत्र सीट छोड़ने के बाद मुख्यमंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं। जीटी बेल्ट के चारों सांसद और 11 विधायक हैट्रिक लगाने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं।

जीटी बेल्ट व जाट लैंड का मिश्रण सोनीपत सीट 

भले ही सोनीपत जाटलैंड माना जाता है मगर यह लोकसभा क्षेत्र भी कुरूक्षेत्र, करनाल और अंबाला की तर्ज पर जीटी बेल्ट से जुड़ा हुआ है। सोनीपत सहित 23 विधानसभा क्षेत्रों में बंटी जीटी बेल्ट में कांग्रेस के उम्मीदवार भी मैदान में उतर चुके हैं। चारों लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा को हैट्रिक बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं।

57 प्रतिशत वोट पर भाजपा का कब्जा

पिछले दस वर्षों में भाजपा ने इस बेल्ट से कांग्रेस को बाहर कर 57 फीसदी वोट प्रतिशत पर कब्जा कर लिया था। जीटी बेल्ट की तीन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है वहीं कुरूक्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार हैं। इनेलो के अभय सिंह चौटाला और आम आदमी के सुशील गुप्ता भी मजबूती से टक्कर देते हुए नजर आ रहे हैं। पिछले दस सालों की तुलना करें तो इस बार जीटी बेल्ट में भाजपा के लिए चारों सीट निकालना किसी चुनौती से कम नहीं है।

लहर है पर 2014 व 2019 जैसी नहीं

यहां 2014 और 2019 जैसी मोदी लहर नहीं है और सरकार का चेहरा बदलने के बाद काफी कुछ बदल चुका है। अनिल विज की नाराजगी अंबाला को प्रभावित कर सकती है। हांलाकि उन्हें मना लिया गया है लेकिन उनके मुखर होने की खबरें आए दिन प्रदेश भाजपा को परेशानी में डालती रहती है। वहीं कुरूक्षेत्र सीट पर 10 साल बाद अचानक प्रत्याशी बनाए गए नवीन जिंदल भाजपा के चुनावी गणित को गड़बड़ा सकते हैं। वे दो चुनाव हारने के बाद राजनीति छोड़ चुके थे और कांगेस छोड़कर भाजपा में आए हैं। उन पर कई तरह के राजनीतिक दबाव भी हैं। धर्मनगरी कुरूक्षेत्र की यह सीट भाजपा के लिए धर्मसंकट पैदा कर सकती है।

रमेश कौशिक का टिकट कटने से कैडर में बेचैनी 

सोनीपत में दो बार कमल खिलाने वाले सांसद रमेश कौशिक की टिकट कटने से भाजपा कैडर में बेचैनी है। उनकी टिकट काटकर मोहन लाल बडौली को दी गई है जिन्होंने पिछला विधानसभा केवल 2662 वोटों से जीता था। 2019 के लोकसभा चुनाव में रमेश कौशिक ने कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह हुड़डा को करारी शिकस्त दी थी। जाट और पंडित वोट बैंक का संतुलन गड़बड़ाने से सोनीपत में भाजपा की हैट्रिक लगाना बहुत बड़ी चुनौती है। भाजपा के लिए सुरक्षित माने जाने वाली करनाल लोकसभा सीट में भी पहले जैसी स्थिति नहीं है। यहां रूठों को मनाने का सिलसिला जारी है। अपने ही प्रत्याशी के विरोध में भाजपा के कई नेता बागी तेवर अपना रहे हैं। मनोहर लाल के लिए जहां करनाल सीट पर हैट्रिक लगाने की चुनौती है। सांसद संजय भाटिया जैसी ऐतिहासिक जीत का रिकार्ड कायम करने का दबाव भी है इसलिए यह सीट उनकी प्रतिष्ठा जुड़ी है।

जातीय समीकरण पड़ सकते हैं भारी 

इस बार जातीय समीकरण भी भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं। जीटी बेल्ट के तीन लोकसभा क्षेत्र में पंजाबी वोट बैंक बंटा हुआ है। प्रदेश सरकार से तीन बड़े पंजाबी चेहरे मनोहर लाल, संजय भाटिया और अनिल विज बाहर हैं जिससे पंजाबी वोटर असहज महसूस कर रहे हैं। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पर सैनी वोटर को भाजपा के खेमे में लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं लेकिन कुरूक्षेत्र सीट को लेकर सैनी समुदाय भी बंटा हुआ नजर आ रहा है। जाट वोटर भाजपा से दूर है जबकि अन्य जातियों में बंटे वोटर को लेकर भी भाजपा पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। इस समय जीटी बेल्ट की सभी सीटों का वोटर भी साइलेंट नजर आ रहा है।

हैट्रिक लगाने में बाधा बन सकते हैं किसान

जीटी बेल्ट पर किसानों का विशेष प्रभाव रहा है। पिछले कुछ समय से किसान चुनावी मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों का विरोध कर रहे हैं। अंबाला से चुनाव लड़ रही बंतो कटरिया उस समय परेशान हो गई थीं जब नाराज किसानों ने उन्हें घेर लिया था। कुरूक्षेत्र से मैदान में उतरे नवीन जिंदल को भी किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। करनाल लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ रहे एक्स सीएम मनोहर लाल का किसान कई बार विरोध कर चुके हैं। अंबाला, कुरूक्षेत्र और करनाल की तरह सोनीपत में पहली बार सांसद टिकट पर चुनाव लड़ रहे मोहन लाल बडौली किसानों के विरोध का सामना कर चुके हैं। जीटी बेल्ट की चारों सीटों पर किसान भाजपा की मुसीबत बढ़ा सकते हैं।

5379487