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हरियाणा महेंद्रगढ़ के धनौदा निवासी दीपक ने एमएससी करने के बाद निजी स्कूल में शिक्षक के पद पर ज्वाइन किया। फिर अचानक खुद नौकरी करने की बजाय दूसरों को नौकरी देने का ख्याल मन में आया। नौकरी छोड़ बागवानी का प्रशिक्षण लेने के बाद अपने रेतीले खेतों में पांच साल पहले स्ट्रोबरी की खेती शुरू कर की तथा आज आसपास व दूर दराज के किसानों के लिए मिसाल बना हुआ है।

 Mahendragarh। कनीना उपमंडल के गांव धनौंदा निवासी एमएससी पास किसान दीपक ने रेतीले टीलों ने स्ट्राबेरी की खेती कर किसानों को आकर्षित किया है। निजी स्कूल में अध्यापन का कार्य छोड़कर दीपक ने बागवानी विभाग से प्रशिक्षण लेकर कृषि कार्य शुरू किया, जो अब महारत हासिल कर रहा है। उनके पास चार कामगार कार्य कर रहे हैं। अब वह नौकरी करने वाला नहीं बल्कि नौकरी देने वाला है। पिछले करीब पांच वर्ष से बदलकर खेती कर रहा है। जिसका खासा फायदा मिल रहा है।

पांच साल से कर रहा खेती

किसान दीपक ने बताया कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश से पौध लाकर एक एकड़ भूमि में स्ट्राबेरी की खेती की है, जो बेहतरीन हालात में है। यह मार्च माह तक तैयार होगी। उन्होंने कहा कि एक एकड़ स्ट्राबेरी पर तीन लाख रुपये की लागत आई थी, अब तक उनकी ओर से तीस हजार रुपये की बिक्री की जा चुकी है। इस खेती पर उन्हें एक लाख रुपये का मुनाफा होने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार की ओर से भिवानी जिले के किसानों को 40 हजार रुपये प्रति एकड़ का अनुदान दिया जा रहा है, जबकि महेन्द्रगढ़ जिले के किसानों को अनुदान से वंचित रखा गया है। उन्होंने बताया कि फसल को सर्दी से बचाने के लिए मल्चिंग विधि को अपनाया गया है। इसी विधि के अनुरूप उनकी ओर से तरबूज लगाया गया है। जिस पर बागवानी विभाग की ओर से 40 हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से अनुदान का प्रावधान है।

वर्मी काम्पोस्ट खाद का होता है प्रयोग

प्रगतिशील किसान दीपक ने बताया कि वह पूर्ण रूप से प्राकृतिक खेती कर रहा है। जिसमें स्वयं की ओर से तैयार की गई वर्मी कम्पोस्ट खाद का इस्तेमाल किया जाता है। उनकी ओर से वर्मी कम्पोस्ट खाद चार बैड से बनाना शुरू किया था, आज उनके पास करीब 100 बैड बने हुए है, जिनसे वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार की जा रही है। किसान की ओर से इस खाद की 700 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक्री की जाती है। जिससे अच्छा खासा मुनाफा होता है। खाद को लेने किसान दूर-दूराज से आते है। प्रदेश सरकार की ओर से खाद का प्लांट लगाने पर लागत का 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। फसल में सिंचाई के लिए 75 फीसदी अनुदान पर सोलर सिस्टम लगाया हुआ। जिससे बिजली का इंतजार नहीं करना पड़ता। मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम से सिंचाई की जाती है। जिसमें  बिजली और पानी दोनों की बचत होती है।

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