Punjab Haryana High Court: पानीपत में साल 2003 में हुए दोहरे हत्याकांड को लेकर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से फैसला सुनाया गया है। इस फैसले के तहत हाईकोर्ट का कहना है कि आरोपी के खिलाफ अभियोजन पक्ष की ओर से पर्याप्त और ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया है। ऐसे में हाईकोर्ट की ओर से आरोपी को 22 साल बाद संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया है। बता दें कि आरोपी ने साधु और उनके शिष्य की बेरहमी से हत्या कर दी थी। जिसके बाद दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
क्या है पूरा मामला ?
पूरा मामला पानीपत के चंदौली गांव का है, जहां धार्मिक डेरे में ही साधु बाबा शिवनाथ और उनके शिष्य माया राम की बेहरमी से हत्या कर दी गई थी। मामले के बारे में तब पता लगा, जब किसान पृथ्वी सिंह 7 जनवरी 2003 को खेतों की ओर जा रहा था। पृथ्वी सिंह ने डेरे में दोनों को मृत अवस्था में पाया। उनके चेहरे तेजाब से झुलसे हुए थे। करीब 1 महीन तक पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लगा था।
6 फरवरी 2003 को गांव के सरपंच रूप चंद और एक अन्य व्यक्ति सुखबीर सिंह ने पुलिस को बताया था कि आरोपी राजीव नाथ ने उन्हें यह बात बताई थी कि उसने ही दोनों की हत्या की थी। रूप चंद और सुखबीर ने पुलिस को बताया कि राजीव गद्दी का वारिस बनना चाहता था। जबकि बाबा शिवनाथ गद्दी उनके शिष्य माया राम को सौंपना चाहते थे। इसी रंजिश के चलते राजीव ने दोनों की हत्या कर दी थी। जिसके बाद पुलिस ने राजीव नाथ को गिरफ्तार कर लिया था।
मामला केवल कबूलनामे पर आधारित- हाईकोर्ट
साल 2004 में निचली अदालत ने राजीव को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। राजीव ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौता दी थी। जिसके बाद उसे 2009 में जमानत मिल गई। लेकिन हाईकोर्ट की ओर से कहा गया था कि पूरा मामला एक अतिरिक्त न्यायिक कबूलनामे पर आधारित था, जो कानूनी दृष्टि से कमजोर सबूत पर आधारित है। कोर्ट का कहना था कि अगर राजीव ने हत्या की है, तो भला वह एक महीने बाद खुद सरपंच के पास जाकर हत्या की बात क्यों स्वीकार करता ?
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नहीं मिला कोई सबूत- हाईकोर्ट
कोर्ट का कहना है कि इस हत्या के मामले में कोई सबूत भी नहीं मिला है, हत्या के वक्त ना कोई प्रत्यक्षदर्शी भी नहीं था। कोर्ट का यह भी कहना है कि पुलिस ने भी आरोपी से कोई हथियार या तेजाब बरामद नहीं किया था। ऐसे में कोई मामला पूरी तरह से केवल किसी ऐसे बयान पर आधारित हो, जिसमें ना कोई साक्ष्य हो, सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित हो। कोई निष्कर्ष निकला असंभव होता है।
कोर्ट का कहना है कि ऐसे में संदेह का लाभ आरोपित को दिया जाना न्यायसंगत है। हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष राजीव नाथ के खिलाफ आरोप साबित करने में असफल रहा, राजीव को दोषमुक्त करार देते हुए 22 साल पुराने इस चर्चित हत्याकांड से मुक्त कर दिया गया है।