Haryana Assembly Elections, योगेंद्र शर्मा। हरियाणा प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए बिगुल बज चुका है, भले ही फिलहाल, दोनों राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा और कांग्रेस में मुकाबला नजर आ रहा लेकिन प्रदेश में कईं सियासी दिग्गज नए खेल और गणित बैठाने की तैयारी में हैं। अर्थात बड़े दलों का खेल बिगाड़ने के लिए तीसरा कारक भी तैयार है। इनका खेल उस स्थिति में काम करेगा जब विस चुनावों के बाद में हालात व हार जीत पर निर्भर करेगा।
लोकसभा की जीत से कांग्रेस उत्साहित
खास बात यह है कि विस चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बनने वाले विधायकों की संख्या व हालात पर तीसरा कारक असर डालने की रणनीति बनाकर काम कर रहा है। अर्थात क्षेत्रीय दल और निर्दलीयों के पास में विस चुनावों के परिणामों के बाद क्या हाथ लगेगा यह उस पर निर्भर करेगा? हाल ही में हुए लोकसभा लोकसभा चुनावों में राज्य में भाजपा के विरोधियों ने एकता का गीत गाया और विरोधी लहर का फायदा उठाते हुए भाजपा से पांच सीटें छीन ली। इस तरह से भाजपा की दस की दस सीटों में संख्या घटकर पांच रह गई और बाकी कांग्रेस के खाते में चली गईं। इस बात से उत्साहित कांग्रेसी नेता विस चुनावों को भी उसी तरह से लेकर चल रहे हैं, उनको लगता है कि सत्तारूढ़ पार्टी को बाहर का रास्ता दिखा देंगे।
खेल बिगाड़ने की तैयारी में छोटी पार्टियां
छोटी पार्टियां और निर्दलीयों द्वारा भी खेल बिगाड़ने के लिए तैयारी की जा रही है। कांग्रेस नेताओं को विश्वास है कि एक अक्टूबर को होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों की अनुपस्थिति में भाजपा से दूरी रखने वाले मतदाताओं की लामबंदी और तेज होगी। इनेलो और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठबंधन, पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) और 2019 में जीत हासिल कर चुके कई निर्दलीय विधायक राज्य में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
26 प्रतिशत जाट वोटों पर नजर
जजपा का नेतृत्व दुष्यंत चौटाला जबकि इनेलो का नेतृत्व उनके सगे चाचा अभय चौटाला कर रहे हैं। इसके अलावा विधायक बलराज कुंडू जैसे उम्मीदवार भी खेल बिगाड़ने की तैयारी में जुटे हुई हैं, इनको मुख्य रूप से जाट समुदाय का समर्थन प्राप्त है। वहीं भाजपा के सियासी दिग्गजों और थिंक टैंक को उम्मीद है कि वे गैर-भाजपा वोटों में सेंध लगाने का काम करेंगे। यहां पर बता दें कि हरियाणा में 26 फीसदी से ज्यादा आबादी के साथ जाट समुदाय का सबसे ज्यादा वोट बैंक है। वहीं, बसपा का समर्थन मुख्य रूप से दलितों के खास वर्ग तक सीमित है।
नेता विपक्ष पूर्व सीएम बता रहे वोट कटवा पार्टी
कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा क्षेत्रीय दलों और इक्का दुक्का खेल करने वालों को लेकर गंभीर नहीं है, उन्हें वे ‘‘वोट कटवा'' करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि वोटर अपने वोट नहीं खराब करेगा और मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच ही होगा। जजपा को लोकसभा चुनाव में एक फीसदी से भी कम वोट मिले थे। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे करीब 15 फीसदी वोट और 10 सीट विस में मिल गईं थी लेकिन जजपा इन दिनों अस्तित्व की लड़ाई लड़ने में लगी है। उसके पास केवल तीन विधायक बचे हैं, जिनमें दुष्यंत सिंह चौटाला और उनकी मां नैना सिंह चौटाला एक अन्य शामिल हैं। विस चुनाव अभियान में शामिल भाजपा नेताओं ने भरोसा जताया है कि चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ पार्टी का पारंपरिक गैर-जाट वोट लामबंद होगा, जिससे उसे तीसरी बार सत्ता में बने रहने में मदद मिलेगी। राज्य विधानसभा में 90 सीट हैं।
कांग्रेस की गुटबाजी हमलावर भाजपा
कांग्रेस के भीतर गुटबाजी और उनके दस साल के शासनकाल के दौरान हुए कार्यों को लेकर सवाल उठाने वाले भाजपा नेताओं में मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष से लेकर हर कोई नेता, मंत्री विधायक कांग्रेस पर ही हमला बोल रहे हैं, उनको साफ है कि सामने दुश्मन के तौर पर कांग्रेस ही है। क्षेत्रीय दलों, निर्दलीयों को लेकर भले ही वे गंभीर नहीं है, लेकिन संख्याबल पूरा नहीं होने और तीसरे कारक के जीतकर आने के हालात में एक बार फिर से सत्ता चाहने वाली पार्टी के सामने तीसरे कारक का समर्थन लेना अनिवार्य हो जाएगा औऱ उनकी शर्ते व नखरे भी बर्दाश्त करने पड़ जाएंगे।
2019 में बहुमत से दूर रही थी भाजपा
यहां पर बता दें कि वर्ष 2014 में हरियाणा में पहली बार बहुमत हासिल करने के बाद, भाजपा 2019 में 40 सीटों पर सिमट गई और उसने जजपा का समर्थन लेकर सरकार बनाना मजबूरी हो गई। भाजपा ने हरियाणा चुनाव के लिए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब को क्रमश: चुनाव प्रभारी और सह-प्रभारी नियुक्त किया हुआ है। दोनों ही रणनीतिकार पार्टी को तीसरी बार सत्ता में लाने के लिए रात दिन एक किए हुए हैं, साथ ही उसके लिए रणनीति बनाकर अमली जामा पहनाने में लगे हुए हैं।