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भोपाल निवासी भानु प्रभाकर अपनी 50 वर्षीय मां प्रभावती देवी को इलाज के लिए एम्स भोपाल लेकर गए थे। वहां उन्हें प्रो. (डॉ.) आदेश श्रीवास्तव को दिखाया गया, जिन्होंने तत्काल एमआरआई (MRI) जांच कराने की सलाह दी। लेकिन एम्स प्रशासन ने जांच के लिए 17 जून 2026 की तारीख दी! यानी लगभग 16 महीने बाद।  

MP News: अगर किसी मरीज को गंभीर बीमारी हो और डॉक्टर उसे तुरंत जांच कराने की सलाह दें, लेकिन अस्पताल कहे कि एमआरआई कराने के लिए आपको 16 महीने इंतजार करना होगा, तो सोचिए इलाज कब शुरू होगा? यह सवाल भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की लचर व्यवस्था पर उठ रहा है, जहां एक महिला की एमआरआई जांच के लिए 17 जून 2026 की तारीख दी गई है।  

पढ़ें पूरा मामला
भोपाल निवासी भानु प्रभाकर अपनी 50 वर्षीय मां प्रभावती देवी को इलाज के लिए एम्स भोपाल लेकर गए थे। वहां उन्हें प्रो. (डॉ.) आदेश श्रीवास्तव को दिखाया गया, जिन्होंने तत्काल एमआरआई (MRI) जांच कराने की सलाह दी। लेकिन एम्स प्रशासन ने जांच के लिए 17 जून 2026 की तारीख दी! यानी लगभग 16 महीने बाद।  

इतना लंबा इंतजार क्यों? क्या प्राइवेट लैब्स को फायदा पहुंचाया जा रहा है?
स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की यह हालत देखकर सवाल उठना लाज़िमी है— आखिर सरकारी अस्पतालों में जांच की तारीखें इतनी लंबी क्यों दी जा रही हैं?  
1. क्या सरकारी मशीनें ठप हैं?  
2. क्या डॉक्टर जानते हैं कि इतनी देरी इलाज को असंभव बना सकती है?  
3. क्या यह निजी स्कैनिंग सेंटरों का खेल है, जहां मरीजों को मजबूरन हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं?  

सरकारी अस्पतालों में जानबूझकर देरी
भोपाल में निजी एमआरआई सेंटरों की भरमार है, जहां बिना किसी वेटिंग के 5000-7000 रुपये में तुरंत जांच हो सकती है। सवाल यह उठता है कि कहीं सरकारी अस्पतालों में जानबूझकर देरी करवाई जाती है ताकि प्राइवेट लैब्स का धंधा चले? 

एम्स प्रशासन की जवाबदेही तय हो!

  1. एम्स जैसे संस्थान का यह रवैया गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या एम्स प्रशासन इस पर जवाब देगा कि आखिर सरकारी अस्पतालों में जांच की वेटिंग इतनी लंबी क्यों होती जा रही है?
  2. क्या सरकार इस मामले में दखल देकर गरीब मरीजों को समय पर जांच और इलाज उपलब्ध कराएगी, या फिर आम जनता इसी तरह प्राइवेट अस्पतालों और महंगे स्कैनिंग सेंटरों के रहमोकरम पर रहेगी?  

एम्स को चाहिए कि मरीजों की जांच प्राथमिकता के आधार पर हो और निजी अस्पतालों की लॉबी को फायदा पहुंचाने की यह साजिश बंद की जाए। वरना सरकारी अस्पतालों के नाम पर सिर्फ मजबूर मरीजों के साथ मज़ाक किया जा रहा है! 
 

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