आशीष नामदेव, भोपाल। अमावस्या के अंधेरे को छुपाने के लिए पूरी रात को दीयों से उजाला किया जाता है, इसी अमावस्या को दीवाली के त्योहार के रूप में मनाया जाता और साथ ही इस मौके पर राम का वनवास भी खत्म होता है। जिनके आने पर अमावस्या की रात के अंधेरे को छुपाने के लिए दीयों से रोशनी की जाती है। इस रोशनी को फैलाने के लिए हाथ कुम्हारों ने अपने मिट्टी में काले और पीले किए हैं। ऐसे ही राजधानी के कुछ कुम्हारों से हरिभूमि ने खास बातचीत की जो पीढ़ियों से दीवाली के मौके पर और 12 माह दीए बनाते हुए आ रहे हैं। जिनके जरिए पूरा शहर और लोगों के घर जगमगाते हैं। 

पीढ़ियों से कर रहे है दीए बनाने का काम, मुख्यमंत्री ने भी खरीदे दीए
पीढ़ियों से दीए बनाने का काम कर रहे सुनील प्रजापति बताते हैं कि उनके दादा और परदादा इस काम को कर रहे हैं। टीटी नगर स्टेडियम उनकी दुकान से मंगलवार को मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 25 दीए और 1 लक्ष्मी जी की प्रतिमा भी 500 रुपए में खरीदी है। सुनील ने बताया कि करीब 10 सालों से लोगों के बीच में मिट्टी के दीयों को लेकर क्रेज कम हुआ है अब लोग लाइट की तरफ ज्यादा जा रहे है।

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दीए बनाना रोजगार ही नहीं, बल्कि हमारी परंपरा और कर्तव्य 
ललिता प्रजापति बताती हैं कि मेरी दुकान टीटी नगर स्टेडियम के पास में है। यहां से लोग 12 महीने मिट्टी के दीए लेने आते हैं। मेरी उम्र के चलते तो अब मुझे याद भी नहीं कि कितने सालों से मुझे इस काम को करते हुए हो गए हैं, हां लेकिन मेरे पति भी यही काम करते थे और मेरा पूरा परिवार इस काम को अच्छे से करता हुआ आया है। हम सालों से लोगों के घर में दीए बेच रहे हैं। ये हमारा रोजगार ही नहीं बल्कि हमारा काम भी है और परंपरा भी है।

40-50 सालों से कर रहे है दीए बनाने का काम
रोशनपुरा निवासी राजकुमारी प्रजापति बताती हैं कि हम करीब 40-50 सालों से मिट्टी के दीए बना रहे हैं। मैं ही नहीं मेरे सास-ससुर भी यही काम करते थे, अभी हमारी दुकान टीटी नगर स्टेडियम के पास में है। दीवाली के समय दीयों की बिक्री बढ़ जाती है, उस समय हम दीयों के ऊपर एशियन पेंट से डिजाइन बनाते है जिससे वो और सुंदर हो जाते हैं। इस तरहों के मिट्टी के दीए की डिमांड अब मार्केट में बढ़ भी रही है।