भोपाल (मधुरिमा राजपाल) । श्रीअन्न को संरक्षित करें, इनका सेवन करें और आगे बढ़ाएं। इसी में हमारी भलाई है। जिस प्रकार अपने शरीर का शृंगार हम खुद से करते हैं, उसी प्रकार धरती का शृंगार श्रीअन्न से करें। तभी हमारी धरती सुंदर होगी और हम स्वास्थ्य होंगे। साल 2023 के मिलेट्स ईयर घोषित होने के बाद श्रीअन्न के रूप में मिलेट्स का बोलबाला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है।
11 हजार व्यंजनप्रेमी पहुंचे
मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी और कोदो सहित विभिन्न प्रकार के श्रीअन्न (मिलेट्स) से तैयार व्यंजन जनजातीय संग्रहालय की कैंटीन में आयोजित देशज व्यंजन मेले में ट्रायल के रूप में 11 दिन चला। शहरवासियों ने इसे काफी सराहा और करीब 11 हजार व्यंजनप्रेमियों ने मिलेट्स से बने व्यंजनों को चखा और अब यह स्वाद उनकी जुबान पर चढ़ चुका है। ट्रायल रन की शानदार सफलता के बाद अब इस भोजन को 10 जनवरी से कैंटीन के मेन्यू में नियमित किया जा रहा है।
चुनिंदा दिनों तक परोसा जाता था जनजातीय भोजन, अब होगा नियमित
श्रीअन्न की सीधा संबंध भी जनजातीय समुदाय से है। सैलानी अब श्रीअन्न से तैयार व्यंजनों का आनंद लेकर जनजातीय भोजन की भी अनुभूति कर सकेंगे। संग्रहालय में इसके पहले भी जनजातीय भोजन परोसा जाता रहा है, लेकिन यह सिर्फ चुनिंदा दिनों पर ही उपलब्ध होता था। पहली बार इसे नियमित फूड मेन्यू में शामिल किया जा रहा है।
ये खास व्यंजन होंगे नियमित मेन्यू में शामिल
देशज व्यंजन मेले में ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी की रोटी के साथ विभिन्न प्रकार की अर्गेनिक भाजी एवं सब्जियां परोसी गईं। इसके साथ ही महुआ गुलगुला, महुआ जलेबी, कुटकी खीर, मक्का लड्डू, च्वार लड्डू, बाजरा लड्डू , कोदो लड्डू, कढ़ी, दाल पानिया, महुआ पुआ जैसे पकवानों को स्वाद प्रेमियों ने बहुत पंसद किया। इन पारंपरकि व्यंजनों के अलावा कोदो से बने डोसा और इडली, उड़द वड़े तथा कोदो पुलाव व लड्डू भी लोगों की पसंद में सबसे ऊपर हैं। ये सभी व्यंजन स्वाद के साथ स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। खासतौर से ठंड के सीजन में।
जनवरी के दूसरे सप्ताह से हर रोज मिलेगा स्वाद
जनजातीय संग्रहालय के क्यूरेटर अशोक मिश्रा बताते हैं। जनजातीय जीवन और संस्कृति को जानने लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। वे कला के विविध माध्यम से जनजातीय जीवनशैली को समझते हैं। श्रीअन्न की सीधा संबंध भी जनजातीय समुदाय से है। सैलानी अब श्रीअन्न से तैयार व्यंजनों का आनंद लेकर जनजातीय भोजन की भी अनुभूति कर सकेंगे। संग्रहालय में इसके पहले भी जनजातीय भोजन परोसा जाता रहा है, लेकिन यह सिर्फ चुनिंदा दिनों पर ही उपलब्ध होता था। पहली बार इसे नियमित फूड मेन्यू में शामिल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जनवरी के दूसरे सप्ताह से हर रोज मिलेगा व्यंजन प्रेमियों को मिलेट्स का आनंद।
पत्तों व मिट्टी के बर्तन में परोसे व्यंजन
जनजातीय जायका देते ये व्यंजन पारंपरिक तरीके से चूल्हे पर ही पकाए जाते हैं। कैंटीन संचालक कमलेश बारिया ने बताया कि विभिन्न जनजातीय व्यंजनों को उसी जनजाति के लोग अपने तरीके से तैयार करते हैं। साथ ही आंगतुकों को पत्ते और मिट्टी से बने बर्तन में व्यंजन परोसते हैं। इससे लोग भोजन के स्वाद के साथ ही वहां की संस्कृति से जुड़ सकें। यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी।