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psychological pressure : सैनिक स्कूल से लापता छात्र तीसरे दिन दिल्ली से लौटा तो पुलिस ने न्यायालय में उसके बयान दर्ज कराए। परिजनों के सुपुर्द करने के बाद अब काउंसिंग कराई जा रही है। 

psychological pressure : हकलाना (सही बोल न पाना) कुछ लोगों के लिए सामान्य बात हो सकती है, बेहतर कॅरियर और व्यक्तित्व में इसका कितना असर पड़ता है, यह बात सैनिक स्कूल के उस छात्र से ज्यादा कौन समझ सकता है। छात्र इतना डिप्रेशन में था कि सुसाइड नोट लिखकर स्कूल से आत्महत्या के लिए निकल गया।  

तीन लापता रहने के बाद बुधवार को दिल्ली से लौटे छात्र ने पुलिस को बताया कि कॅरियर में वह बहुत अच्छा करना चाहता है, लेकिन हकलाने की बीमारी इसमें बाध बन रही है। इस बीमारी को लेकर वह लंबे समय से तनाव में था। अंदर ही अंदर घुटन महसूस होती रहती थी। परेशान होकर एक दिन स्कूल छोड़ दिया। और नदी के पास पहुंच गया। पुल से कूद कर जान देना चाहता था, लेकिन हिम्मत नहीं हुई। स्कूल प्रबंधन ने अब कॉउंसलिंग की व्यवस्था कराई है।  

कोर्ट में दर्ज कराए बयान 
सैनिक स्कूल रीवा में 10वीं कक्षा पढ़ने वाला छात्र दो दिन पूर्व अचानक गायब हो गया था। शिक्षक की शिकायत पर अपहरण का मामला दर्ज कर पुलिस ने तलाश शुरू की। दो दिन बाद बस स्टैंड से बरामद कर थाने लाई और न्यायालय में धारा 164 के बयान दर्ज कराए। छात्र ने कोर्ट को बताया कि वह अपनी मर्जी से दिल्ली चला गया था। न्यायालय ने परिजनों के सुपुर्द कर दिया है। छात्र ने बताया दिल्ली से ट्रेन के सहारे प्रयागराज आया और वहां से सतना पहुंचा। सतना से बस में सवार होकर रीवा आया था।

सुसाइड नोट लिखकर निकला था
पुलिस ने छात्र से सुसाइड नोट बरामद किया है। स्कूल से निकलकर उसने बीहर नदी में कूदने का प्रयास किया, लेकिन हिम्मत नहीं हुई। आत्महत्या करने वह रेलवे स्टेशन आया और ट्रेन से दिल्ली चला गया। रास्ते में कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की। हालांकि, बाद में गलती का अहसास हुआ और वह वापस घर लौट आया। संदेह के आधार पर पुलिस बीहर नदी में भी उसकी तलाश कर रही थी।

बच्चों की सुनें अपनी बात न थोपें 
एएसपी अनिल सोनकर ने बताया, सैनिक स्कूल में पढ़ने वाला छात्र लापता हो गया था। उसकी तलाश कर परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया है। कॉउंसलिंग देकर अब उसे डिप्रेशन से बाहर निकालने का प्रयास किया जाएगा। मनोवैज्ञानिक एक्सपर्ट ने कहा, बच्चों से संवाद जरूरी है। बच्चों की सुनने की बजाय हम अक्सर अपनी बात थोपने का प्रयास करते हैं। वह धीरे-धीरे डिप्रेशन में चले जाते हैं। उनकी बात सुनना बेहद जरूरी है। साथ ही डिप्रेशन समझ में आए तो चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध करवाएं।  
 

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