UP by-election: उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर बुधवार (20 नवंबर)  को उपचुनाव हैं। यूपी में यह चुनाव सीएम योगी बनाम अखिलेश हो गया है, जिसे अगले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसके मद्देनजर दोनों नेताओं ने यूपी उपचुनाव पर पूरा जोर लगा दिया है। यूपी का उपचुनाव किसी के लिए नाक की लड़ाई है, तो किसी के लिए साख की लड़ाई बन गया है।

इसको 2027 के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। ये चुनाव यूपी में सीएम और अखिलेश के लिए प्री एग्जाम की तरह है। ये परीक्षा है योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे नारे की, जिसकी शुरुआत यूपी से हुई और इसके बाद हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में प्रयोग किया जा रहा है।

अखिलेश के 'PDA' की होगी परीक्षा
यह चुनाव अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले की परीक्षा है, जिसके दम पर अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी से ज्यादा सीटे यूपी में जीती है। उप चुनाव में यह प्रयोग सफल रहा तो 2027 तक इसी लाइन पर राजनीति आगे बढ़ेगी। इस उप चुनाव में विधानसभा उपचुनाव की नौ सीटों पर 90 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला है।

यूपी की इन सभी नौ सीटों पर बीजेपी-एसपी और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है, लेकिन सीधी टक्कर बीजेपी और एसपी के बीच है। इन 9 सीटों पर 2022 के चुनाव में 4 सीटें समाजवादी पार्टी के पास गई थीं, जबकि एनडीए के पास 5 सीटें हैं, जिसमें बीजेपी के पास तीन और सहयोगी दलों के पास दो सीटें हैं।

चुनाव प्रचार में सबने झोंकी ताकत
सभी नौ सीटों पर चुनाव प्रचार में ओबीसी जाति जनगणना को लेकर विपक्ष बीजेपी को घेर रहा है। वहीं बीजेपी ने दांव लगाया है तो अखिलेश पीडीए को बैलेंस करने की कोशिश में दिख रहे हैं। इस उप चुनाव के नतीजे यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 की राजनीतिक दशा और दिशा तय करेंगे। यही वजह है कि एसपी मुखिया हों या यूपी सरकार के प्रमुख योगी, दोनों ने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी।

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मतदाता नेताओं के भाग्य का करेंगे फैसला 
उपचुनाव को लेकर सभी दलों के नेताओं ने ताकत झोंक दी है। अब मतदाताओं को तय करना है कि वो किस पर भरोसा करते हैं। वैसे यूपी में एक और सीधी जंग योगी और अखिलेश यादव की है, तो वहीं दोनों ही पार्टियों को खतरा अपनों से भी है। इसके अलावा कई दल ऐसे भी हैं जो किसी का भी खेल बिगाड़ सकते हैं। 

दलित वोटों पर सबकी निगाहें
चुनाव में दलित वोट बैंक को लेकर भी तस्वीर साफ होनी है। वो वोट बैंक को इस वक्त यूपी की सियासत में सबसे ज्यादा स्विंग कर रहा है। यही वजह है कि उपचुनाव से दूरी बनाए रखने वाली मायावती ने इस बार नौ की नौ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। जिनके सामने अपनी खोई हुई जमीन को बचाने की चुनौती है, लेकिन ना ही मायावती ने कोई रैली की है और ना ही भतीजे आकाश आनंद ने कोई मोर्चा संभाला है।

दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की साख भी दांव पर लगी है। मीरापुर, कुंदरकी, खैर सहित कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रखे हैं। नगीना में मुस्लिम वोटों के दम पर जीत दर्ज कर सांसद बने चंद्रशेखर के लिए दलित वोट को साधने का चैलेंज है।

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