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उत्तराखंड के जौनसार बावर में दिवाली का त्योहार खास अंदाज में मनाया जाता है। दिवाली के एक माह बाद यहां बूढ़ी दीपावली मनाने की अनोखी परंपरा है। आइए जानते हैं बूढ़ी दिवाली क्यों मनाते हैं? पर्व की खासियत और मान्यता क्या हैं?

Jaunsar Bawar Budhi Diwali 2024: उत्तराखंड के जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में दिवाली का त्योहार खास अंदाज में मनाया जाता है। दिवाली के ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीपावली मनाने की अनोखी परंपरा है। पांच दिन चलने वाले बूढ़ी दीपावली पर्व को लेकर इलाके के लोगों में खासा उत्साह है। इस बार भी धूमधाम से बूढ़ी दीपावली मनाई जाएगी। बूढ़ी दिवाली में पारंपरिक लोक संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यहां दिवाली को पूरी तरह ईको-फ्रेंडली और परंपरागत तरीके से मनाया जाता है। आइए जानते हैं जौनसार बावर में बूढ़ी दीपावली क्यों मनाई जाती है? खासियत और मान्यता क्या हैं? 

मशाल जलाकर लोगों को करते हैं एकत्रित 
पर्व की सबसे खास बात यह है कि यहां पटाखों का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि भीमल की लकड़ी से बनी मशालों को जलाकर गांव के लोग एकत्रित होते हैं। ग्रामीण पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे गांव के पंचायती आंगन या खलिहान में इकट्ठा होते हैं, जहां डोल-दमाऊ की थाप पर रासो, तांदी, झैता और हारुल जैसे पारंपरिक नृत्य किए जाते हैं। इसे स्थानीय लोग बिरुडी पर्व के रूप में भी जानते हैं।

श्रीराम के अयोध्या लौटने की खबर देर से मिली
बूढ़ी दिवाली मनाने के पीछे कई मान्यताएं हैं। जनजातीय क्षेत्र के बुजुर्गों का मानना है कि भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की खबर इस क्षेत्र के लोगों को काफी देरी से मिली थी, जिस कारण यहां दिवाली एक महीने बाद मनाने की परंपरा शुरू हुई। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि जौनसार बावर एक कृषि प्रधान क्षेत्र है, जहां लोग खेती बाड़ी में व्यस्त रहते हैं। फसल कटाई के बाद ही उन्हें पर्व मनाने का समय मिलता है। इसलिए यह त्योहार एक महीने बाद परंपरागत रूप से मनाया जाता है।

सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं का सुंदर समागम 
बूढ़ी दिवाली का जश्न जौनसार बावर के हर गांव में खास तरीके से मनाया जाता है, जिससे पूरा क्षेत्र गुलजार हो जाता है। बूढ़ी दिवाली 5 दिनों तक चलती है। इस अवसर पर प्रवासी लोग भी अपने गांव लौटते हैं, जिससे पूरे जौनसार बावर में अलग ही रौनक दिखाई देती है। इस त्योहार के दौरान गांव की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं का सुंदर समागम देखने को मिलता है। पर्व लोगों की सांस्कृतिक विरासत को सजीव बनाए रखता है।

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