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Holi 2025 Date and Time: सनातन धर्म में होली सबसे बड़ा और प्रमुख त्यौहार है। रंगों के त्यौहार के नाम से पहचाना जाने वाला यह पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस बार होली 14 मार्च 2025, शुक्रवार को सेलिब्रेट की जायेगी। होलिका दहन पूर्णिमा की रात होता है, जोकि अधर्म पर धर्म की जीत के तौर पर मनाया जाता है।

Holi 2025 Date and Time: सनातन धर्म में होली सबसे बड़ा और प्रमुख त्यौहार है। रंगों के त्यौहार के नाम से पहचाना जाने वाला यह पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस बार होली 14 मार्च 2025, शुक्रवार को सेलिब्रेट की जायेगी। लेकिन इससे पहले होलिका दहन होगा, जो फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को होता है। होलिका दहन पूर्णिमा की रात होता है, जोकि अधर्म पर धर्म की जीत के तौर पर मनाया जाता है। 

होलिका दहन कब होगा? 
(Holika Dahan 2025 Date Time) 

पंचांग के अनुसार, इस वर्ष फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 13 मार्च, 2025 सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर प्रारंभ हो रही है। वहीं इसका समापन 14 मार्च, 2025 की दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगा। उदयातिथि को देखते हुए होलिका दहन 13 मार्च को किया जाएगा। इसके लिए शुभ समय रात्रि 11 बजकर 26 मिनट से लेकर अगले दिन 14 मार्च सुबह 12 बजकर 30 मिनट तक का रहेगा। यानी कि होलिका दहन के लिए कुल समय करीब 64 मिनट का रहेगा। 

होली कब है?
(Holi 2025 Kab Hai) 

पंचांग के अनुसार, इस वर्ष होली 14 मार्च 2025, शुक्रवार के दिन मनाई जायेगी। होली हर वर्ष होलिका दहन के अगले दिन ही मनाई जाती है। होली को हम धुलेड़ी पर्व के नाम से भी जानते है। इस दिन लोग एक-दूसरे के गालों पर माथे पर अबीर-गुलाल लगाकर सेलिब्रेशन करते है। 

होली क्यों मनाते है?
(Holi Kyu Manate Hai) 

एक पौराणिक कथा के अनुसार पुराने समय में असुर सम्राट राजा हिरण्यकश्यप हुआ करते थे। उनका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति में लगा रहता था, जो राजा को पसंद नहीं था। हिरण्यकश्यप चाहते थे कि, उनकी प्रजा की तरह उनका बेटा भी उन्हें भी भगवान के स्वरूप में माने। लेकिन वह अपने बेटे को समझाने में असफल रहा, जिसके बाद उसने बेटे प्रहलाद को मारने के लिए कई जतन किये, लेकिन भगवान विष्णु की भक्ति के प्रताप से प्रहलाद का कुछ नहीं बिगड़ा। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि, वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, ताकि प्रहलाद का अंत हो सके। 

दरअसल, होलिका को  ब्रह्मा जी का वरदान था कि वह अग्नि में जल नहीं सकती। इसलिए हिरण्यकश्यप के कहने पर वह प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन विष्णु कृपा ऐसी हुई कि, होलिका अग्नि में जलकर स्वाहा हो गई और प्रहलाद फिर बच गया। इसलिए होलिका दहन प्रतिवर्ष किया जाता है। 

डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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