Mental Health: आपने अपने आस-पास कुछ ऐसे लोगों को जरूर देखा होगा, जो मामूली बातों से ही बेवजह बहुत ज्यादा घबरा जाते हैं, ऐसे लोग पैनिक डिसऑर्डर के शिकार हो सकते हैं। हालांकि मुश्किल हालात में थोड़ी घबराहट होना स्वाभाविक है, लेकिन कुछ लोग छोटी-छोटी बातों से ही बहुत जल्दी नर्वस हो जाते हैं। यह पैनिक डिसऑर्डर नामक मनोवैज्ञानिक समस्या का लक्षण हो सकता है।

इन्हें होता है अधिक रिस्क
पैनिक डिसऑर्डर समस्या, चिंता और डर से जुड़ी हुई है। शुरुआती दौर में लोग इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं। जो लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर बेवजह चिंतित रहते हैं, उन्हें यह मनोवैज्ञानिक समस्या हो सकती है। अगर किसी को फोबिया की समस्या हो तो उन स्थितियों में पैनिक डिसऑर्डर के भी लक्षण नजर आ सकते हैं, जिनसे व्यक्ति को अत्यधिक डर लगता है। मसलन, कुछ लोगों को ऊंचाई, लिफ्ट, एयरोप्लेन, भीड़ आदि से बहुत घबराहट होती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को पैनिक अटैक आ सकता है। इसके अलावा कोई बड़ा सदमा जैसे-आर्थिक नुकसान, पारिवारिक कलह, दुर्घटना, किसी प्रियजन की मौत के बाद भी ऐसे लक्षण नजर आ सकते हैं। अधिक गंभीर स्थिति में व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है।

प्रमुख लक्षण: कमजोरी और अनावश्यक थकान, छोटी सी समस्या देखकर घबराहट में हाथ-पैर कांपना, अधिक पसीना निकलना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, बोलते वक्त जुबान लड़खड़ाना और दिल की धड़कन बढ़ जाना।

समस्या का कारण
जिन लोगों की परवरिश अति संरक्षण या सख्ती भरे माहौल में होती हैं, उनमें मुश्किल स्थितियों का सामना करने की क्षमता विकसित नहीं होती है। ऐसे बच्चों में बड़े होने के बाद पैनिक डिसऑर्डर होने की आशंका बढ़ जाती है। इसके अलावा हर इंसान के व्यक्तित्व के कुछ कमजोर पक्ष ऐसे होते हैं, जिनसे यह समस्या हो सकती है। जैस-चिंता, गहरी उदासी, भय, गुस्सा, शक करने की आदत और भावनात्मक असंतुलन जब एक सीमा से अधिक बढ़ जाए तो व्यक्ति में इसके लक्षण प्रकट हो सकते हैं। थाइरॉयड ग्लैंड की अत्यधिक सक्रियता या दिल से संबंधित कोई समस्या होने पर भी पैनिक अटैक की आशंका बढ़ जाती है।

कैसे करें बचाव
पैनिक डिसऑर्डर से बचाव के लिए हमेशा तनावमुक्त रहें, परिवार के सदस्यों के अलावा प्रियजनों से नियमित रूप से बातचीत करें क्योंकि अकेलापन भी इसकी बड़ी वजह है। आठ घंटे की पर्याप्त नींद लें, नियमित एक्सरसाइज और योगाभ्यास करें। अगर कभी अधिक घबराहट हो तो शरीर को ढीला छोड़कर गहरी सांस लें, इससे राहत महसूस होगी।

उपचार के तरीके
व्यक्ति में मौजूद लक्षणों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, इसका उपचार किया जाता है। जरूरत पड़ने पर एंटीडिप्रेसेंट दवाएं भी दी जाती हैं। काउंसलिंग और कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी की मदद से व्यक्ति में यह समझ विकसित की जाती है कि जब कोई समस्या आए तो उससे घबराने के बजाय उसका हल ढूंढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। एक्सपोजर थेरेपी की मदद से विशेषज्ञ मरीज को उन जटिल स्थितियों का सामना करना सिखाते हैं, जिनकी वजह से घबराहट होती है। उपचार के छह महीने के बाद व्यक्ति के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव नजर आने लगता है।

प्रस्तुति:विनीता