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Acidity Treatment: एसिडिटी से बचने के लिए सूजी, दलिया, ओट्स, हरी सब्जियों और फलों को प्रमुखता से शामिल करें। नियमित रूप से योग और एक्सरसाइज करें। अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगे तो एसिडिटी की समस्या आपको परेशान नहीं करेगी।

Acidity Treatment: महानगरीय अस्त-व्यस्त जीवनशैली और खान-पान में लापरवाही की वजह से जो स्वास्थ्य समस्याएं पनप रही हैं, एसिडिटी भी उनमें से एक है। अगर सही समय पर इसका उपचार ना किया जाए तो यह समस्या आगे चलकर गंभीर रूप धारण कर सकती है।

क्या होती है एसिडिटी
फूड पाइप के ठीक नीचे खाने की थैली होती है, जिसे स्टमक कहा जाता है। इसकी भीतरी दीवारों की कोशिकाओं से हाइड्रोक्लोरिक एसिड का स्राव होता है, जो भोजन को पचाने का काम करता है, लेकिन कई बार स्टमक जरूरत से अधिक मात्रा में एसिड बनाने लगता है, जिसकी वजह से एसिडिटी की समस्या होती है।

प्रमुख लक्षण
एसिडिटी के प्रमुख लक्षणों में सीने में जलन, पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, जी मिचलाना, उल्टियां आना, गला सूखना, भोजन में अरुचि, खट्टी डकारें आना, पेट में भारीपन, कब्ज, बेचैनी और सांस लेने में तकलीफ शामिल हैं।

समस्या की वजह
सुबह नाश्ता ना करना, लंबे समय तक खाली पेट रहना या ओवर ईटिंग, चावल, घी-तेल, मिर्च-मसाले का अधिक मात्रा में सेवन, क्रोध या मानसिक तनाव के कारण भी एसिड का सीक्रेशन बढ़ जाता है। चाय, कॉफी, एल्कोहल और सिगरेट का अधिक मात्रा में सेवन, भोजन को अच्छी तरह नहीं चबाना, खान-पान की अनियमित हैबिट, पर्याप्त नींद ना लेना, एक्सरसाइज-शारीरिक गतिविधियों में कमी, दर्द निवारक दवाओं का लगातार या अधिक मात्रा में सेवन करने से एसिडिटी की समस्या बढ़ सकती है। इनके अलावा कुछ और फैक्टर्स होते हैं, जिससे एसिडिटी बढ़ जाती है। 

जॉब नेचर
जिन लोगों को ज्यादा देर तक बैठकर काम करना पड़ता है, उनके पाचन की क्रिया धीमी हो जाती है, इस वजह से उन्हें भी एसिडिटी हो जाती है। इसके अलावा फील्ड जॉब से जुड़े लोगों के खान-पान की आदत अनियमित होती है, कर्इ बार उन्हें जंक फूड पर निर्भर रहना पड़ता है, इसलिए उन्हें भी एसिडिटी होने की आशंका रहती है। अगर आपको लगातार बैठकर काम करना होता है तो हर दो घंटे के अंतराल पर सीट से उठकर पांच मिनट के लिए टहल लें, जब भी गुंजाइश हो पैदल चलने की कोशिश करें, अगर संभव हो तो लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करें। अगर फील्ड जॉब में हों तो बिस्किट, फल, सैंडविच और जूस जैसी चीजें अपने साथ रखें, ताकि बीच में भूख लगने पर आपको बाहर की नुकसानदायक चीजें खानी ना पड़ें। डिनर में नॉनवेज और तली-भुनी चीजों का सेवन ना करें, मॉर्निंग वॉक और एक्सरसाइज कभी न छोड़ें।

प्रेग्नेंसी
इस अवस्था में महिलाओं के शरीर से कुछ हार्मोन का स्राव तेजी से होने लगता है, इसी वजह से लिवर के काम करने की गति धीमी हो जाती है। इससे भोजन पचने में काफी समय लगता है और पेट में गैस बनने लगती है। प्रेग्नेंसी के आखिरी तीन महीनों में गर्भाशय का आकार बड़ा हो जाता है, जिससे स्फिंक्टर (फूड पाइप के निचले हिस्से) और आंतों पर दबाव पड़ता है। इससे स्फिंक्टर ढीला पड़ने लगता है और अनपचा भोजन ऊपर की तरफ वापस आने लगता है, इससे गर्भावस्था में भी एसिडिटी और कब्ज की समस्या होती हैं। ऐसी समस्या से बचाव के लिए एक ही बार ज्यादा खाने के बजाय हर दो घंटे के अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा खाएं। भोजन अच्छी तरह चबाकर करें।

जानें बचाव का तरीका
बुढ़ापे में शारीरिक गतिविधियों की कमी, हार्मोन संबंधी बदलाव और दांतों की कमी के कारण पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, जिससे एसिडिटी और गैस की समस्या परेशान करने लगती है। इससे बचाव के लिए अपनी डाइट में फाइबर युक्त चीजों जैसे सूजी, दलिया, ओट्स, हरी सब्जियों और फलों को प्रमुखता से शामिल करें। नियमित रूप से योग और एक्सरसाइज करें। अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगे तो एसिडिटी की समस्या आपको परेशान नहीं करेगी।

(सर गंगाराम हॉस्पिटल, दिल्ली में एचओडी-गैस्ट्रोलॉजी, डॉ. सौमित्र रावत से बातचीत पर आधारित) 

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विनीता 
 
    

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