Lifestyle Tips: अक्सर कम तापमान, धूप की कमी, छोटे दिन और लंबी रातें होने की वजह से सर्दियों में मानसिक स्थिति में उतार-चढ़ाव बहुत ज्यादा होता है। अवसाद, चिड़चिड़ापन और अनावश्यक से बचने और हैप्पी रहने के लिए अपनाएं कुछ खास उपाय। सर्दी के मौसम में कुछ लोग बहुत फील करते हैं। इससे बचाव के लिए आप कुछ आसान उपाय आजमा सकते हैं।
फोटो थेरेपी
प्रकाश चिकित्सा में, जिसे फोटो थेरेपी भी कहा जाता है, आप एक विशेष प्रकाश बॉक्स से कुछ फीट की दूरी पर बैठते हैं ताकि आप प्रत्येक दिन जागने के पहले घंटे के भीतर उज्ज्वल प्रकाश के संपर्क में आ सकें। प्रकाश चिकित्सा नेचुरल लाइट्स की नकल करती है और मूड से जुड़े मस्तिष्क रसायनों में बदलाव लाती है।
आर्ट थैरेपी
मस्तिष्क में डोपामाइन और सेरोटोनिन जैसे फील गुड न्यूरोट्रांसमीटर बढ़ाने के लिए मनोवैज्ञानिक और व्यवहार विशेषज्ञ इन दिनों आर्ट और क्रिएटिव थेरेपी का इस्तेमाल कर रहे हैं। मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त करने के लिए यह एक प्रभावी तकनीक है। कई अध्ययनो में पता चला है कि कला से जुड़ी गतिविधियां, मस्तिष्क में फील गुड हारमोंस का स्राव बढ़ाती हैं। आप चाहें तो पेंटिंग या ड्रॉइंग जैसी गतिविधियों में इंवॉल्व हो सकते हैं।
कलर थेरेपी
मूड स्विंग जैसी समस्याओं में बेहद कारगर है कलर थेरेपी। ऐसा न सिर्फ हमारे पूर्वजों और कुदरती चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना था बल्कि आधुनिक मनोवैज्ञानिकों का अध्ययन भी इसका समर्थन करता है। रंग चिकित्सा उपचार का बेहद प्राचीन तरीका है। आज की भाषा में इसे क्रोमोथेरेपी कहते हैं। रिसर्च बताते हैं कि पीले और नारंगी रंग दिमाग में सेरोटोनिन नामक फील गुड हार्मोन का स्तर बढ़ाते हैं। इससे मूड बेहतर होता है, शरीर में पॉजिटिव एनर्जी बढ़ती है तथा क्रिएटिविटी के लिए मोटिवेशन मिलता है। आपको अपने घर में सूर्य की रोशनी से मिलते-जुलते पीले नारंगी रंगों का उपयोग करना चाहिए या वैकल्पिक रूप से आप क्रोमोथेरेपी लैंप भी आजमा सकते हैं।
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फॉरेस्ट बाथिंग
हम दिनों दिन कुदरत से दूर होते जा रहे हैं। पहले हमारे घरों के बाहर और आस-पास भरपूर हरियाली व पेड़-पौधे होते थे। इस कमी से बचने के लिए जापान, फिनलैंड, अमेरिका और साउथ कोरिया में फॉरेस्ट बाथिंग की परंपरा है। लेकिन फॉरेस्ट बाथिंग की शुरुआत सबसे पहले सन 1980 में जापान में एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास के रूप में हुई। जापानी भाषा में इसे शिनरिन योकू कहा जाता है। इसमें प्रकृति के साथ सीधा जुड़ाव होता है।
इसमें लोगों को पक्षियों की आवाज सुनने, पेड़ों को गले लगाने और उनकी महक को महसूस करने के लिए प्रेरित किया जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जंगल की हवा में पेड़ों से निकलने वाले प्राकृतिक रसायन फाइटोसायनाइड होते हैं, जो तनाव के हार्मोन को कम करते हैं। इसके अलावा ये खुशी बढ़ाने वाले सेरोटोनिन हार्मोन का लेवल बढ़ाते हैं। प्रकृति के बीच बिताया गया समय मन की शांति और स्थिरता लाने वाली मस्तिष्क की अल्फा वेव्स को सक्रिय करता है। यह थेरेपी दिल की धड़कन को भी दुरुस्त करती है। अध्ययन में सामने आया कि इससे तनाव कम रहता है और जीवन की गुणवत्ता बेहतर होती है।
बायोंयूरल बीट्स थेरेपी
अलग-अलग फ्रीक्वेंसी की बीट्स सुनने से मूड स्थिर होता है। कई अध्ययनों में पता चला है कि अलग-अलग फ्रीक्वेंसी की ध्वनि तरंगों को सुनना मन को सुकून देने वाला होता है। विभिन्न फ्रीक्वेंसी की ध्वनि तरंगों को सुनने से मस्तिष्क एक नई फ्रीक्वेंसी प्रोसेस कर लेता है। यह प्रक्रिया मस्तिष्क की तरंगों को अल्फा, बीटा, थीटा या डेल्टा स्टेट में लाती है। अल्फा तरंगों से मन शांत होता है, जबकि थीटा तरंगों से भावनात्मक संतुलन बढ़ता है। इन्हें रेग्युलर सुनने से न्यूरोलॉजिकल संतुलन बेहतर होता है। आप चाहें तो मन को सुकून देने के लिए अल्फा या थीटा फ्रीक्वेंसी पर आधारित बीट्स सुन सकते हैं।
इन सरल उपायों से सर्दी के इस मौसम में आपका मन उदास नहीं होगा।
हेल्थ सजेशन: शिखर चंद जैन