Single Mother Child: किसी भी कारण अगर बच्चे को पिता का सान्निध्य और संरक्षण नहीं मिलता है तो अकेली मां के लिए बच्चे की परवरिश आसान नहीं होती। सिंगल मदर के बच्चे भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर हो जाते हैं। इनका विकास बहुत ज्यादा बाधित होता है। ऐसे बच्चों की मनोदशा समझना बहुत जरूरी है, ताकि उनकी परवरिश सही ढंग से हो।
विभिन्न शोध अध्ययनों और सर्वेक्षणों से वैश्विक स्तर पर यह बात उभरकर आई है कि दुनिया में सबसे ज्यादा भावनात्मक रूप से कमजोर सिंगल मदर यानी अकेली मां के बच्चे होते हैं। उनकी यह भावनात्मक कमजोरी उनके समूचे व्यक्तित्व में हर जगह झलकती है। मसलन, सिंगल मदर्स के बच्चों की स्कूली उपलब्धियां कमतर होती हैं। सौ में से कोई एक या दो बच्चा ही पढ़ने में औसत से बेहतर होता है। अपनी कक्षा में सबसे तेज-तर्रार होना तो ऐसी मदर्स के बच्चों के लिए स्वप्न सरीखा होता है, क्योंकि इन बच्चों का सामाजिक और भावनात्मक विकास उस स्तर का नहीं हुआ होता कि ये व्यावहारिक दुनिया की वास्तविकताओं का सहजता से सामना कर सकें। सिंगल मदर के बच्चे स्वभाव से बेहद चिड़चिड़े, कामचोर और परफॉर्मेंस के मामले में दयनीय होते हैं। इनकी दिनचर्या, शिक्षा, आवास व्यवस्था और पारिवारिक आय में हमेशा सिंगल मदर का बच्चा होना मौजूद रहता है।
कई तरह की व्याधियों से होते हैं घिरे
देखा यही गया है कि अकेली मां के बच्चे स्कूलों में सहजता से टीचर की बातें समझ नहीं पाते। समझते हैं तो सीख नहीं पाते और टीचर ही नहीं बल्कि अपने सहपाठियों के साथ भी तालमेल नहीं बैठा पाते। इन्हें उनका व्यवहार अटपटा लगता है और बाकी बच्चों की नजरों में अकेली मां के ये बच्चे अबूझ किस्म के होते हैं, ये बच्चे ज्यादातर समय अकेले रहना पसंद करते हैं। अकेले रहते हुए कई तरह की असुरक्षाओं से दो-चार होते हैं। इनका शरीर तो पर्याप्त पोषण से वंचित होता ही है, इनके मन और दिमाग को भी पर्याप्त पोषण नहीं मिलता। ज्यादातर सीरियल किलर विस्तृत अध्ययन में एकल मां-बाप के बच्चे पाए गए हैं या जिन्हें बचपन में लंबे समय तक अकेले रहना पड़ा है।
समाज की तमाम खूबियों से वंचित
समाजशास्त्री बार-बार कहते हैं कि आदमी एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए आदमी की परवरिश में सामाजिक तत्वों का बहुत महत्व होता है। जब किसी बच्चे को अपने विकास के क्रम में ये सामाजिक तत्व हासिल नहीं होते, तो वे समाज की उन तमाम खूबियों से वंचित हो जाते हैं, जो खूबियां दूसरे बच्चों को बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के हासिल होती हैं। अकेले मां-बाप के बच्चे जो ज्यादातर समय अकेले रहते हैं, उनकी भाषा उन बच्चों से भिन्न होती है, जो बच्चे अपने घर के तमाम सदस्यों के साथ रहते हैं। इनकी भाषा असभ्य, हिंसक और सीमित शब्दावलियों वाली होती है, क्योंकि ये कम से कम शब्दों को सीखते हैं और उन्हीं से काम चलाते हैं।
हमेशा रहते हैं डरे-सहमे
अमेरिका में सिंगल मदर के किशोरों का अध्ययन करने से पता चला है कि ये हमेशा डरे-डरे रहते हैं, क्योंकि यह बचपन में बहुत लंबे समय तक अकेले रहे होते हैं। इनके अंदर समूह में किस तरह व्यवहार किया जाए, इसकी समझ नहीं होती। ये कई लोगों के बीच अचकचा जाते हैं। इन्हें घर से भाग जाना, चोरी करना और शराब पीना ना बुरा लगता है और ना ही इससे इनको किसी तरह का खतरा महसूस होता है। अकेले रहने के कारण इनके शरीर में रासायनिक परिवर्तन की भिन्नता भी देखने को मिलती है। मसलन, इनमें अकसर तनाव का हार्मोन कोर्टिसोल बढ़े हुए स्तर पर पाया जाता है। ये या तो अकसर सोते ही रहते हैं या बहुत कम सोते हैं। ये बहुत आसानी से धूम्रपान के आदी हो जाते हैं बल्कि बिना धूम्रपान के ये अपने अस्तित्व की कल्पना ही नहीं कर पाते।
अपने प्रति उदासीन
अकेली मां के बच्चों की जो एक खास पहचान है, वह यह है कि वो अकसर सिरदर्द या ऐसे अस्पष्ट दर्द से पीड़ित होते हैं, जो उन्हें पता ही नहीं होता कि कहां हो रहा है, किस वजह से हो रहा है। यह ज्यादातर समय गंदे रहते हैं। सजने-संवरने का इन्हें कोई शौक नहीं होता और खाने के मामले में इनमें जरा भी सौंदर्यबोध नहीं होता। ये खाने को इस तरह से खाते हैं कि आमतौर पर किसी दूसरे को देखने में बुरा लगता है। ये अवसाद और चिंताओं से घिरे होते हैं। ये बार-बार फिसलते हैं, गिरते हैं, इन्हें रह-रह कर चोटें लगती हैं। ये शरीर से कमजोर होते हैं और बहुत कम के चेहरे पर कभी कोई आकर्षण दिखता है। कुल मिलाकर अकेलापन सिर्फ बूढ़ों को ही लाचार नहीं बनाता बल्कि अगर यह छोटे बच्चों के जीवन में भी मौजूद होता है, तो उन्हें भी यह बचपन से कुंठित कर डालता है। इसलिए ऐसे बच्चों की परवरिश में मां को बहुत सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। ऐसे में सिंगल मदर्स के प्रति परिजन, रिश्तेदार और आस-पास के लोगों का एक सामाजिक दायित्व बनता है कि वे अकेली मां को ही नहीं, उसके बच्चे को भी अपना प्रेम-स्नेह दें, उनका भावनात्मक संबल बनें, ताकि वे अपने आपको अकेला, निसहाय ना समझें। बच्चों का विकास सही ढंग से हो।