Parenting Tips: आज के पैरेंट्स अपने बच्चों से सख्ती से पेश आना पसंद नहीं करते। वे बच्चों से फ्रेंडली पेश आते हैं। इस तरह पेश आना गलत भी नहीं है, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे फ्रेंड बनकर कहीं असभ्य ना हो जाएं। पैरेंट्स अपने और बच्चों के बीच मर्यादा की एक सीमा रेखा जरूर रखें। साथ ही पैरेंट्स स्वयं भी अपना आचार-व्यवहार ऐसा रखें कि बच्चे संस्कारवान बनें।

क्या मम्मा, आपका ड्रेसिंग सेंस कितना पुअर है। आपको कब अक्ल आएगी? यार, आप तो इस ड्रेस में फुटबॉल नजर आ रही हैं।’ कुछ दिन पहले जब मैं अपनी एक सहेली के घर गई तो  उसकी चौदह वर्षीया बेटी को अपनी मां से कुछ इस तरह बातें करते सुना। शायद उन लोगों के बीच इस तरह बात करना बहुत आम हो। इसलिए मेरी फ्रेंड ने भी कुछ नोटिस कर रिएक्ट नहीं किया। उसकी बेटी मुझसे थोड़ी बहुत बातचीत कर अपने रूम में चली गई। मैं अपनी फ्रेंड से काफी टाइम बाद मिलने गई थी। हमने खूब अच्छा टाइम स्पेंड किया। लेकिन आते वक्त मैं यह सोच रही थी कि एक जमाना वो था, जब हम अपनी मां से कुछ कहने में हिचकिचाते थे, आज यह जमाना है कि बच्चे अपने माता-पिता से डरना तो दूर, उनसे कुछ भी बोल देते हैं, कोई आदर भाव नहीं होता। बच्चों का इस तरह का व्यवहार कहीं हमारी गलती से तो नहीं है? हमने फ्रेंडली होने के चक्कर में कहीं उनकी शिष्टता-सभ्यता खत्म तो नहीं कर दी है? या हम इस नए दौर में इसकी जरूरत महसूस नहीं करते। इसे  मॉडर्न पैरेंटिंग पैटर्न मानते हैं। 

जरूरी है सीमा रेखा
यह एक बहुत अच्छी बात है कि आज के बच्चे अपने माता-पिता से खुलकर अपनी बात कहते हैं, उनके मन में अपने पैरेंट्स के लिए डर नहीं होता। लेकिन एक जरूरी सीमा रेखा पैरेंट्स और बच्चों के बीच जरूर होनी चाहिए। बच्चों को बताना चाहिए कि बड़ों से किस तरह से बात की जाती है। बड़ों से एक शिष्टाचार के साथ बात करनी चाहिए, बच्चे इसे ना भूलें। अकसर देखा जाता है कि बच्चे पैरेंट्स की फिजिक पर कमेंट्स करते हैं, ऐसा करने से आप उन्हें रोकें। उन्हें यह जरूर लगे कि आप उनके सपोर्ट में हमेशा खड़ी हैं, फ्रेंडली पेश आती हैं लेकिन आप उनकी फ्रेंड नहीं हैं, उनकी मां हैं, पैरेंट हैं, आदर की पात्र हैं।

भाषा पर ध्यान दें
बच्चे बहुत नादान और भोले होते हैं। उन्हें एक अच्छा इंसान बनाना पैरेंट्स की जिम्मेदारी है। इसके लिए अपने बच्चे की भाषा पर ध्यान दें। असभ्य तरीके से बोले तो उसे टोकें, जैसे आजकल लोग ‘यार’ शब्द का इस्तेमाल बहुत करते हैं। बड़ों के साथ इस तरह के शब्दों का संबोधन सही नहीं है। यह शिष्टाचार के विरुद्ध है।

खुद का आचरण सही रखें
बच्चों को सुधारने से पहले स्वयं भी अपने आचरण को देखें कि हम अपने बड़ों से किस तरह का व्यवहार करते हैं। खासतौर पर जब हमें गुस्सा आ रहा होता है, तो हमारी भाषा का क्या स्तर होता है? हम कभी किसी की कद- काठी, रंग-रूप और पहनावे पर कोई कमेंट ना करें। बच्चे घर में जब इस तरह की बातें सुनते हैं तो वे भी उसी तरह बातें करने लगते हैं। यहां तक कि वे अपने माता-पिता पर भी टीका-टिप्पणी शुरू कर देते हैं। घर में पति-पत्नी आपस में ऐसी बातें करते हैं, जिसका असर उनके बच्चों पर पड़ता है। बहुत बार कपल्स एक-दूसरे को छेड़ने के लिए बॉडी शेमिंग करते हैं। जैसे पति के सिर पर अगर बाल कम हैं तो पत्नी उन्हें अकसर गंजा कहकर चिढ़ा देती है। पति भी बहुत बार पत्नी के बढ़ते वजन पर कमेंट्स कर देते हैं। यह सही है कि पति-पत्नी के बीच एक मजाक का रिश्ता होता है, वे एक-दूसरे से जैसे चाहें बात करें, लेकिन बड़े होते बच्चों के सामने सोच-समझ बोलें। कुछ भी बोलने से पहले यह समझ लें कि बच्चे आपकी बोलचाल और व्यवहार से बहुत कुछ सीखते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि आप घर में बहुत औपचारिक माहौल रखें। हां, अपनी बातचीत और व्यवहर में ऐसा कुछ ना करें कि बच्चों पर गलत असर पड़े। बच्चे अपने माता-पिता को जिस तरह का व्यवहार करते देखते हैं, वे भी उसी तरह का व्यवहार अपनाते हैं। वे अपने माता-पिता के अच्छे आचार-व्यवहार देखकर ही संस्कारवान बनते हैं।   
(मनोवैज्ञानिक डॉ. श्वेता शर्मा से बातचीत पर आधारित)

यासमीन सिद्दीकी