World Heritage Day: साल 1983 में 18 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को ने भविष्य की पीढ़ियों को अपने पूवर्जों की सांस्कृतिक धरोहरों से प्रेम और परिचय कराने के लिए इस दिवस की रूपरेखा बनाई थी, तभी से 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस या वर्ल्ड हैरिटेज-डे मनाया जाता है। विश्व धरोहर दिवस महज अपने पूर्वजों की विरासत के प्रति सम्मान की रस्म अदायगी भर का दिन नहीं है। पूरी दुनिया अब विश्व विरासत की न सिर्फ अच्छी तरह से कीमत समझ रही है बल्कि इस कीमत को सही तरीके से भुना भी रही है।
आर्थिक लाभ का जरिया
चाहे यूनान हो या स्पेन, इटली हो या फ्रांस, आज अगर इनकी कमाई का बहुत बड़ा जरिया इनकी विरासतों यानी इनके पुरखों की धरोहरों को देखने के लिए उमड़ते दुनियाभर के पर्यटक हैं, तो ये देश भी अपनी इन विरासतों की देख-रेख और उन्हें महत्वपूर्ण बनाए रखने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इस 21वीं सदी में दुनिया बहुत अच्छी तरह से समझ गई है कि विरासत की रक्षा करना इसलिए जरूरी नहीं है कि यह हमें हमारे गौरवपूर्ण अतीत से जोड़ती है बल्कि विरासत की रक्षा करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह लगातार हमारी पहचान का हिस्सा है और पर्यटन के जरिए आर्थिक लाभ का जरिया भी।
हालांकि दुनिया का कोई भी देश प्रत्यक्ष तौर पर इस बात को स्वीकारने से झिझकता है कि उसकी विरासत, उसकी आर्थिक कमाई का बड़ा जरिया है। कहने के लिए सभी देश अपनी विरासतों को, अपने राष्ट्रीय गौरव को दुनिया के लिए सांस्कृतिक मूल्यों के रूप में प्रस्तुत करते हैं। लेकिन हम सब समझते हैं कि ये गौरव और अच्छी कमाई का जरिया न हो, तो शायद इनकी परवाह कम ही लोग करें।
मिलती है सांस्कृतिक महत्ता
आज की तारीख में हमारी धरोहरें विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के बीच हमारे संबंधों को भी तय करती हैं। आज हमें दुनिया में जो सांस्कृतिक महत्ता मिलती है, उसमें भी हमारे इतिहास और हमारी सांस्कृतिक विरासत का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसलिए विरासत की रक्षा करना हर देश के लिए आज उसकी पहली प्राथमिकता है। शायद इसीलिए इस वर्ष विश्व विरासत दिवस की थीम ‘हमारी वैश्विक विरासत की रक्षा करना।’ निश्चित की गई है।
वैश्विक समाजों को मिलती है प्रेरणा
विश्व विरासत दिवस की इसलिए अपने आप में एक वैश्विक महत्ता है, क्योंकि इसके जरिए दुनिया में सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने में सहूलियत मिल रही है। विश्व की विरासतें मानव को सतत रूप से प्रेरित करती हैं। सिर्फ किसी समाज की विरासत उसी समाज को प्रेरित नहीं करती बल्कि विश्व के दूसरे समाजों को भी विरासत अच्छी तरह से प्रेरित करती है। विरासत दिवस के चलते पर्यावरण और जागरूकता को बढ़ावा मिलता है। विरासतें विभिन्न समुदायों के बीच रिश्तों को आत्मीय और सम्मानजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और मानवीय उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए महत्वपूर्ण आधार होती हैं। यही वजह है कि विश्व विरासत को दुनियाभर के मानव समाज के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
इसके चलते सांस्कृतिक, प्राकृतिक सुरक्षा और संरक्षण स्वतः संभव होता है। विश्व धरोहर दिवस या विश्व विरासत दिवस को मनाए जाने के पीछे जहां एक तरफ अलग-अलग समाजों के अपनी वैयक्तिक श्रेष्ठताबोध को दर्शाने का लक्ष्य है, वहीं सामूहिक रूप से जब विश्व धरोहर दिवस मनाते हैं, तो इससे पूरी दुनिया की मानवीय धरोहरों और संस्कृतियों को महत्व मिलता है, जिससे समूची धरती के लोग अपने पुरखों के लिए सम्मान, आदर व कृतज्ञता का एहसास करते हैं। क्योंकि दुनिया के किसी भी कोने में, धरती के पूर्वजों ने जो भी महान कृतियां विरासत में छोड़ी हैं, उन सबसे मानव की गरिमा, उसकी महत्ता और खास बात ये है कि किसी वातावरण विशेष के साथ उसके एकबद्ध रहने की संकल्पना का पता चलता है। इसलिए यह दिन महज स्मारकों को याद करने का दिन नहीं है। अपने पुरखों की स्मृतियों को मनन करने का दिन भी है।
हम भी करें धरोहरों का सम्मान
भारत में विश्व धरोहरों का सम्मान इसलिए भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि लंबे समय तक भारत पहले विदेशी आक्रांताओं और फिर साम्राज्यवादी लूट-खसोट का केंद्र रहा है, इसलिए पिछले लगभग 1000 सालों में भारत की सांस्कृतिक विरासत न सिर्फ बड़ें पैमाने पर छिन्न-भिन्न हुई बल्कि इन विदेशी लुटेरों और साम्राज्यवादी षड़यंत्रकारियों ने लोगों के दिलोदिमाग में ऐसी हीनताबोध भी भर दिया कि आम हिंदुस्तानियों को अपने इतिहास, संस्कृति और परंपरा में कोई ऐसी महत्वपूर्ण चीज ही नजर नहीं आती थी, जिसे सांस्कृतिक धरोहर मानकर उसके प्रति गौरवबोध का एहसास हो।
हमारे गौरवमयी धरोहर स्थल
भारत में आज 42 विश्व धरोहर स्थल हैं, इनमें 34 सांस्कृतिक हैं और 7 प्राकृतिक, एक कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान मिश्रित किस्म की धरोहर है। इसलिए भारत के लिए विश्व धरोहर दिवस महत्वपूर्ण है। भारत में विश्व विरासत दिवस पहली बार संयुक्त राष्ट्र यूनेस्को द्वारा मनाए जाने के समय से ही मनाया जा रहा है, इसलिए भारत के लिए यह खास महत्व रखता है। भारत की जिन सांस्कृतिक विरासतों को महत्वपूर्ण माना जाता है, उसमें अजंता की गुफाएं, सांची के बौद्ध स्तूप, चंपानेर और पावागढ़ के पुरातत्व उद्यान, मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन, पुराने गोवा के चर्च, एलिफेंटा और एलोरा की गुफाएं, आगरा और फतेहपुर सीकरी की मुगलकालीन स्मारकें। तमिलनाडु के चोल मंदिर, कर्नाटक के हंपी स्मारक और कर्नाटक के ही पद्दकल स्मारक, दिल्ली में हूमायूं का मकबरा, असम में कांचीरंगा राष्ट्रीय अभ्यारण्य, खजुराहों के स्मारक और मंदिर, भारतीय पर्वतीय रेल, नंदा देवी राष्ट्रीय अभ्यारण्य, फूलों की घाटी, कोणार्क का सूर्य मंदिर सहित दर्जनों दूसरी विरासतें हैं, जो भारत का ही नहीं दुनिया का मान बढ़ा रही हैं। साल 1993 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में अंजता की गुफा को पहली बार विश्व विरासत घोषित किया गया था और इसके बाद आगरा का लालकिला और ताजमहल को भी यह श्रेणी हासिल हुई।
शैलेंद्र सिंह