Bihari Migrants Burn Forest: बिहारी लड़कों ने हाल ही में उत्तराखंड कीर पहाड़ी और जंगल में आग लगा दी। जब जंगल धू धू कर जल उठा तो इन लड़कों ने इसका वीडियो भी बनाया। वीडियो को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया गया है।जंगल को आग लगाने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले इन लड़कों के खिलाफ एक्शन लेने की मांग उठने लगी है। लोग इस घटना को लेकर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। वीडियो में साफ दिख रहा है कि पहाड़ी से आग की लपटे उठ रही हैं और दो लड़के इस घटना के बारे में बताते हुए वीडियो बना रहे हैं।

''आग लगाना और आग से खेलना ही हमारा काम''
वीडियो में एक लड़का मैरून रंग का और दूसरा लड़का ब्लू कलर की टीशर्ट पहने नजर आ रहा है। इनमें से एक लड़के ने हाथ में डंडा ले रखा है। वीडियो में एक लड़का कह रहा है कि देखिए फाइनली गाइज हम लोग आग लगाने का काम कर रहे हैं। आग लगाना और आग से खेलना ही हमारा काम है। हम जब-तब आग से खेलते रहते हैं। आज हम लोग यही काम करने यहां आए हैं। हम यहां पहाड़ को जलाकर भस्म कर देंगे। नीचे गिरे पत्तों को भी जलाकर राख कर देंगे।

''बिहारियों को कभी चैलेंज नहीं किया जाता''
वीडियो में लड़के कह रहे हैं कि हम हमेशा आग से खेलते हैं। ये हमारे सुखलाल अंकल हैं, जो हमेशा आग लगाते रहते हैं। आग से खेलने वालों से कभी टक्कर नहीं लिया जाता और बिहारियों को कभी चैलेंज नहीं किया जाता। इस वीडियो को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि इन बिहारी प्रवासियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए। इन लोगों ने उत्तराखंड की प्राकृतिक संपदाओं को नुकसान पहुंचाया है।

उत्तराखंड वन विभाग ने नहीं दी है प्रतिक्रिया
बता दें कि अभी तक उत्तराखंड वन विभाग की ओर से इस वीडियो को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। ना ही उत्तराखंड सरकार ने कोई बयान दिया है। उत्तराखंड अपने पहाड़ों और जंगलों के लिए जाना जाता है। स्थानीय लोग पहाड़ों और जंगलों से प्यार करते हैं। उत्तराखंड के कुछ लोग अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर भी निर्भर हैं। यह पहाड़ और जंगल कई प्रकार के जंगली जानवरों के घर भी हैं। इन जंगल और पहाड़ों में आ लगाने से उत्तराखंड के वन्य जीव इको सिस्टम के प्रभावित होने का खतरा है। 

उत्तराखंड में गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक जंगल जल रहे
उत्तराखंड में गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक जंगल जल रहे हैं। अकेले बुधवार को, जंगल में आग लगने की आश्चर्यजनक 40 घटनाएं हुईं, जिनमें से गढ़वाल में 26 और कुमाऊं में 14 घटनाएं हुईं, जिससे 46 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि जलकर खाक हो गई। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे जंगल में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। बुधवार को टेहरी बांध वन प्रभाग में तीन, भूमि संरक्षण वन प्रभाग रानीखेत में एक और अल्मोडा वन प्रभाग में एक ऐसी घटना सामने आई।

बागेश्वर और पिथौरागढ़ वन प्रभागों में जंगल में आग
इसके अतिरिक्त, बागेश्वर और पिथौरागढ़ वन प्रभागों में जंगल में आग की दो-दो घटनाएं हुईं, जिनमें से पांच सिविल वन क्षेत्रों में थीं। वृद्धि में तराई पूर्वी वन प्रभाग में दो, रामनगर वन प्रभाग में एक, नरेंद्र नगर वन प्रभाग में पांच, सिविल वन पंचायत क्षेत्र में दो, मसूरी वन प्रभाग में एक और सिविल वन क्षेत्र में एक शामिल है। गौरतलब है कि सबसे ज्यादा 14 घटनाएं सिविल सोयम पौड़ी वन प्रभाग में दर्ज की गईं। अतिरिक्त मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा के अनुसार, इस सीजन में राज्य भर में जंगल में आग लगने की 761 घटनाएं हुई हैं।

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर तक पहुंची जंगल की आग
जंगल की आग का खतरा तब खतरनाक स्तर पर पहुंच गया जब आग की लपटों ने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर को घेर लिया। परिसर निदेशक सहित संकाय, छात्रों और कर्मचारियों की त्वरित कार्रवाई से एक बड़ी आपदा टल गई। हालांकि, पूरा परिसर धुएं में डूबा कुछ देर के धुंए से भर गया। आसपास के लोगों को भी इस वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ा।

जंगल की आग फैलाने में कुछ असामाजिक तत्वों की भूमिका
जंगल की आग फैलाने में कुछ असामाजिक तत्वों की भूमिका भी सामने आई है। द्वारीखाल ब्लॉक के अंतर्गत ग्राम पंचायत दिउसा में, शरारती तत्वों ने जंगल में आग लगा दी। यह आग आसपास के आवासीय इलाकों तक फैल गई, जिससे वाहनों और संपत्ति को नुकसान पहुंचा। स्थानीय अधिकारियों की सहायता से वनकर्मी आग बुझाने के लिए घंटों जूझते रहे। वन सरपंच ममता देवी ने इन तत्वों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और कानूनी एजेंसियों से हस्तक्षेप की मांग की।

चट्टानें गिरने से आग लगने का खतरा बढ़ गया है
चमोली बाजार में चट्टानें गिरने से आग लगने का खतरा बढ़ गया, जिससे अधिकारियों को टैक्सी स्टैंड से वाहनों को निकालना पड़ा। पिछली बार हुई इसी प्रकार की घटनाओं की यादें ताजा हो गईं इस बीच, गोपेश्वर-नेल-कुदव मार्ग और राडखी मज्याडी, सिमली और कोलीपानी के जंगलों में आग बुझाने के प्रयास जारी हैं। चुनौतियों के बावजूद, वन अधिकारी जीवन, वन्य जीवन और आवासों की सुरक्षा के अपने मिशन में जुटे हुए हैं।