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GSAT-N2 Satellite Launch: इसरो ने सोमवार(18 नवंबर) की आधी रात GSAT-N2 सैटेलाइट को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट से लॉन्च किया। यह सैटेलाइट भारत के दूरदराज के इलाकों में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड और इंटरनेट सेवाएं देगा।  

GSAT-N2 Satellite Launch: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बड़ा कदम उठाते हुए एलन मस्क की स्पेसएक्स कंपनी के फाल्कन 9 रॉकेट से GSAT-N2 सैटेलाइट लॉन्च किया। यह ऐतिहासिक लॉन्च 18 नवंबर की आधी रात को हुआ। GSAT-N2 सैटेलाइट का वजन 4700 किलोग्राम है और यह 14 साल के लंबे मिशन के लिए बनाया गया है। इसरो का यह सैटेलाइट भारत के दूरदराज के इलाकों में हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड और डिजिटल वीडियो-ऑडियो सेवाएं प्रदान करेगा। खास बात यह है कि यह हवाई यात्राओं के दौरान भी इंटरनेट की सुविधा देगा।  

दूसरी बार अमेरिकी प्रक्षेपण यान का इस्तेमाल
यह पहला मौका है जब इसरो ने किसी अमेरिकी प्राइवेट कंपनी के साथ मिलकर अपना सैटेलाइट लॉन्च किया है। इससे पहले 1990 में INSAT-1D को अमेरिकी लॉन्च व्हीकल से भेजा गया था। GSAT-N2 को जियो स्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (Geostationary Transfer Orbit) में स्थापित किया गया है। लॉन्च के बाद इसका नियंत्रण इसरो के हसन स्थित मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी ने संभाल लिया। कुछ दिनों में यह सैटेलाइट 36,000 किमी की ऊंचाई पर पहुंच जाएगा।  

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भारतीय मिशनों के लिए मस्क की स्पेसएक्स क्यों बनी विकल्प?
भारतीय रॉकेट्स में 4 टन से अधिक भारी सैटेलाइट लॉन्च करने की क्षमता नहीं है। यही वजह रही कि भारत को भारी सैटेलाइट्स के लिए फ्रांस के एरियनस्पेस कंसोर्टियम पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन अब स्पेसएक्स का फाल्कन 9 इस कमी को पूरा कर रहा है। फाल्कन 9 रॉकेट ने GSAT-N2 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजकर भारत के अंतरिक्ष मिशन को नई ऊंचाई दी है। यह रॉकेट अपनी 99% सफलता दर के लिए जाना जाता है।  

GSAT-N2: नई तकनीक से लैस भारतीय सैटेलाइट
GSAT-N2 को खासतौर पर भारत के अंडमान-निकोबार, जम्मू-कश्मीर और लक्षद्वीप जैसे दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट और संचार सेवाएं प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सैटेलाइट 48Gbps की हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराएगा। इसके जरिए डिजिटल ट्रांसमिशन और मोबाइल कनेक्टिविटी में सुधार होगा। इसके लॉन्च से भारत के डिजिटल कनेक्टिविटी प्रयासों को एक बड़ा सहारा मिलेगा।  

स्पेसएक्स का बाहुबली रॉकेट: फाल्कन 9
फाल्कन 9 रॉकेट अपनी ताकत और दोबारा उपयोग की क्षमता के लिए मशहूर है। यह जियो स्टेशनरी ऑर्बिट में 8300 किलोग्राम तक का वजन और लो अर्थ ऑर्बिट में 22,800 किलोग्राम तक का वजन ले जाने में सक्षम है। इसकी कुल लंबाई 70 मीटर और वजन 549 टन है। 396 सफल लॉन्च के साथ, फाल्कन 9 ने अब तक सिर्फ चार बार विफलता देखी है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसके एक लॉन्च की लागत लगभग 70 मिलियन डॉलर है।  

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भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की नई शुरुआत
इसरो और स्पेसएक्स के बीच यह सहयोग भारत के अंतरिक्ष मिशनों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। GSAT-N2 का सफल प्रक्षेपण न केवल भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नई दिशा देने वाला है, बल्कि भारत को भारी सैटेलाइट लॉन्चिंग के लिए आत्मनिर्भर बनने में मदद करेगा। आने वाले समय में इसरो के और भी मिशन अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के साथ नए मुकाम हासिल कर सकते हैं।  

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यहां बिंदुवार तरीके से जानिए GSAT-N2 Satellite के बारे में 7 खास बातें:

  1. भारतीय कम्युनिकेशन को बढ़ावा: यह सैटेलाइट हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट और डिजिटल वीडियो-ऑडियो ट्रांसमिशन की सुविधा प्रदान करेगा।खासतौर पर हवाई यात्राओं के दौरान भी इंटरनेट की सुविधा संभव करेगा।
  2. दूरदराज इलाकों के लिए अहम: अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप और जम्मू-कश्मीर जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में कम्युनिकेशन सिस्टम बेहतर बनाएगा, ब्रॉड बैंड की सुविधा उपलब्ध कराएगा। ब्रॉडबैंड इंटरनेट से इन इलाकों को मुख्यधारा से जोड़ने में मदद मिलेगी
  3. बेहद आधुनिक डिजाइन: 4700 किलोग्राम वजनी इस सैटेलाइट को 48 Gbps की स्पीड पर इंटरनेट प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। आसान शब्दों में कहें तो हाई स्पीड इंटरनेट सर्विस मिल सकेगी। 
  4. लंबी अवधि का मिशन: GSAT-N2 का मिशन 14 साल तक काम करने के लिए बनाया गया है। यह लंबे समय तक अंतरिक्ष में एक्टिव रहेगा और इंंडिया की इंटरनेट कनेक्टिविटी को मजबूत करेगा। 
  5. जियो स्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट: सैटेलाइट को जियो स्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (Geostationary Transfer Orbit) में स्थापित किया गया है, जिससे इसकी कवरेज और कार्यक्षमता बढ़ती है।
  6. पहली बार स्पेसएक्स की मदद: यह इसरो का पहला कम्युनिकेशन सैटेलाइट है जिसे अमेरिकी कंपनी स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया। दूसरी बार है जब इसरो ने अमेरिकी लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल किया है।
  7. भारतीय मास्टर कंट्रोल से निगरानी: कक्षा में स्थापित होने के बाद इसरो के हसन स्थित मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी ने इसका कंट्रोल अपने हाथों में ले लिया है। 
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