Lok Sabha Election 2024 Analysis Highlights: 2014 और 2019 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को पूर्ण बहुमत मिला और एनडीए सरकार बनी। लेकिन 2024 में एक बार फिर कोई भी पार्टी बहुमत के लिए जरूरी 272 के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी। गठबंधन सरकारों के दौर में किसी खास प्रदेश, किसी खास जाति के वोटबैंक पर मजबूत होल्ड रखने वाले क्षेत्रिया पार्टियां का दबदबा रहा है। एक बार फिर खिंचड़ी सरकारों का दौर लौट आया लेकिन कई क्षेत्रीया पार्टी अपना किला नहीं बचा सकी। 

इन दलों को मिला 'जीरो'
इनमें मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से लेकर नवीन पटनायक की अगुवाई वाली बीजू जनता दल (बीजेडी) और के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति(बीआरएस) तक कई पार्टियां हैं। लोकल लेवल पर मजबूत मौजदूगी दर्ज कराती आईं इन पार्टियों ने इस बार के चुनाव में खुद को गठबंधन की सियासत से दूर रखा। ये पार्टियां न तो एनडीए में थीं और ना ही इंडिया में, लोकसभा चुनाव में ये क्षेत्रीय पार्टी अकेले चुनावी समर में उतरे लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सके और खाली हाथ रह गए।

बसपा नहीं खोल पाईं खाता
मायावती की अगुवाई वाली बसपा के वोट शेयर में गिरावट का दौर इस बार के चुनाव में भी जारी रहा। विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट पर सिमटी बसपा इस बार खाता तक नहीं खोल सकी। वोट शेयर के लिहाज से बीजेपी सूबे में सबसे बड़ी पार्टी रही तो वहीं सीटों के लिहाज से देखें तो सपा ने ज्यादा सीटें जीतीं।

तेलंगाना में केसीआर की पार्टी का सफाया
आंध्र प्रदेश से अलग होकर पृथक राज्य बनने के बाद से ही तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति (पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति) का दबदबा रहा। लगातार दो बार तेलंगाना के सीएम रहे केसीआर की पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में हार के साथ सत्ता गंवानी पड़ी थी। अब लोकसभा चुनाव में बीआरएस का सफाया ही हो गया है। लंबे समय तक सूबे की सत्ता के शीर्ष पर काबिज रही बीआरएस 16.68 फीसदी वोट शेयर के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत सकी।

तेलंगाना के नतीजों की बात करें तो सूबे की सत्ता पर काबिज कांग्रेस को 40 फीसदी वोट शेयर के साथ आठ सीटों पर जीत मिली। वहीं बीजेपी भी 35 फीसदी वोट शेयर के साथ आठ सीटें जीतने में सफल रही थी। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी तीन फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट जीतने में सफल रही।

एक सीट को तरसी पटनायक की पार्टी
लोकसभा सीटों के लिहाज से सूबे की सबसे बड़ी पार्टी बनती आई बीजेडी एक सीट के लिए तरस गई। सूबे की सत्ता के शीर्ष पर नवीन पटनायक ने ऐसे पांव जमाया कि ओडिशा सरकार के पर्याय बन गए। ओडिशा की सत्ता और पटनायक का नाता इस बार टूटा गया। 

लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 45.34 फीसदी वोट शेयर के साथ 21 में से 20 सीटें जीत ली। 12.52 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस ने भी एक सीट जीती लेकिन 37.53 फीसदी वोट मिलने के बावजूद बीजेडी एक भी सीट नहीं जीत सकी। गौरतलब है कि 2019 में बीजेडी को 12, बीजेपी को आठ और कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली थी।

ये क्षेत्रीय पार्टी भी रह गए खाली हाथ
बसपा, बीआरएस और बीजेडी ही नहीं, कई और क्षत्रप भी खाली हाथ रह गए जो कभी मजबूत मौजदूगी दर्ज कराते थे। ऐसी पार्टियों की की लिस्ट में कभी जम्मू कश्मीर की सियासत में पावर सेंटर रही पीडीपी और तमिलनाडु की एआईएडीएमके के नाम भी शामिल हैं। पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती अपनी सीट भी नहीं जीत पाईं। तमिलनाडु में सरकार चला चुकी एआईएडीएमके भी इस बार खाली हाथ रह गई। सभी 39 सीटों पर इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार जीते हैं।