Bihar Reservation: बिहार सरकार द्वारा राज्य में आरक्षण बढ़ाकर 65 फीसदी किए जाने को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। कोर्ट में सरकार द्वारा पिछड़ा, अति पिछड़ा, अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए आरक्षण 65 फीसदी किए जाने के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई है। ये जनहित याचिका गौरव कुमार और नमन श्रेष्ठ द्वारा दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं ने इन पर तत्काल रोक लगाने की भी मांग की।

राज्यपाल ने लगाई मुहर

याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने इन अधिनियमों पर रोक लगाने की भी मांग की है। बिहार राज्य विधानमंडल ने 10 नवंबर, 2023 को 2023 अधिनियम पास किया और इसे 18 नवंबर, 2023 को राज्यपाल द्वारा मंजूरी भी दे दी गई। इसके बाद, सरकार ने आधिकारिक तौर पर 21 नवंबर, 2023 को बिहार राजपत्र के माध्यम से अधिनियम को अधिसूचित किया।

इस जनहित याचिका में यह भी कहा गया कि ये संशोधन जातीये सर्वे के आधार पर किया गया है। इन पिछड़ी जातियों का प्रतिशत इस जातिगत सर्वेक्षण में 63.13 प्रतिशत है, इसलिए इनके लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 65 प्रतिशत कर दिया गया है। साथ ही, आगे कहा गया कि संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी न कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान है। 

मौलिक अधिकारो का उल्लंघन

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि 2023 का संशोधित अधिनियम जो बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने पारित किया है, वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी करता है। इसमें जहां सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार का उल्लंघन करता है, वहीं भेद भाव से संबंधित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है। साथ ही, उन्होंने आगे कहा कि इस कानून पर जल्द से जल्द रोक लगाई जानी चाहिए।