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Preamble of Constitution: 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संविधान संशोधन में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सोशलिस्ट और सेक्यूलर शब्द जोड़े गए थे।

Preamble of Constitution: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सवाल पूछा कहा कि क्या संविधान को अंगीकृत करने (अपनाने) की तारीख 26 नवंबर, 1949 को यथावत रखते हुए इसकी प्रस्तावना में बदलाव किया जा सकता है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने यह सवाल पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और वकील विष्णु शंकर जैन से पूछा। जिन्होंने संविधान की प्रस्तावना से सोशलिस्ट (समाजवादी) और सेक्यूलर (धर्मनिरपेक्ष) शब्दों को हटाने की मांग की है।

बिना चर्चा के प्रस्तावना में नहीं कर सकते हैं संशोधन: जस्टिस दत्ता
जस्टिस दत्ता ने कहा- शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए एक प्रस्तावना जिसमें तारीख खासतौर पर उल्लेखित है। क्या उसे अपनाने की तारीख में बदलाव किए बगौर इसमें बदलाव किया जा सकता है? अगर यह संभव है तो प्रस्तावना में संशोधन करने में कोई समस्या नहीं है। इस पर बीजेपी नेता स्वामी ने कहा- इस मामले में बिल्कुल यही सवाल है।

जस्टिस दत्ता ने कहा कि अब तक मैंने जो प्रस्तावना देखी हैं। इनमें शायद यही इकलौती है, जो एक तारीख के साथ है। हम यह संविधान हमें विशेष तारीख को देते हैं... मूल रूप से यही दो शब्द (सोशलिस्ट और सेक्यूलर) वहां नहीं थे। इस पर वकील जैन ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना एक निश्चित तिथि के साथ आती है, इसलिए इसमें बिना चर्चा के संशोधन नहीं कर सकते हैं।

बेंच ने मामले पर सुनवाई 29 अप्रैल तक टाली
तब सुब्रमण्यम स्वामी ने हुए कहा कि 42वां संशोधन अधिनियम आपातकाल (1975-77) के दौरान पारित हुआ था। जस्टिस खन्ना ने उनसे कहा कि जजों को केस की फाइल सुबह ही मिल गई थीं और टाइम कम होने से उन पर गौर नहीं किया। बेंच ने कहा कि इस मामले में व्यापक चर्चा की आवश्यकता है। दोनों याचिकाओं पर अलगी सुनवाई 29 अप्रैल तक आगे बढ़ाई जा रही है। 

42वें संविधान संशोधन में जोड़े गए थे दोनों शब्द
बता दें कि 2 सितंबर, 2022 को शीर्ष अदालत ने स्वामी की याचिका को एक पेडिंग केस के साथ सुनवाई के लिए टैग कर दिया था। इन दोनों मामलों में प्रस्तावना से "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्द हटाने की मांग की है। 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संविधान संशोधन में सोशलिस्ट और सेक्यूलर शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए थे। इस संशोधन के बाद संविधान की प्रस्तावना में भारत की खासियत बताने के लिए "संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य" से बदलकर "संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य" किया गया। 

संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं हो सकता: स्वामी
पूर्व सांसद स्वामी ने याचिका में तर्क दिया है कि प्रस्तावना को बदला, संशोधित या निरस्त नहीं किया जा सकता है। इसमें न केवल संविधान की विशेषताओं को दिखाया गया है, बल्कि उन मूलभूत शर्तों को भी बताया है जिनके आधार पर एक एकीकृत समुदाय बनाने के लिए इसे अपनाया था।

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