(प्रमोद भारद्वाज). अटलजी के साथ मेरी यादें बहुत घनी हैं। हमारे बीच एक अबूझ आत्मीयता थी। वे तब लीडर अपोजिशन थे। दिल्ली से जब थक जाते तो चुपके से ग्वालियर आते। उनके ग्वालियर आने का या तो मुझे पता होता या फिर उनके भांजे अनूप मिश्रा को। सर्किट हाउस के कमरा नंबर 7 में वे ठहरते थे। सुबह आ जाते। दिनभर सोते और शाम को हम उनसे मिलते थे। बस हम दोनों। मैं और अनूप जी। वे एकदम ताजा दिखते। ढेर सारी बातें करते। ये बातें छपने के लिए नहीं होती थीं। पर कभी मैं जिद पर अड़ता तो वे मान भी जाते थे। ऐसे समय में जबकि न सवाल का वक्त होता और न जवाब का। उनके भाई के निधन पर कमलसिंह के बाग वाले मकान में वे अंतेष्टि करके लौटे ही थे, मैं पहुंच गया। इंटरव्यू करना है। पहले नानुकुर की, फिर मान गए।
इंटरव्यू आधे पेज का था। एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ। ऐसी कई यादें हैं। बाद में भोपाल आकर मैंने दैनिक अखबार के लिए उन पर एकाग्र एक वृहद विशेषांक संपादित किया। नाम था. राष्ट्र रत्न अटलजी। इसका विमोचन भी अजीब परिस्थितियों में हुआ। आतंकियों ने भारत के विमान का अपहरण कर लिया था और उसे कंधार ले गए थे। वो 25 दिसंबर ही था। अटलजी ने उसी दौरान अपने घर पर इस विशेषांक का विमोचन किया। इतने बड़े तनाव के बीच उनका वक्त निकालना और सहज रहना... उनकी विराटता से साक्षात कराता है। जन्मदिन पर अटलजी के साथ बिताए इन पलों के बीच से गुजरना हमारे लिए सुखद है और उनके लिए मन से दी गई अनंत शुभकामनाएं हैं। शायद... सभी ऐसा करते होंगे। क्योंकि अटलजी सबके हैं।
(लेखक हरिभूमि भोपाल संस्करण के संपादक हैं)