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Opinion: 79वें सत्र की अध्यक्षता के लिए महामहिम फ़िलेमॉन यंग को संयुक्त राष्ट्र के ट्रस्टीशिप आम सभा में नागरिक समाज के प्रतिनिधियों, अकादमिक जगत के लोगों, संयुक्त राष्ट्र नागरिक समाज संगठनों, साथ ही ख्याति प्राप्त व्यक्तियों द्वारा इंटरेक्टिव संवाद के पश्चात चुना गया है। फिलेमॉन यंग कैमरून के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

Opinion: संयुक्त राष्ट्र महासभा का 79वां सत्र आगामी सितम्बर में शुरू होने वाला है। उसके लिए पूर्व तैयारियों ने अपना मूर्त रूप लेना शुरू कर दिया है। यह एक ऐसा मंच है जो बहुपक्षीय संबंधों को समृद्धि प्रदान कर वैश्विक मुद्दों को बहस के केंद्र में लाता है। यह पूरे विश्व के लिए ऐतिहासिक घटना होती है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के नए अध्यक्ष के रूप में फिलेमॉन यंग को चुना गया है। 

कैमरून के प्रधानमंत्री रह चुके हैं
वह डेनिस विलियम का स्थान ग्रहण करेंगे। डेनिस विलियम 78वें महासभा के महामहिम अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं। यह संयुक्त राष्ट्र महासभा बहुपक्षीय सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक व जीवन- जगत से जुड़े पहलुओं को बेबाकी से प्रकट करने वाली महासभा है। 79वें सत्र की अध्यक्षता के लिए महामहिम फ़िलेमॉन यंग को संयुक्त राष्ट्र के ट्रस्टीशिप आम सभा में नागरिक समाज के प्रतिनिधियों, अकादमिक जगत के लोगों, संयुक्त राष्ट्र नागरिक समाज संगठनों, साथ ही ख्याति प्राप्त व्यक्तियों द्वारा इंटरेक्टिव संवाद के पश्चात चुना गया है। फिलेमॉन यंग कैमरून के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

वह एक अच्छे राजनयिक, लोकसेवक व लोकप्रिय नेतृत्वकर्ता के रूप में अपने देश का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। साथ-साथ अफ्रीकी संघ और सरकार के उच्चतम स्तरों पर काम करने का व्यापक अनुभव रखते हैं। उनके चयन पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतरेस का बहुत ही आत्मीय वक्तव्य सामने आया कि फिलेमॉन यंग गौरवान्वित अफ्रीकी हैं जो अपने महाद्वीप के भविष्य के प्रति समर्पित है। उनकी वजह से कैमरून जैसे अफ्रीकी देश संभावनाओं से भरपूर हैं। इस क्षमता को समझने के लिए अफ्रीकी देशों के इर्द-गिर्द एकजुट होने की जरूरत भी है और वास्तव में, दुनियाभर के विकासशील देशों का समर्थन भी इसके लिए आवश्यक है, जिससे एक देश संभावनाओं से भर जाए। मैं उनके साथ मिलकर काम करने के लिए उत्सुक हूं, क्योंकि वह सहयोगी समाधानों के लिए सदस्य देशों को एकजुट करते हैं जो अफ्रीका और विकासशील दुनिया को न्याय दिला सकते हैं। 

परिवर्तनकारी मस्तिष्क के विकास
गुतरेस का इतना बड़ा विश्वास ही सब कुछ फिलेमॉन यंग के बारे में बता देता है। निर्वाचित राष्ट्रपति यांग महासभा का नेतृत्व करने जा रहे हैं, लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं की दुनिया चुनौतीपूर्ण क्षण से गुजर रही है। युद्ध और संघर्ष निरंतर बढ़ रहे हैं। जलवायु संकट, पृथ्वी की रक्षा और आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधनों की निरंतरता बनाए रखनी है। गरीबी, भुखमरी, असुरक्षा और असमानता बढ़ी है। घृणा, अविश्वास, विभाजन और विस्थापन की समस्या विश्वव्यापी बन रही है। निवेश करने के लिए आवश्यक समर्थन न तो संयुक्त राष्ट्र जुटा पा रहा है और न ही कोई ऐसे परिवर्तनकारी मस्तिष्क के विकास हो रहे हैं जो सतत विकास लक्ष्य व दूसरे मानव- केंद्रित विषयों पर, प्रकृति की सुरक्षा पर निवेश करा सकें। सबने हाथ खड़े कर रखे हैं। 

सब भगवान भरोसे छोड़ अपनी संप्रभुता, सत्ता और भौतिकवादी सुख के लिए आसक्ति से भरे पड़े हैं। फिलेमॉन यंग को यह समझना होगा कि देशों की सोच का रुख कैसे बदला जाए। संयुक्त राष्ट्र में सेट पैटर्न पर गाड़ी हांकने वाले यह सोच रहे हैं कि उनकी मंशा अनुसार विश्व चलेगा तो यह उनकी कमी है। इसके लिए फिलेमॉन यंग को नए सिरे से विचार करना होगा। संयुक्त राष्ट्र में अभी तक केवल छह भाषाओं को प्रमुखता से स्थान मिला है। कम से कम भाषाओं में संयुक्त राष्ट्र की अभिव्यक्ति उसे जन-जन से जुड़ने ही नहीं दे रही है।

भाषा की तरह स्थान नहीं
हिंदी में अब जरूर भारत में संयुक्त राष्ट्र से न्यूज पहुंचाई जा रही हैं, लेकिन अधिक संख्या में बोली व समझी जाने वाली कुछ भाषाएं यदि संयुक्त राष्ट्र की मुख्य रेस वाली भाषा की तरह स्थान नहीं पाएंगी तो निश्चय ही संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियां और उसके इनिशिएटिव उसके ही लिए उपयुक्त नहीं होंगे। संयुक्त राष्ट्र में परमाणु अप्रसार, युद्ध विराम और शरणार्थियों की समस्या को गंभीरता से लिया जा रहा है भले ही लेकिन इसके लिए जो आचार संहिताएं हैं उसका पालन देश कितना कर रहे हैं, यह बड़ा सवाल है। 

फिलेमॉन यंग की यह बड़ी चुनौती है उनके लिए कि वे कुछ देशों को सुरक्षा परिषद में स्थान दिलवाने में सफल हो पाते हैं कि नहीं? चबा कोरोसी ने जिस गति से सुरक्षा परिषद के विस्तार पर पहल की थी, यदि फिलेमॉन यंग उतनी ही रफ्तार से इस दिशा में आगे बढ़ते हैं तो उन्हें काफी सफलता मिल सकती है और संयुक्त राष्ट्र में बदलाव का श्रेय भी उन्हें प्राप्त हो सकता है। पूरी दुनिया में टिकाऊ विकास, अधिक शांतिपूर्ण पृथ्वी, सुन्दर प्रकृति और अभयपूर्ण इच्छाशक्ति की बाट जोहती आज की पीढ़ी फिलेमॉन यंग से बहुत सी अपेक्षाएं पाल चुकी है। मैनेज करने वाले महासभा अध्यक्ष आज की पीढ़ी नहीं चाहती है। वह चाहती है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष केवल औपचारिकताओं में न संलग्न रहें, अपितु सही मायने में रोमांचकारी परिवर्तन के लिए काम करें। 

अनुभवी कुशल नेतृत्वकर्ता
विश्व को सही और गलत का भान कराएं और सही निर्णय की ओर संसार को ले जाएं। जैसा कि फिलेमॉन यंग एक अनुभवी कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में सक्षम हैं तो वह इस दिशा में एक प्रतिष्ठित दुनिया बसाने वाली सोच को विकसित कर सकेंगे और विश्व को उम्मीद यह भी है कि सार्वभौमिक उद्देश्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे भी तो निश्चय ही यह एक अच्छी संभावना है। फिलहाल सफलता के लिए प्रतिबद्ध होना जरूरी है।

यदि फिलेमॉन यंग विश्व के वर्तमान को समझकर आगे बढ़ेंगे तो वैसा ही विश्व तैयार होगा। जैसा आज अरबों नागरिकों की अपेक्षाएं हैं, अन्यथा विभिन्न चुनौतियों के बीच नागरिक और प्रकृति शेष होंगे। यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि फिलेमॉन यंग के सामने एक बड़ी समस्या है कि सतत विकास लक्ष्य को लेकर दुनिया के देश बहुत सार्थक व निर्णायक लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए हैं। उन्हें इसमें गतिशीलता लाने के लिए बड़े पैमाने पर देशों व देश के नेतृत्वों को प्रोत्साहित करना होगा।

विकास लक्ष्य हासिल
इन दिनों इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि सन 2030 तक सतत विकास लक्ष्य को हासिल किया भी जा सकेगा या नहीं। फिलेमॉन यंग यदि इसके प्रोत्साहन के लिए एक बड़े स्तर का शिष्टमंडल खड़ाकर काम नहीं करेंगे तो जो अपेक्षाएं हैं उन्हें वे पूर्ण करने में पीछे हो जाएंगे। आवश्यकता इस बात की होगी की फिलेमॉन यंग खुद इसकी गंभीरता को समझें और वैश्विक नेतृत्व को संभालते हुए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को इसकी गंभीरता को समझने की पहल करें। विश्व में पर्यावरण व विकास के मुद्दे तो हैं ही, युद्ध और संघर्ष में बहुत धन लग रहा है।

यदि यह धन सतत विकास लक्ष्य के लिए लगाया जाता तो यह निवेश विश्व के जीवन गुणवत्ता को हासिल करने में काम आता, लेकिन निवेश वहां हो रहे हैं जहां जरूरत नहीं है। फिलेमॉन को यह सोचना होगा कि वह एकीकृत मानसिकता को कैसे क्रियाशील बनाकर कैसे वैश्विक लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं। यह एक कठिन कोशिश जरूर है, लेकिन मुश्किल नहीं है। फिलेमॉन अपने अनुभव से यदि इसके लिए बड़े निर्णय लेने और उपाय ढूंढ़ने में कामयाब होते हैं तो इससे सबका भला होगा।
प्रो. कन्हैया त्रिपाठी: (लेखक राष्ट्रपति के विशेष कार्य अधिकारी रहे है. ये उनके अपने विचार हैं।)

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