Logo
Opinion: निस्संदेह डिजिटलीकरण ने प्रत्येक क्षेत्र में हमारे लिए समय की बचत करने में एक अभूतपूर्व योगदान दिया है, किंतु डिजिटल तकनीकी के कुछ पार्श्व प्रभाव भी उभरकर सामने आए हैं, जो कहीं न कहीं हमारे जीवन पर ही असर डाल रहे हैं अथवा भविष्य में गंभीर असर डालने वाले हैं।

Opinion: हाल ही में यूरोप की कंपनी एसेंड ने 21 लाख डॉलर खर्च करके एक अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला है कि भविष्य में बढ़ते हुए डाटा को सुरक्षित रखने के लिए अंतरिक्ष में डिजिटल गोदाम खोलने पर विचार करना पड़ेगा। इस योजना के पीछे कारण यह बताया गया है कि भविष्य में कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू पर इस कदर हावी हो जाएगी कि अथाह मात्रा में उत्पन्न होने वाले अपने उपयोगी डाटा को सुरक्षित रख पाना हमारे लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

अंतरिक्ष में डाटा सेंटर स्थापित किए जाएंगे
तकरीबन 16 महीने तक इस मुद्दे पर हुए अध्ययन के बाद नतीजा यह निकला है कि इस चुनौती से निपटने के लिए पृथ्वी से 1400 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में डाटा सेंटर स्थापित किए जाएंगे। यूरोपीय कंपनी एसेंड के अनुसार अंतरिक्ष में वर्ष 2036 तक ऐसे 13 डाटा सेंटर खोले जाएंगे जिनकी क्षमता लगभग 10 मेगावाट होगी। प्रत्येक डाटा केंद्र की सतह का क्षेत्रफल 6300 वर्ग मीटर होगा। इतना ही नहीं, वर्ष 2050 तक ऐसे 1300 डाटा सेंटर स्थापित किए जाने की योजना बनाई जा रही है। एक अन्य विशेष बात यह है कि ये डाटा सेंटर सौर ऊर्जा से संचालित होंगे। देखा जाए तो आज हमारे जीवन में डिजिटलीकरण ने पूर्णतया अपना दखल स्थापित कर लिया है। 

डिजिटल तकनीकी की गिरफ्त में जकड़े हुए हैं
सुबह जागने से लेकर रात में सोने तक हम पूर्णरूपेण डिजिटल तकनीकी की गिरफ्त में जकड़े हुए हैं। कारण यह है कि डिजिटलीकरण ने हमारे जीवन में क्रांतिकारी बदलाव करते हुए अनेक सुविधाओं का समावेश भी किया है। इन सुविधाओं में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु जिसका जिक्र करना उचित होगा, वो है समय की बचत। निस्संदेह डिजिटलीकरण ने प्रत्येक क्षेत्र में हमारे लिए समय की बचत करने में एक अभूतपूर्व योगदान दिया है, किंतु डिजिटल तकनीकी के कुछ पार्श्व प्रभाव भी उभरकर सामने आए हैं, जो कहीं न कहीं हमारे जीवन पर ही असर डाल रहे हैं अथवा भविष्य में गंभीर असर डालने वाले हैं। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में प्रतिदिन लगभग 402.74 मिलियन टेराबाइट डाटा पैदा हो रहा है। 

डाटा की मात्रा में निरंतर बढ़ोतरी होती जाएगी
इसके साथ ही यह भी निश्चित है कि समय के साथ प्रतिदिन पैदा होने वाले इस डाटा की मात्रा में निरंतर बढ़ोतरी होती जाएगी। स्वाभाविक सी बात है कि जब अपने पास कीमती सामान ज्यादा हो तो उसकी सुरक्षा को लेकर मन में सवाल उठेगा ही। डाटा के उत्पन्न होने से लेकर डाटा की सुरक्षा तक प्रत्येक कार्य में ऊर्जा का खर्च होना ही है।
तरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार पृथ्वी के डाटा सेंटरों पर वर्ष 2026 तक प्रति घंटा एक हजार टेरावॉट बिजली की खपत होगी। इतनी बड़ी मात्रा में ऊर्जा की खपत होने से हम शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को किसी भी दशा में हासिल नहीं कर पाएंगे। यूरोपीय कमीशन के सहयोग से किए गए इस शोध का मुख्य लक्ष्य भी भविष्य में पृथ्वी को अनावश्यक ऊर्जा खपत से बचाते हुए कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम करने की अवधारणा पर ही आधारित है। 

हम सौर ऊर्जा पर ही निर्भर होंगे
चूंकि अंतरिक्ष में सूर्य ही एकमात्र ऊर्जा का स्रोत होगा, लिहाजा अंतरिक्ष में डाटा सुरक्षा के लिए हम सौर ऊर्जा पर ही निर्भर होंगे। डेनमार्क के डाटा सेंटर इंडस्ट्री एसोसिएशन के अनुसार भविष्य में दुनिया के सामने डाटा सुनामी का दौर आने वाला है। पृथ्वी पर एक बड़ी मात्रा में डाटा उत्पादित होगा और उस डाटा की सुरक्षा के लिए एक बड़ी मात्रा में बिजली और पानी की आवश्यकता होगी। नतीजा यह होगा कि बिजली एवं पानी जो धीरे धीरे संकट के दायरे में आने के कगार पर हैं और अधिक तीव्र गति से इस ओर बढ़ जाएंगे। ऐसी दशा में बहुमूल्य डाटा की सुरक्षा कर पाना नितांत मुश्किल होगा। अगर भारत की बात की जाए तो भारत में प्रतिदिन 1.145 ट्रिलियन मेगाबाइट डाटा उत्पन्न हो रहा है। इस हिसाब से वर्ष 2028 तक भारत को 3.6 गीगावाट क्षमता वाले डाटा सेंटर की जरूरत होगी। 

90 फीसदी डाटा सेंटर चार महानगरों में
भारत में मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद और चेन्नई, ये चारों डाटा सेंटर के मुख्य हब हैं। भारत के लगभग 90 फीसदी डाटा सेंटर इन्हीं चार महानगरों में हैं। समस्या का अंदाजा हम इसी से लगा सकते हैं कि हम अपने मोबाइल फोन में प्रतिदिन 1.5 गीगाबाइट अथवा 2 गीगाबाइट डाटा प्रदान करने वाले प्लान का रिचार्ज करते हैं। इस हिसाब से हम लगभग 60 गीगाबाइट डाटा प्रतिमाह खर्च करते हैं।
अगर औसतन बात की जाए, तो एक भारतीय प्रतिमाह 19 गीगाबाइट डाटा का उपभोग कर रहा है। हां पर एक अन्य बात का उल्लेख करना उचित होगा कि जनसंख्या वृद्धि की द्रुत दर भी किसी से छिपी नहीं है। जाहिर सी बात है कि जनसंख्या अगर इसी दर से बढ़ती रही तो डाटा उपभोग की मात्रा भी उतनी ही तेज गति से बढ़ेगी। पृथ्वी पर डाटा के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए भविष्य में दुनिया के सभी देशों को अंतरिक्ष में डिजिटल गोदाम बनाने के विकल्पों पर विचार करना ही पड़ेगा और साथ ही ऊर्जा के स्वच्छतम विकल्प सौर ऊर्जा पर केंद्रित रहते हुए चुनौतियों से निपटने का प्रयास करना होगा।
शिशिर शुक्ला: (लेखक स्वामी शुकदेवानंद महाविद्यालय में भौतिकी के विभागाध्यक्ष है, ये उनके अपने विचार है।)

5379487