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Opinion: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच प्रण किए थे, इनमें एक प्रण गुलामी की निशानियों को खत्म करना भी था। कानून संबंधी पारित विधेयक उसी परिप्रेक्ष्य में हैं। इन नए कानूनों के अंतर्गत दंड अपराध रोकने की भावना पैदा करने के लिए दिया जाएगा। ये नए कानून महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर केंद्रित हैं। अब नए कानून में नाबालिग से दुष्कर्म और मॉब लिंचिंग के लिए फांसी की सजा दी जाएगी।

Opinion: वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से आहत होकर अंग्रेजों ने व स्वतंत्रता सेनानियों और उनके मददगारों को दंड देने की दृष्टि से अनेक औपनिवेशिक कानून लागू किए थे। इनमें प्रमुख रूप से अंग्रेजी राज का पर्याय बने तीन मूलभूत कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। 1860 में बने इंडियन पेनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। इन कानूनों के शीर्षक में ही 'दंड' की प्रधानता है।

भारत में न्याय की अवधारणा बहुत पुरानी है
दंड के मनोविज्ञान से ही निर्देश भयभीत हो जाया करते हैं। इस भय से मुक्ति का प्रावधान करने की दृष्टि से 'न्याय' शब्द का प्रयोग कानून किया गया है। इन कानूनों के लागू होने के साथ दुनिया में सबसे अधिक आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली भारत की होगी। भारत में न्याय की अवधारणा बहुत पुरानी है और ये कानून उसी अवधारणा पर आधारित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच प्रण किए थे, इनमें एक प्रण गुलामी की निशानियों को खत्म करना भी था। कानून संबंधी पारित विधेयक उसी परिप्रेक्ष्य में हैं। इन नए कानूनों के अंतर्गत दंड अपराध रोकने की भावना पैदा करने के लिए दिया जाएगा। ये नए कानून महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर केंद्रित हैं। अब नए कानून में नाबालिग से दुष्कर्म और मॉब लिंचिंग के लिए फांसी की सजा दी जाएगी।

राजद्रोह कानून ब्रिटिश सत्ता को कायम रखने के लिए था, इसे अब खत्म किया जा रहा है। 1860 में बने इंडियन पेनल कोड को अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) कहा जाएगा। 164 साल पुरानी आईपीसी में 511 धाराएं थीं, जो बीएनएस-2023 में 358 रह जाएंगी। इसमें 21 नए अपराध जुड़े हैं और 41 धाराओं में सजा बढ़ाई गई है। पहली बार छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा जोड़ी गई है। 1898 में बने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) कहा जाएगा। इसमें 47 नई धाराओं के साथ अब कुल 531 धाराएं होंगी।

प्राथमिकी नए कानून के तहत धारा-173 में दर्ज की जाएगी
पहले धारा 154 में होने वाली प्राथमिकी नए कानून के तहत धारा-173 में दर्ज की जाएगी। अब पुराने कानून दंड प्रक्रिया संहिता में से 'दंड को हटाकर नागरिक सुरक्षा पर जोर दिया गया है, 1872 में बने इंडियन एविडेंस कोड को अब भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा। पुराने कानून में 167 धाराएं थीं, जो अब 170 रह गई हैं। इस कानून को तकनीक और फॉरेंसिक आधार पर तैयार किया गया है। ताकि सजा का प्रतिशत १० तक पहुंच जाए। बढ़ते साइबर अपराधों के संदर्भ में इस कानून की अहम भूमिका जताई जा रही है। नए प्रारूप में धारा 150 के तहत आरोपी को सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। मॉब लीचिंग यानी उन्मादी भीड़ द्वारा हत्या और हिंसा के लिए अलग से सजा का प्रावधान किया गया है, इसे पंथ निरपेक्ष रखा गया है। 

नाबालिग से दुष्कर्म या पहचान छिपाकर किए गए दुष्कर्म के आरोप में 20 साल का कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। सबसे बड़ा परिवर्तन 1860 में अस्तित्व में आए औपनिवेशिक कानून 'राजद्रोह' में किया गया है। राजद्रोह कानून से 'राजद्रोह' शब्द विलोपित करके 'देशद्रोह' किया है। क्योंकि अब देश स्वतंत्र हो चुका है। अतएव लोकतांत्रिक देश में सरकार की आलोचना कोई भी कर सकता है। यह नागरिक का अधिकार है। इसके औचित्य पर सवाल उठते रहे थे। धारा 124- ए के अंतर्गत लिखित या मौखिक शब्दों, चिह्नों प्रत्यक्ष या अप्रत्क्ष तौर से नफरत फैलाने या असंतोष जाहिर करने पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया जा सकता है। इस धारा के तहत दोषी पर आरोप साबित होने पर तीन साल जेल तक की सजा हो सकती है। 

आतंकवाद की इबारत को पारिभाषित किया
नए कानून में पहली बार आतंकवाद की इबारत को पारिभाषित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा को संकट में डालने के इरादे से कोई कृत्य करता है तो उसे नए कानून के हिसाब से सजा मिलेगी। देश के अस्तित्व को चुनौती देने वाले बाहरी या भीतरी असामाजिक तत्व कानूनी शिकंजे से बचने न पाएं, इसके प्रावधान किए गए हैं।

यही कानूनी प्रावधान वृहत्तर सामाजिक हित राज्य को भारत की संप्रभुता, अखंडता तथा राज्य की सुरक्षा से जोड़ते हैं। भारत के विरुद्ध सांप्रदायिक कट्टरता फैलाने और सरकार के लिए नफरत के हालात बनाने में भारत विरोधी विदेशी ताकतें सोशल मीडिया का मनचाहा एवं गलत दुरुपयोग करती हैं, इसलिए नए कानून में देश तोड़ने की कोशिश करने वाली ताकतों पर अंकुश के लिए कठोर कानूनी प्रावधान नए कानून में हैं। अतएव स्वतंत्रता के 76 साल बाद भारतीयों को ऐसी प्रणाली मिल गई है, जो दंड की बजाय अधिकतम न्याय पर आधारित है।
प्रमोद भार्गव: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है. ये उनके अपने विचार है।)

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